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भारत भूमि के कण-कण में बिखरे पड़े हैं भक्ति के बीज
इंदौर. बचपन से मिले भक्ति के संस्कार पूरी उम्र कायम रहते हैं बल्कि जीवन को नीति, मर्यादा और सत्य की राह पर भी प्रवृत्त करते हैं. भागवत जैसे धर्मगं्रथ संस्कारों का ऐसा सागर हैं जो कभी सूखते ही नहीं है. भारत भक्तों की भूमि है। यहां कण-कण में भक्ति के बीज बिखरे पड़े हैं, जरूरत है तो केवल उन्हें अंकुरित होने के लिए संस्कारों की उर्वरा शक्ति देेने की. देश की नई पौध धर्म-संस्कृति से जिस दिन जुड़ जायेगी, हर घर में एक ध्रुव और प्रहलाद का अवतरण हो जाएगा.
शक्करगढ़, भीलवाड़ा स्थित अमरज्ञान निरंजनी आश्रम के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी जगदीशपुरी महाराज ने मनोरमागंज स्थित गीता भवन पर चातुर्मास अनुष्ठान के अंतर्गत भागवत कथासार एवं प्रवचन के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किये. गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन एवं सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी, सुश्री प्रमिला नामजोशी आदि ने प्रारंभ में महामंडलेश्वरजी का स्वागत किया. इसके पूर्व महामंडलेश्वरजी के सान्निध्य में विष्णु सहस्त्रनाम से आराधना में भी सैकड़ों भक्त शामिल हुए. गीता भवन में स्वामी जगदीशपुरी महाराज के सान्निध्य में प्रतिदिन प्रात: 8.30 से 9 बजे तक विष्णु सहस्त्रनाम से आराधना, 9 से 10.30 एवं सांय 5 से 6.30 बजे तक भागवत कथासार एवं प्रवचनों की अमृत वर्षा जारी रहेगी।
भक्ति बाल्यकाल से शुरू कर देना चाहिए
आचार्य महामंडलेश्वर ने कहा कि भक्ति का मार्ग पाखंड और प्रदर्शन से तय नहीं हो सकता. घंटो पूजा-पाठ करते रहने से ही भक्ति नहीं हो जाती. भक्ति निष्काम होना चाहिए. भगवान से हर वक्त मांगते रहना या हर संकट का ठीकरा उनके मत्थे फोडऩा बहुत बड़ी भूल है. भारत में भक्तों ने धैर्य, लगन और परीक्षाएं देकर अपना नाम अमर किया है. भक्ति बाल्यकाल से ही शुरू कर देना चाहिए.