- फेलिसिटी थिएटर इंदौर में "हमारे राम" प्रस्तुत करता है
- जेएसडब्ल्यू ग्रुप के चेयरमैन सज्जन जिंदल को एआईएमए मैनेजिंग इंडिया अवार्ड्स में मिला 'बिजनेस लीडर ऑफ डिकेड' का पुरस्कार
- उर्वशी रौतेला 12.25 करोड़ रुपये में रोल्स-रॉयस कलिनन ब्लैक बैज खरीदने वाली पहली आउटसाइडर इंडियन एक्ट्रेस बन गई हैं।
- Urvashi Rautela becomes the first-ever outsider Indian actress to buy Rolls-Royce Cullinan Black Badge worth 12.25 crores!
- 'मेरे हसबैंड की बीवी' सिनेमाघरों में आ चुकी है, लोगों को पसंद आ रहा है ये लव सर्कल
देश के 20 प्रतिशत युवा जूझ रहे हैं मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स से

पेडिकॉन -2020 का दूसरे दिन “किशोरावस्था की समस्याओं” विषय पर हुए विशेष सत्र
इंदौर। आज के समय में सभी बच्चों में मोबाइल एडिक्शन, ज़िद, गुस्से और अवसाद जैसी समस्याओं से परेशान हैं और इन सभी समस्याओं का हल खोजने का प्रयास कर रहे हैं। इंडियन एकेडमी ऑफ़ पेडियाट्रिशियन्स द्वारा ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर में ‘क्वालिटी चाइल्ड केयर’ थीम पर आयोजित पेडिकॉन – 2020 का दूसरा दिन बच्चों और किशोरावस्था के दौरान होने वाली ‘बिहेवियर प्रॉब्लम्स’ के नाम रहा रहा।
कॉन्फ्रेंस के चीफ ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ वीपी गोस्वामी ने बताया की नवजात से 18 वर्ष की आयु तक बच्चों में शारीरिक समस्याओं के साथ ही आज के समय में मानसिक समस्याएं एक भयानक रूप लेते जा रही है, स्टडी बताती है देश में 20% किशोर मेंटल हेल्थ से जुझ रहे है इसी को ध्यान में रखते हुए किशोरावस्था के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान आकर्षित करने के लिए अलग-अलग सेशंस तैयार किये गए है जिसमें एक्सपर्ट्स ने कई चौकाने वाले आंकड़े साझा किए और पैरेंट्स के लिए जरुरी सुझाव भी दिए।
किशोरावस्था में भी लगवाने होते हैं टीके
दिल्ली से आए डॉ सी पी बंसल ने कहा कि अमूमन माना जाता है कि बच्चे के 2 का होने के बाद टीकाकरण की प्रक्रिया पूरी हो गई है पर ऐसा नहीं है किशोरावस्था में भी बच्चों को कुछ टीके जरूर लगवाए जाने चाहिए। इसमें सबसे जरुरी है ह्यूमन पेपेलोमा वायरस, जो सर्वाइकल कैंसर का वैक्सीन होता है। दूसरा जरुरी टीका है टिडेप यानि टिटनिस परट्यूटूस डिप्थीरिया वैक्सीन। मीसल्स और रूबेला के साथ ही मम्स का टिका भी लगवाना चाहिए। किशोरावस्था के टिके 10 से 12 साल की उम्र में लगवाए जाने चाहिए। अध्ययनों के अनुसार टिके से मिलने वाली प्रतिरक्षा सिर्फ 10 साल तक ही रहती है इसलिए किशोरावस्था में हैपेटाइटिस ए, हैपेटाइटिस बी और टाइफाइड के टिके फिर से लगवाए जाने चाहिए।
बंगलादेश में 70% शादियां 18 साल से कम उम्र में
चीफ को-ऑर्गेनाइजिंग चेयरपर्सन डॉ शरद थोरा ने बताया कांफ्रेंस में साउथ एशिया पेडियाट्रिक एसोसिएशन (SAPA) के सदस्यों ने अपने प्रदेशों में किशोरावस्था के दौरान सबसे ज्यादा देखे जाने वाली समस्याओं पर चर्चा की जैसे नेपाल से आये डॉ चिन्ना भट्ट ने बताया कम उम्र में शादियों को रोकने के लिए हमने बीस की उम्र से पहले होने वाली शादियों को रजिस्टर करना बन्द कर दिया है वहीं बांग्लादेश से आये डॉ मंजूर हुसैन ने बताया की बांग्लादेश में आज भी 70% शादियां 18 साल से कम उम्र में हो रही हैं। एशिया के इन सभी हिस्सों में किशोरावस्था के दौरान कम उम्र में शादी, शारीरिक शोषण और घरेलु हिंसा यह सबसे गंभीर मुद्दा है।
मीडिया कॉर्डिनेटर डॉ अमित बंग ने बताया आज के सेशन से डॉक्टर, स्टूडेंट्स व हिस्सा लेने वाले सभी लोगो को यह समझना होगा कि अब बाल अवस्था से ही बच्चों में आई क्यु (इंटेलीजेंट कोशंट) के साथ ही इक्यु (इमोशनल कोशंट) और एस क्यु (सोशल कोशंट) को भी बढ़ाना होगा।
बच्चों में बढ़ रही है नशे की आदत
डॉ बसल ने बताया कि भारत सरकार द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक पहले 14 साल की उम्र से बच्चे धूम्रपान की शुरुआत करते थे पर अब 13 साल की उम्र से ही नशे की लत शुरू हो जाती है। इन दिनों किशोरवय लड़कियों में भी शराब की लत बढ़ रही है, जिसका बड़ा कारण टीवी और पब कल्चर है। दिल्ली में किए गए एक अध्ययन में बताया गया कि दिल्ली के बच्चे अमेरिका के बच्चों से भी ज्यादा कैफीन ले रहे हैं, जो अपने आप में चेतावनी है।
डॉ बंसल ने और भी कई महत्वपूर्ण बातें बताई, जो इस प्रकार है –
- किशोरवय बच्चों को एक कप से ज्यादा कॉफ़ी भी नहीं पीनी चाहिए। इसमें कैलोरी ज्यादा होती है इसलिए मोटापा बढाती है। दूसरा इससे मेंटल एक्साइटेशन बढ़ाता है, जिसकी आदत हो जाती है। लंबे समय में यह डिप्रेशन और सुसाइड तक का कारण बन सकती है।
- किशोरों में कार्बोनेटड ड्रिंक्स में अल्कोहल मिलकर पीने की प्रवत्ति देखी गई है पर ये कॉम्बिनेशन जानलेवा साबित हो सकता है। ब्रेकफास्ट कभी भी मिस नहीं करना चाहिए।
-स्टडीज में देखा गया है कि ब्रेकफास्ट करने वाले बच्चों का परफॉमेन्स ब्रेकफास्ट स्किप करने वाले बच्चों से कही ज्यादा बेहतर होता है। - साथ में बैठकर टीवी देखना या मोबाइल चलना क्वालिटी टाइम नहीं होता है। अभिभावकों को दिन में कम से कम एक बार बच्चों के साथ में बैठकर खाना खाना चाहिए। इस वक्त को ऐसा बनाएं कि बच्चे किसी भी विषय पर अभिभावकों से निसंकोच होकर चर्चा कर पाएं।
- एक और रोचक तथ्य अध्ययनों में सामने आया है कि सप्ताह में कम से कम एक दिन मंदिर जाने वाले बच्चों में नशे की लत और बुरी आदतें कम होती है बजाए ऐसा नहीं करने वाले बच्चों के।
भारत में सबसे ज्यादा होती है किशोरावस्था में आत्महत्याएं
किशोरवय बच्चों और उनके अभिभावकों के साथ ‘बिहेवियर प्रॉब्लम्स’ यानि व्यवहार संबंधी समस्याओं पर काम करने वाली विशेषज्ञ डॉ स्वाति भावे बताती है कि भारत में सबसे ज्यादा किशोर आत्महत्या करते हैं। इसके पीछे प्रमुख कारण ऐकडेमिक प्रेशर, रिलेशनशिप, डिप्रेशन और एडिक्शन है। हमारे देश में 262 मिलियन किशोर है और इनमें 10 -20 प्रतिशत डिप्रेशन का शिकार है। डॉ भावे कहती हैं कि यदि हम अपने बच्चों को बचाना चाहते हैं तो अब समय आ गया जब हमें अपने परवरिश के तरीकों पर पहले से ज्यादा ध्यान देना होगा।
करें फैमिली मीडिया मैनेजमेंट, 18 महीने की उम्र तक ना दिखाई कोई स्क्रीन
डब्ल्यूएचओ के अनुसार 10 से 17 वर्ष की उम्र के बच्चे किशोर कहलाते हैं और 18 से 24 वर्ष की आयु के बच्चे यंग एडल्ट्स की श्रेणी में आते हैं। डब्ल्यूएचओ की स्टडी के अनुसार पहले बच्चों का थिंकिंग ब्रेन 18 वर्ष की उम्र तक परिपक्व हो जाता था पर अब डिजिटल वर्ल्ड के एक्सपोज़र के कारण यह 25 वर्ष की आयु तक परिपक्व होने लगा है। यह अंतर पिछले 10 सालों में आया है। जब तक बच्चे का थिंकिंग ब्रेन परिपक्व नहीं होता वह अपने इमोशनल ब्रेन से काम लेता है, यही कारण है कि आजकल बच्चे बिना परिणामों की चिंता किए बस अपनी मनमर्जी करना चाहते हैं। थिंकिंग ब्रेन ही हमें किसी काम के परिणामों के प्रति सचेत करता है पर डिजिटल वर्ल्ड के ज्यादा एक्सपोज़र के कारण बच्चे रियल वर्ल्ड के बजाए वर्चुअल वर्ल्ड में ही रहते हैं और यह उनके ब्रेन डेवलपमेंट को प्रभावित करता है। इससे बचने के लिए फैमिली मीडिया मैनेजमेंट करना बहुत जरुरी है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ़ पेडिएट्रिशियन्स के अनुसार बच्चों को 18 महीने की उम्र तक हर तरह की स्क्रीन से पूरी तरह दूर रखें। 5 साल की उम्र तक बच्चों के साथ बैठ कर वो जो भी टीवी या मोबाइल पर देख रहे हैं, उसे मोरल स्टोरीज की तरह समझाए। इसके बाद भी एक तय समय के लिए ही बच्चों को मोबाइल और टीवी देखने दें।
डॉ एस एस रावत साइंटिफिक कमिटी चेयरपर्सन ने बताया आज के 250 सत्र कहीं ना कही एक दुसरे से जुड़े हुए थे जिससे लय बनी रहे। कांफ्रेंस में साइंटिफिक कमिटी कन्वीनियर डॉ हेमंत जैन, डॉ मुकेश बिरला, डॉ श्रीलेखा जोशी, डॉ अशोक शर्मा, डॉ पी जी वाल्वेकर का विशेष सहयोग रहा। को-ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ राजीव संघवी ने बताया दुसरे दिन विदेश के सभी फैकल्टी ने कांफ्रेंस में हिस्सा लिया।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार बच्चों को जरूर सिखाएं ये लाइफ स्किल्स
- सेल्फ अवेयरनेस
- एम्पैथी
- स्ट्रेस मैनेजमेंट
- इंटरपर्सनल रिलेशनशिप
- डिसीजन मेकिंग
- कम्युनिकेशन स्किल्स
- प्रॉब्लम सॉल्विंग
पैरेंटिंग के दौरान इन बताओं का रखें ध्यान
- हेल्दी लाइफस्टाइल की आदत डालें। बचपन से ही हेल्दी फ़ूड के फायदें समझाएंगे तो बड़े होने पर भी वे जंक फ़ूड से दूर रहेंगे।
- दिन में 2 घंटे एक्सरसाइज़ और 8 घंटे की नींद बेहद जरुरी है। नियमित दिनचर्या की आदत बनाएं।
- सजा देने के बजाए पॉजिटिव डिसिप्लिन रखें। बच्चों को समझाएं कि अच्छे काम का परिणाम अच्छा और बुरे काम का परिणाम बुरा होता है।
- गैजेट्स और इंटरनेट की मॉनिटरिंग करें। (फैमिली मीडिया प्लान बनाएं)
- बच्चों को प्यार जताने के लिए आपका समय दें, तोहफे नहीं।
- बच्चों के साथ हमेशा करियर और ज़िंदगी को लेकर उनका प्लान बी तैयार करवाएं, ताकि वे ऐकडेमिक प्रेशर में न रहें।
- बच्चे अगर कुछ ऐसा करना चाहते हैं, जो उन्हें नहीं करना चाहिए तो उन्हें मना करने के बजाए डिले करने के लिए कहिए यानि उन्हें समझाइए कि जब आप बड़े हो जाओगे तब आपको ऐसा करने से कोई नहीं रोकेगा पर अभी आपकी पढ़ने और खेलने की उम्र है। इससे न वे विरोधी होंगे और न छुपकर वह काम करेंगे।