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रक्त की एक छोटी – सी सीबीसी जाँच में पता कर सकते हैं 150 बीमारियां
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इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के तत्वावधान में रक्त परिक्षण और पैथोलॉजी के क्षेत्र में नविन खोजों पर जानकारी देने के लिए हुआ माइंडरे साइंटिफिक सेमिनार
इंदौर। पहले सीबीसी जैसी रक्त की छोटी – सी जाँच, जो डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेट्स की संख्या जानने के लिए की जाती थी, उससे अब 150 से ज्यादा बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। समय के साथ जिस तरह चिकित्सा के क्षेत्र में नई तकनीक और दवाइयां आ रही है वैसे ही अब पैथोलॉजी से जुडी नई -नई खोजे भी हो रही है, जिससे अब इलाज की प्रक्रिया ज्यादा तेज़ और सटीक हो गई है।
इसी बारे में जानकारी देने के लिए होटल सयाजी में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के तत्वावधान में माइंडरे साइंटिफिक सेमिनार हुआ, जिसमें मुंबई से आए अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त क्लीनिकल हैमेटोलॉजिस्ट डॉ एमबी अग्रवाल ने कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी।
सुपर पॉवर से लेस ब्लड सेल्स करेंगे कैंसर से लड़ाई
डॉ अग्रवाल ने बताया कि आज हमारे देश में बोन मेरो ट्रांसप्लांट तेज़ी से प्रचलित हो रहा है जबकि विदेशों में अब इसकी जगह कार-टी थैरेपी ले चुकी है। इसमें व्यक्ति के शरीर से रक्त रोगप्रतिरोधक क्षमता से परिपूर्ण स्वस्थ सेल्स को निकाल कर, उन्हें एडवांस्ड ट्रीटमेंट के जरिए कैंसर से लड़ने के लिए तैयार कर दोबारा शरीर में डाल दिया जाता है।
इस तरह आपके अपने ब्लड सेल्स सुपर पॉवर से लेस होकर कैंसर से आपकी रक्षा करने में सक्षम बन जाते हैं। चाईना और सिंगापुर जैसे देशों में यह थैरेपी 1.25 लाख में हो जाती है जबकि यूएसए में इस थैरपी को करवाने में 2 से 4 करोड़ रुपए तक का खर्च आता है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक देश में 99 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं होती है एनेमिक
एमडी पैथोलॉजिस्ट डॉ विनीता कोठारी ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक विश्व में 40 प्रतिशत और भारत में 99 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनेमिक होती है। इस स्थिति को ठीक करने के लिए जो आयरन थैरेपी दी जाती है, वह काम कर रही है या नहीं यह जांचने के लिए पहले हमें 15 से 20 दिन इंतज़ार करना पड़ता था जबकि अब यह सिर्फ 3 दिन में पता लग जाता है, जिससे इलाज में तेज़ी आ गई है।
इतना ही नहीं पहले सीबीसी जाँच में सिर्फ एनीमिया होने की जानकारी मिलती थी जबकि अब यह भी पता लग जाता है कि मरीज को किस प्रकार का एनीमिया है। इससे हम ज्यादा सटीक इलाज कर पाते हैं। डॉ कोठारी ने आम जनता को जागरूक करने के लिए यह भी बताया कि आप जिस भी लैब में ब्लड टेस्ट करवाने जा रहे हैं, वह एनएबीएल से मान्यता प्राप्त है या नहीं इसकी जाँच जरूर करनी चाहिए।
कई बार बड़ी पैथलॉजी शहरों में तो मान्यता प्राप्त सेंटर चलती है पर इन्हे के गांवों में स्थित छोटे सेंटर्स मान्यता प्राप्त नहीं होते हैं। यदि आप सही जाँच चाहते हैं तो इस बात पर जरूर ध्यान दें।
तीन साल की स्वच्छता का असर अब दिखा
एपीआई के प्रेसिडेंट डॉ वीपी पांडे ने कहा कि इस तरह के सेमिनार्स में काफी महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है। जैसे पहले धारणा थी कि मरीज के प्लेटलेट्स की संख्या यदि 30 हजार हो गई है तो उसे प्लेटलेट्स चढाने की जरूरत है जबकि आज बताया गया कि यदि मरीज को किसी तरह की परेशानी नहीं है तो प्लेटलेट्स की संख्या 10 हजार होने पर भी प्लेटलेट्स चढाने की जरूरत नहीं है।
डॉ. कोठारी ने बताया एक खास बात जो यहाँ सामने आई वह यह है कि इंदौर में पिछले तीन सालों से चल रहे स्वच्छता अभियान का लाभ अब दिखाई देने लगा है। शहर के लैब्स में हर रोज जाँच के लिए आने वाले एक हजार मरीजों में से, पिछले साल 700 डेंगू के मामले सामने आए थे वही अब यह आंकड़ा मात्र 15 का रह गया है। सफाई के कारण अब मच्छर नहीं होते, जिससे डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियां काफी कम हो गई है। हालांकि अभी भी टाइफाईड के मामले जरूर सामने आते हैं।
मार्केटिंग मैनेजर प्रियांक दुबे ने सेल काउंटर और प्लेथोरा के विकास और इससे मिलने वाली नई जानकारियों के बारे में जानकारी दी। साथ ही पैथलॉजी के क्षेत्र में नवीन खोजों के बारे में जागरूकता से होने वाले फायदें भी बताएं।
समझे रक्त की जाँच से जुड़े नए आयाम
इस सेमिनार में भाग लेने के लिए देवास से आई डॉ संध्या खरे ने कहा कि अभी तक हमें रक्त की जाँच से जुडी पारम्परिक जानकारियां ही थी जबकि आज चिकित्सा जगत में नित-नई खोजें हो रही है। यह सेमिनार रोचक और महत्वपूर्ण जानकारियों से भरपूर रहा, जिसका लाभ हमें अपनी डेली प्रेक्टिस में मिलेगा। सीबीसी जाँच से जुडी नई जानकारियां काफी उपयोगी साबित होगी।