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अक्षय तृतीया विशेष: कलर्स के ‘लक्ष्मी नारायण’ पर परंपराओं की उत्पत्ति के पीछे की 3 सुनी-अनसुनी कहानियां
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जबकि अक्षय तृतीया का शुभ त्योहार आने वाला है, कलर्स अपनी पौराणिक कहानी ‘लक्ष्मी नारायण सुख सामर्थ्य संतुलन’ के साथ एक मनोरम सफर पर निकलने के लिए आपको आमंत्रित करता है, जिसमें हिंदू पौराणिक कहानियों की दुनिया में सफर करते हुए, इस पवित्र दिन के पीछे छिपे महत्व को उजागर किया जाएगा। ब्रह्मांड के आदर्श जोड़े की दिव्य सफर को दर्शाते हुए, यह शो तीन दिलचस्प कहानियों को प्रदर्शित करके, अक्षय तृतीया की शुभता से जुड़ी सुनी-अनसुनी परंपराओं पर प्रकाश डालता है।
लक्ष्मी की जन्म गाथा
भगवान विष्णु अपनी पत्नी, धन और समृद्धि की देवी, लक्ष्मी के साथ अपने संरक्षक स्वरूप, नारायण के रूप में वार्षिक रूप से पुन: प्रकट होते हैं। ‘समुद्र मंथन’ या कॉस्मिक महासागर के मंथन के रूप में प्रसिद्ध खगोलीय घटना में, देवताओं और राक्षसों सहित विभिन्न दिव्य जीवों ने अमृत निकालने के लिए समुद्र का मंथन किया। जैसे-जैसे मंथन आगे बढ़ा, समुद्र की गहराई से कई शुभ रत्न निकलें, जिनमें से एक देवी लक्ष्मी थीं।
लक्ष्मी की पहली भेंट
बहुत से लोग लक्ष्मी की पहली ‘आरती’ के बारे में नहीं जानते हैं, जो दीये के प्रकाश, धूप और प्रार्थना का अर्पण था। लक्ष्मी की उपस्थिति के महत्व और ब्रह्मांड को धन और समृद्धि प्रदान करने में उनकी भूमिका को पहचानते हुए, भगवान विष्णु ने अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर उनकी ‘आरती’ करने की परंपरा शुरू की हैं। पवित्र जल और अखंड चावल के दानों से भरे पवित्र ‘अक्षय’ बर्तन का उपयोग करके, भगवान विष्णु पहली ‘आरती’ करते हैं, जो धन की देवी के प्रति भक्ति और कृतज्ञता का प्रतीक है।
अमर कल्प-वृक्ष
इच्छा-पूर्ति करने वाले दिव्य वृक्ष के रूप में प्रसिद्ध, कल्प-वृक्ष हिंदू पौराणिक कथाओं में विपुलता, पूर्ति और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करने वाला दिव्य प्रतीक है। ‘लक्ष्मी नारायण’ की कहानी के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि कल्प-वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान कॉस्मिक महासागर से हुई थी। अक्षय तृतीया पर, भक्त कल्प-वृक्ष की पूजा करके, समृद्धि और इच्छाओं की पूर्ति का आशीर्वाद मांगते हैं। यह शो इस दिव्य वृक्ष के महत्व और इसकी पूजा से जुड़ी परम्पराओं पर चर्चा करता है।