बक्कल म्यूकोसल ग्राफ्ट यूरेथ्रोप्लास्टी (BMG Urethroplasty) द्वारा यूरेथ्रल स्ट्रिक्चर डिसीज़ से मिला मरीजों को नया जीवन

यूरेथ्रोप्लास्टी से इलाज के दौरान सफलता की दर तकरीबन 80%-90%

इंदौर, 25 अप्रैल 2022: बेहतर स्वास्थ्य से परे इंसानों को अपने जीवन में शरीर संबंधी कई छोटी-बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ठीक ऐसी ही एक गंभीर समस्या है मूत्रमार्ग में असहज रूकावट, जो कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक देखी जाती है। पुरुषों में यूरेथ्रा (पेशाब नली) की लंबाई करीब 20 से.मी. जबकि महिलाओं में करीब 4 से.मी. होती है। मूत्रमार्ग में निहित पतली ट्यूब या नली की पेशाब को शरीर से बाहर करने में अहम् भूमिका होती है। जब सूजन, कमर की हड्डी में चोट (पेल्विक फ्रैक्चर), संक्रमण, केथेटर या फिर किसी ऑपरेशन या एक्सीडेंट के दौरान चोट लग जाती है, ये सभी कारण इस ट्यूब में पेशाब के प्रवाह को रोक देते हैं या धीमा कर देते हैं। चोट लगने या कूल्हे की हड्डी टूटने पर यूरेथ्रा डैमेज हो जाता है। परिणामस्वरूप, यह यूरेथ्रल स्ट्रिक्चर डिसीज़ के रूप में पनपने लगता है। इसका इलाज सामान्य तौर पर देश के बड़े शहरों में ही उपलब्ध होता है, लेकिन इन सबसे परे इंदौर स्थित अग्रणी हॉस्पिटल ‘मेदांता सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल’ ने कुछ वर्षों पहले इस बीमारी से ग्रसित मरीजों को निजात दिलाने के लिए यूरेथ्रोप्लास्टी का जिम्मा बखूबी उठाया और हाल ही में विविध आयु वर्ग के मरीजों का ‘बक्कल म्यूकोसल ग्राफ्ट यूरेथ्रोप्लास्टी’ के जरिए सफलतापूर्वक इलाज किया है।

उक्त बीमारी पर ज़ोर देते हुए डॉ. रवि नागर, एसोसिएट डायरेक्टर एवं हेड, यूरोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट विभाग, मेदांता सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, इंदौर कहते हैं, “यूरेथ्रोप्लास्टी एक ऐसा रिकंस्ट्रक्टिव यूरोलॉजीकल सर्जिकल प्रोसीजर है, जिसमें विभिन्न स्ट्रिक्चर समस्याओं के इलाज के लिए मूत्रमार्ग का पुनर्निर्माण किया जाता है। यह मूत्रमार्ग के संकुचित हिस्से को हटाने या इसे बड़ा करने के लिए किया जाता है। यह बीमारी पुरुषों में यूरेथ्रा यानी पेशाब की नली में सिकुड़न की वजह से होती है, जिसके मुख्य कारण केथेटर, चोट, एसटीडी, इन्फेक्शन, यूरेथ्रा में त्वचा की कोई बीमारी आदि हो सकते हैं। स्ट्रिक्चर 2 से.मी. तक का होता है, तो दूरबीन से ऑपरेट किया जा सकता है, लेकिन इससे अधिक होने पर यूरेथ्रोप्लास्टी द्वारा इलाज को ही उपयुक्त माना जाता है। दूरबीन द्वारा सर्जरी करने के कारण कई बार इस बीमारी के दोबारा उभरने के आसार होते हैं, इसलिए ओपन सर्जरी को अधिक कारगर माना जाता है। इसके चलते ओरल कैविटी (मुँह) की अंदरूनी स्किन का ग्राफ्ट निकालकर प्लास्टिक सर्जरी की जाती है, जिसे सिकुड़न वाले हिस्से पर लगाया जाता है। यह सिकुड़न की समस्या से हमेशा के लिए निजात दिलाता है, और फिर भविष्य में यह कभी नहीं उभरती है।”

क्लीवलैंड क्लिनिक की एक रिसर्च के अनुसार, यूरेथ्रल स्ट्रिक्चर का इलाज करने के लिए यूरेथ्रोप्लास्टी सबसे अच्छा तरीका है। इसकी सफलता की दर तकरीबन 80%-90% से भी अधिक है। कुछ मामलों में, स्थान और लंबाई के आधार पर, सफलता दर विश्वसनीय रूप से लगभग 90% से अधिक होती है। यूरेथ्रल स्ट्रिक्चर में मूत्रनली की स्कारिंग होती है, जो आपके शरीर (मूत्रमार्ग) से मूत्र को बाहर निकालने वाली ट्यूब या नली को संकरा कर देती है। स्ट्रिक्चर मूत्राशय से मूत्र के प्रवाह को प्रतिबंधित कर देती है और मूत्र पथ में सूजन या संक्रमण से यूरिन में रूकावट पैदा करने सहित विभिन्न प्रकार की चिकित्सा समस्याएँ, जैसे- किडनी फैल्योर का कारण बन सकती हैं।

मेदांता सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल द्वारा यूरेथ्रल स्ट्रिक्चर डिसीज़ के इलाज के रूप में दूरबीन द्वारा ओआईयू, ओपन सर्जरी- एनास्ट्मोटिक यूरिथ्रोप्लास्टी, सब्स्टिट्यूशन यूरिथ्रोप्लास्टी, बक्कल म्यूकोसल ग्राफ्ट यूरेथ्रोप्लास्टी आदि की जाती है। विगत माह यूरेथ्रल स्ट्रिक्चर डिसीज़ के चलते कई मरीजों की सफल सर्जरी की गई, जिनमें से एक मरीज युवा आयु वर्ग, अन्य 40-45 वर्ष और एक मरीज लगभग 80 वर्ष का है। सर्जरी का यह तरीका निश्चित तौर पर शहर और इसके आसपास के हर उम्र के मरीजों के लिए सार्थक उदाहरण के रूप में मिसाल कायम करेगा और उन्हें बेहतर जीवन स्तर प्रदान करेगा।

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