डेंटल ट्रीटमेंट को डिजिटलाइजेशन ने बनाया पेनलेस

ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में दो दिवसीय सीडीए-आईडीए डेंटल कॉन्क्लेव हुई शुरू

इंदौर। कॉमनवेल्थ डेंटल एसोसिएशन और इंडियन डेंटल एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय सीडीए-आईडीए कॉन्क्लेव शनिवार को ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में शुरू हुई। कॉन्फ्रेंस में आए डेंटिस्ट ने कहा कि आमतौर पर माना जाता है कि डेंटल ट्रीटमेंट काफी दर्द भरा होता है पर वास्तव में अब ऐसा नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई बदलाव आए है जो डेंटल ट्रीटमेंट को बेहतर और दर्द रहित बनाते हैं।

कॉन्फ्रेंस में पुणे से आए 30 वर्ष का अनुभव रखने वाले डॉ. नितीन बर्वे ने कहा कि रेडियो विजुलोग्रॉफी की मदद से हम डिजिटल एक्सरे करके पेशेंट्स को बेहतर ट्रीटमेंट दे पाते हैं। उन्होंने बताया कि इस तकनीक की मदद से दांतों की पूरी बनावट को हम कम्प्यूटर स्क्रीन पर दिखा पाते हैं और उनमें किस तरह बदलाव करके उन्हें बेहतर बनाया जा सकता है, इस बारे मरीज को आसानी से समझा पाते हैं। इससे मरीज विश्वास बढ़ता है। इससे सटीकता और परफेक्शन बढ़ जाता है।

पहली बार भारत में हो रही कॉमनवेल्थ कॉन्फ्रेंस
यह पहली बार है कि यह कॉन्फ्रेंस इंडिया में आयोजित किया जा रहा है। इसे आईडीए के एमपी स्टेट ब्रांच, गुजरात स्टेट ब्रांच और महाराष्ट्र स्टेट ब्रांच द्वारा संयुक्त रूप से होस्ट किया गया है। हाइब्रिड मोड में आयोजित हो रही इस कॉन्क्लेव में नेशनल और इंटरनेशनल डेलीगेट्स हिस्सा ले रहे हैं। कॉन्फ्रेंस में पहले दिन 2 महत्वपूर्ण सेशन आयोजित किए गए, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से आए एक्सपर्ट अलग-अलग टॉपिक पर डेलीगेट्स के साथ अपनी नॉलेज को शेयर किया। पहले दिन कई रिसर्च पेपर भी पेश किए गए। इसके साथ ही कॉन्फ्रेंस में लेटेस्ट डेंटल टेक्निक से जुड़े कोर्स में भी लोगों ने हिस्सा लेकर अपनी नॉलेज को बढ़ाया।

अमीरों की जॉ बोन होती है कमजोर
30 वर्ष का अनुभव रखने वाले डॉ. नितीन बर्वे ने कहा कि कई साइंटिफिक रिसर्च से बताती है कि अमीर पेशेंट्स की जॉ बोन कमजोर होती है जिससे डेंटल इम्प्लांट लगाने में काफी परेशानी आती है। वहीं गरीब पेशेंट्स की जॉ बोन मजबूत होती है, जो कि डेंटल इम्प्लांट इंस्टॉल करने में काफी मददगार होती है। इसके लिए काफी हद तक लाइफ स्टाइल जिम्मेदार है।

अमीरों में डायबिटीज, कैल्शियम और विटामिन डिफिशिएंसी, ऑस्टियोपोरोसिस जैसे कई बीमारियां मिल जाएंगी, जो उनके बोन को कमजोर कर देती है। इस प्रकार के पेशेंट्स में कस्टमाइज टाइटेनियम मेश बनाते हैं फिर ऑगमेंटेड मटेरियल की मदद से होरिजेंटल और वर्टिकल बोन तैयार करते हैं, जिसमें करीब 6 महीने का समय लगता है, इसके बाद हम डेंटल इम्प्लांट इंस्टॉल करते हैं।

हिपनोटिस से दर्द रहित प्रोसीजर
हुए डॉ. योगेश चंद्राना ने कहा कि डेंटल प्रॉब्लम वाले कस्टमर को ऐसा ट्रीटमेंट देने की जरूरत है जो कम से कम पेनफुल हो और हिपनोटिस डेंटिस्ट्री इसके लिए काफी बेहतर विकल्प है। इसके लिए डॉक्टर की कम्युनिकेशन स्किल काफी मायने रखती है। लोकल एनेस्थीसिया से तेज वोकल काम करता है। डॉक्टर की बातें पेशेंट्स को काफी इफेक्ट करती है। किसी भी प्रोसीजर को करने से पहले डॉक्टर को उस पूरे प्रोसीजर में जो किया जाना है उसके बारे में पेशेंट को अवेयर करना चाहिए, जिससे उसे पता हो कि आगे क्या प्रक्रिया होने जा रही है।

इसके साथ ही पेशेंट्स से बातचीत के दौरान दर्द शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए नहीं तो उसका ध्यान दर्द पर रह जाता है उदाहरण के लिए अगर डॉक्टर को कहना है कि यह बेहद साधारण प्रोसीजर है आपको दर्द महसूस नहीं होगा इसके बदले डॉक्टर को कहना चाहिए कि चलिए प्रोसीजर शुरू करते हैं आप को कुछ महसूस नहीं होगा। इसके साथ ही पेशेंट को ऐसा कम्फर्टेबल इनवार्यमेंट देना चाहिए। एनेस्थिया इंजेक्शन या कोई नुकीला इंस्ट्रूमेंट इस्तेमाल करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसे देखकर उन्हें किसी प्रकार का डर न लगे। इस तरह हम जब कोई प्रोसीजर पेशेंट्स को सब कांजीयस माइंड में ले जाती है और वह पेनलेस प्रोसीजर हो पाती है।

बढ़ा है डेंटल प्रॉब्लम के प्रति रुझान
सेक्रेटरी डॉ. मनीष वर्मा ने बताया कि डेंटिस्ट्री में पिछले 10 वर्षों में काफी बदलाव आया है। कई सारी पेशेंट फ्रेंडली चीजें हुई है, जिससे पेशेंट्स को बेहतर, सटीक और दर्द रहित इलाज करना आसान हो गया है। यही वजह है कि अब लोगों का डेंटल प्रॉब्लम्स के प्रति रुझान काफी ज्यादा बढ़ा है। हमारे पास कई ऐसे मीड एज पेशेंट्स आते हैं, जो आज से 10-15 साल पहले किसी वजह से ट्रीटमेंट नहीं ले पाएं थे लेकिन अब वह ट्रीटमेंट लेने आ रहे हैं।

पेनलेस हो गया है ट्रीटमेंट
कॉन्फ्रेंस के साइंटिफिक चेयरमैन डॉ. राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि पहले हमें कई सारी चीजें मैनुअल करनी पड़ती थी आजकल सब चीजें डिजिटल हो रही है। काफी सारे नए टूल्स और इक्विपमेंट आ गए है, जिससे ट्रीटमेंट अच्छा और पेने लेस हो चुका है। डेंटल इंप्लांट्स के मटेरियल पहले की तुलना में ज्यादा बायो कॉम्पिटेबल और नेचुरल लुक देते हैं। 3डी सीटी स्कैन के कारण ज्यादा बेहतर प्लानिंग हो पाती है।

अच्छी सेहत के लिए जरूरी ओरल हाइजीन
कॉन्फ्रेंस कोर्सेस के चेयरमैन डॉ. गगन जायसवाल ने ऐसी कई रिसर्च है जो कहती है कि अगर किसी व्यक्ति का ओरल हाइजीन अच्छा नहीं है तो उसको मल्टीपल हेल्थ प्रॉब्लम हो सकती है जैसे कार्डियक, मिसकैरेज होना, लो वेट बेबी होना, स्पॉन्डिलाइसिस है आदि की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में यह ओरल हाइजीन का ध्यान रखना हर व्यक्ति के लिए बेहद जरूरी हो जाता है।

कॉस्ट इफेक्टिव हो गए हैं इंप्लांट्स
डॉ. जायसवाल ने कहा कि डेंटल इंप्लांट्स के प्रति लोगों का रुझान काफी बढ़ गया है। इंप्लांट्स पहले की तुलना में सस्ते भी हुए और उनकी क्वालिटी भी काफी बेहतर हुई है। इससे उनकी लाइफ बढ़ गई है और यह ज्यादा कॉस्ट इफेक्टिव हो गया है।

बढ़ गई है कैविटी की समस्या
स्टेट सेक्रेटरी डॉ. विवेक चौकसे ने बताया कि पहले की तुलना में लोगों में कैविटी की समस्या में काफी बढ़ गई है। इसका सबसे बड़ा कारण है की लोग अपने ओरल हेल्थ को लेकर अवेयर नहीं है। न तो उनका खान-पान सही है और न ब्रशिंग टेक्निक। लोग जंक फूड को खाना ज्यादा प्रीफर करते हैं और साथ ही लेट नाइट खाने की आदत में भी काफी इजाफा हुआ है और उसके बाद लोग ब्रश भी नहीं करते हैं। जिस वजह से कैविटी और अन्य डेंटल प्रॉब्लम काफी बढ़ गई है।

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