जानकारी के अभाव में पहली बेटी रह गई बाधिर, दूसरी करने लगी बात

जागरूकता अभियान के तहत आयोजन में जनता को बताई काकलियर इंप्लांट की महत्ता
इंदौर। मुझे जानकारी नहीं थी की अगर बच्चे सुन न पाए और उन्हे बचपन में ही काकलियर इंप्लांट करवा लें तो वह ठीक हो सकते हैं और सामान्य बच्चों की तरह जीवन जी सकते हैं। इसी के चलते मेरी बड़ी बेटी आज बाधिर रह गई जो न सुन पाती है न बोल पाती है। लेकिन छोटी बेटी आर्या की यही परेशानी के समय मुझे इस बात के बारे में पता चला की काकलियर इंप्लांट से यह समस्या दूर हो सकती है तो आज मेरी छेाटी बेटी सामान्य जीवन जी रही है।
यह कहना है की शहर की पुष्पलता का जिसकी दोनों बेटियों के साथ प्रकृति ने खिलवाड़ किया था। दरअसल गांधी जयंती के उपलक्ष्य में शहर में मंगलवार को स्वच्छता संकल्प के साथ ही काकलियर इंप्लांट जागरूकता अभियान चलाया गया।
लायंस क्लब द्वारा इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में 207, जावरा कंपाउंड स्थित लायंस डेन भवन में 20 से अधिक एसे बच्चों को बुलाया गया जो कभी सुन व बोल नहीं पाते थे, लेकिन आज सामान्य जीवन जी रहे हैं। इन बच्चों केा काकलियर इंप्लांट करने के बाद एक वष्र की मेहनत की बदौलत एक नई जिंदगी मिली है।
कार्यक्रम की अध्यक्ष लायन सुशीला मेहता ने बताया की कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डिस्ट्रीक्ट गर्वनर निर्मल जैन ने इसमें भाग लिया। वहीं मध्यभारत में सबसे पहले काकलियर इंप्लांट करने वाली शहर की अरबिंदो हॉस्पिटल विशेषज्ञ डॉ. शैनल कोठारी मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुई। डॉ. कोठारी अब तक ३५० से अधिक इंप्लांट कर चुकी हैं और प्रदेश की पहली काकलियर इंप्लांट करने वाली डॉक्टर हैं।
डॉ. कोठारी ने काकलियर इंप्लांट को लेकर आम जनों के मन में मौजूद भ्रांतियों को दूर किया। साथ ही कुछ एसे बच्चों के ऑपरेशन को लेकर मदद भी की गई। कार्यक्रम में उपस्थित सभी बच्चों व उनके अभिभावकों को स्वच्छता का संदेश देते हुए सफाई संंबंधी सामग्री वितरण की गई।
डॉ. कोठारी ने बताया की मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के तहत आज छोटे बच्चों का काकलियर इंप्लंाट आसानी से हो रहा है जिसका खर्च प्रदेश सरकार उठा रही है। यह सरकार की सराहनीय योजना है जो बच्चों को नया जीवन दे रही है। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लायंस क्लब के अलग अलग रीजन के पदाधिकारी शामिल हुए।

पहला बच्चा नहीं रहा, दूसरा भी था बाधिर

कार्यक्रम में जो बच्चे शामिल हुए उनके परिजनों के चेहरे पर खुशी देखते ही बनती थी। 4 वर्षीय बच्ची नेहा की मां ने बताया कि अगस्त 2013 में उन्हे पहला बच्चा हुआ था जो सामान्य था लेकिन दो दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। एक साल बाद सितंबर 2014 में मेरे घर अंागन में नेहा का जन्म हुआ। नीली आंखों वाली इस गुडिय़ा के जन्म लेने के बाद से ही परिवार में खुशी की लहर दौड़ आई।
नेहा करीब 7 से 8 माह की थी, तब हमें अहसास हुआ की हमारी आवाज को वह सुन नहीं पा रही है और सिर्फ आंखों से इशारे करती थी। एक दिन घर में कोई हादसा हुआ इसके बावजूद नेहा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई जबकि एसी तेज आवाज में बच्चे रोने लगते हैं। इसके बाद हमने डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कुछ जांचें करवाई। तब मालूम पड़ा कि नेहा कभी सुनकर नहीं बोल सकती।
इसके बाद हम इंदौर लेकर आए और यहां डॉ.शैनल कोठारी से मिले। डॉ. कोठारी ने हमें सरकार की योजना बताई और नेहा का ऑपरेशन 2016 में किया। आज नेहा सुन तो पाती ही है हमसे बात भी करती है, जिसके लिए हम डॉ. कोठारी के आभारी हैं।

डेढ़ साल की सेजल की जिंदगी में आई खुशियां

कार्यक्रम में शामिल हुई सेजल की मां आरती ने बताया की सेजल जब डेढ़ वर्ष की थी तब घर के बाहर खेल रही थी। इसी दौरान पीछे सडक़ से एक डंपर आया जो लगातार हार्न बजा रहा था लेकिन सेजल का ध्यान उस और नहीं होने से उस तक हार्न की आवाज नहीं पहुंची और वह रोड़ से नहीं हटी। यह घटना हमारे पड़ोसियों ने देखी और हमें इससे अवगत करवाया।
इसके बाद हम इंदौर के कई अस्पतालों में गए। जहां जांच करवाने पर मालूम हुआ की सेजल दोनों कानों से सुन नहीं पाती। हमें डर लगने लगा क्योंकि एक बार पहले वह मौत के मुंह से लौट चुकी थी। इसके बाद हमने बच्ची का काकलियर इंप्लांट करवाया जिससे आज वह सामान्य स्थिति में आ गई।

Leave a Comment