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ईगल प्रोजेक्ट के तहत देश के 535 मेडिकल कॉलेज के पीजी स्टूडेंट्स को दी जाएगी लेप्रोस्कोपी की ट्रेनिंग
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एंडोगायन कॉन्क्लेव 2019 के समापन सत्र में हुई घोषणा
इंदौर। आज का समय लेप्रोस्कोपी का समय है, इससे न सिर्फ जटिल सर्जरीज़ आसानी से कम समय और खर्च में हो जाती है बल्कि इन्फेक्शन का डर भी नहीं होता। मरीज तेज़ी से रिकवर करके अपनी सामान्य जिंदगी दोबारा शुरू कर पता है। गायनिक लेप्रोस्कोपी का एक और फायदा यह है कि इसमें सर्जरी के बाद कोई बड़ा और भद्दा निशान नहीं रहता।
इन्ही सब फायदों को देखते हुए शहर में चल रही एंडोगायन कॉन्क्लेव 2019 के अंतिम दिन गायनिक लेप्रोस्कोपी को बढ़ावा देने के लिए देश के 535 मेडिकल कॉलेज के पीजी स्टूडेंट्स को लेप्रोस्कोपी की हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग दी जाने की घोषणा की गई। पुणे से आई डॉ सुनीता तेन्दुलवाड़कर ने बताया कि ट्रेनिंग देने का निर्णय आईएजीए सोसाइटी द्वारा लिया गया है, जिसे कॉन्फ्रेंस में हम सभी लोगों ने सहमति प्रदान की।
कॉन्फ्रेंस की कन्वेनर डॉ आशा बक्शी और ऑर्गेनाइजिंग चेयरपर्सन डॉ शेफाली जैन ने बताया कि इस तीन दिनी कॉन्फ्रेंस का मकसद गायनेकोलॉजी में लेप्रोस्कोपिक सर्जरी को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना है। यह एक शुरुआत मात्र है। इस कॉन्फ्रेंस के बाद भी साल भर हम गायनिक लेप्रोस्कोपी के लिए अलग-अलग प्रशिक्षण कायक्रमों को जारी रखेंगे।
कॉन्फ्रेंस के समापन सत्र में ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ धवल बक्शी और डॉ सुमित्रा यादव ने गायनिक लेप्रोस्कोपी के फायदों और नवीन तकनीकों की जानकारी दी। डॉ धवल बक्शी ने कहा कि गायनिक लेप्रोस्कोपी में कॉम्प्लीकेशन और खर्च कम होते हैं और रिकवरी भी जल्दी होती है। कई बड़ी बीमारियों को इसकी मदद से आसानी से ठीक किया जा सकता है, यही कारण है कि हम गायनिक लेप्रोस्कोपी को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं।
करिकुलम का हिस्सा बनी लेप्रोस्कोपी
कॉन्फ्रेंस के अंतिम दिन देश भर से आए एक्सपर्ट्स ने अपने विचार रखें। केरल से आए डॉ सुभाष मलय ने कहा कि जिस समय हम एमबीबीएस कर रहे थे, उस समय लेप्रोस्कोपी के बारे में सुना करते थे। इस विधा को सीखने के लिए हमने सीनियर डॉक्टर के अंडर में कई महीनों तक ट्रेनिंग की थी।
लेप्रोस्कोपी, ओपन सर्जरी से बिलकुल अलग होती है क्योकि इसमें आपको हाथों का फील नहीं मिलता है, सारा काम इंस्ट्रूमेंट के जरिए करना होता। अब तो 3 डी लेप्रोस्कोपी भी होने लगी है। ये सारी चीजे करिकुलम का हिस्सा बन चुकी है। केरल के सभी सरकारी अस्पतालों में 85 लाख के लैप्रोस्कोपी और हिस्ट्रोस्कोपी के सेटअप रखें है पर एक्सपर्ट के आभाव में उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है।
ओपन सर्जरी से बेहतर रिजल्ट
पुणे से आए डॉ आदित्य खुर्त ने कहा कि कई केसेस में लेप्रोस्कोपी के रिजल्ट ओपन सर्जरी ज्यादा अच्छा रिजल्ट देती है। इसमें कम इंसीजन करना पड़ता है और कम्प्लीकेशन भी कम होते हैं। मरीज की छुट्टी भी जल्दी हो जाती है। अब यह स्थिति है कि मरीज खुद हमें लेप्रोस्कोपी के जरिए सर्जरी करने के लिए कहने लगे हैं। यही कारण है कि अब देश के डॉक्टर्स को भी अपग्रेड होना पड़ेगा।
लेप्रोस्कोपी में आ रहे हैं एक्सपर्ट टीचर
कोयम्बटूर से आए डॉ दामोदर राव ने कहा कि लेप्रोस्कोपी एक गैजेट बेस्ड तकनीक है। पहले इसे बोलचाल की भाषा में लाइट या करंट की सर्जरी भी कहते थे। तब लोगों में इसे लेकर एसेप्टेन्स भी कम था और इसका सक्सेस रेट भी कम हुआ करता था पर अब स्थिति बदल गई है। पहले के टीचर्स ओपन सर्जरी ज्यादा करते थे इसलिए उनकी लेप्रोस्कोपी पर उतनी कमांड नहीं थी। जबकि आज ज्यादातर सर्जन्स लेप्रोस्कोपी ही करते हैं इसलिए एक्सपर्ट टीचर्स से पढ़कर एक्सपर्ट स्टूडेंट्स निकल रहे हैं।