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लीवर से जुड़ी बीमारियों से बचा सकता है अगर सही समय पर जानकारी और इलाज हो जाए
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इंदौर । भारतीय युवाओं में पश्चिमी खानपान और खराब लाइफस्टाइल अपनाने की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण लीवर संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। हर किसी के लिए लीवर को पूरी तरह स्वस्थ रखना जरूरी होता है। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर देरी से ध्यान देने के कारण भी देश में लीवर संबंधी बीमारी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 65 फीसदी वैश्विक बीमारियों और 60 फीसदी मृत्यु दर के लिए गंभीर बीमारियां ही जिम्मेदार हैं जिस वजह से हर साल 3.5 करोड़ से अधिक लोगों की जान जाती है। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों को देखें तो लीवर संबंधी बीमारियां दूसरी सबसे गंभीर बीमारी के तौर पर उभरी हैं, जो भारत में मृत्यु दर बढ़ने का कारण बनती जा रही हैं।
मैक्स हॉस्पिटल साकेत में सेंटर फॉर लीवर एंड बिलियरी साइंसेज के चेयरमैन डॉ. सुभाष गुप्ता ने कहा, एडवांस्ड लीवर रोग के सामान्य लक्षण पीलिया (आंखों का रंग पीला हो जाना), भूख न लगना/भोजन की रुचि खत्म हो जाना, कमजोरी और आलस महसूस करना, हल्की चोट भी लगने से असामान्य रक्तस्राव होना और टांगों में सूजन हो जाना आदि हैं। लीवर रोग के बहुत एडवांस स्टेज में पहुंच जाने पर जलोदर (पेट में पानी जमा हो जाना), आंतों से रक्तस्राव और मानसिक स्थिति अशांत हो जाना जैसे लक्षण होते हैं।
वैसे तो सिरोसिस के क्रोनिक वायरल हेपेटाइटिस बी और सी जैसे सामान्य लक्षण धीरे—धीरे गायब हो जाते हैं। हेपेटाइटिस बी को टीके से रोका जा सकता है और यदि कोई व्यक्ति संक्रमित भी हो चुका होता है तो लीवर रोग के बढ़ने से रोकने के लिए प्रभावी दवाइयां उपलब्ध हैं। अच्छी बात यह है कि यदि कोई वयस्क इससे संक्रमित हो जाता है तो 95 फीसदी संभावना रहती है कि छह महीने के अंदर उसका शरीर इस संक्रमण भी छुटकारा पा लेता है। बहुत कम मामलों में ही हेपेटाइटिस बी से बुरी तरह संक्रमित व्यक्ति अचानक लीवर खराब हो जाने का शिकार होता है जिसके लिए तत्काल लीवर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ जाती है।
हेपेटाइटिस सी भी बहुत प्रभावी एंटीवायरल दवाइयों के उपलब्ध हो जाने से नियंत्रित हो चुका है, जिनसे शरीर से यह वायरस हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। हालांकि जिन लोगों का एंटीवायरल थेरापी से सफल इलाज हो चुका है, उन्हें भी लीवर कैंसर पनपने की आशंका के मद्देनजर निगरानी में रखा जाना चाहिए। लीवर कैंसर की शुरुआत में पहचान हो जाने से लंबे समय के बाद ही इसका सफल इलाज हो पाता है।
मैक्स हॉस्पिटल साकेत में सेंटर फॉर लीवर एंड बिलियरी साइंसेज के चेयरमैन डॉ. सुभाष गुप्ता ने कहा, ‘आजकल अत्यधिक शराब का सेवन कई युवाओं में लीवर संबंधी बीमारियां बढ़ाने का बड़ा कारण हो सकता है। डायबिटीज, अत्यधिक वजन और शारीरिक श्रम की कमी के कारण धीरे—धीरे लीवर रोग और इसके बाद लीवर कैंसर जैसी स्थिति बनने लगती है। फैटी लीवर रोग सिरोसिस का ही शुरुआती चरण है और उन लोगों में यह अधिक होता है, जिनका वजन अधिक है, जिन्हें डायबिटीज है और जो शारीरिक श्रम नहीं करते हैं। अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में फैटी लीवर होना आम बात है और यदि लीवर एंजाइम भी बढ़ जाता है तो खतरनाक स्थिति बन जाती है। खानपान में कार्बोहाइड्रेट बंद कर देने और वजन कम कर लेने से फैटी लीवर रोग पर काबू पाने में मदद मिल सकती है।’