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पीडिएट्रिक कार्डियक सर्जरियों में आ रही है रूकावट
कोविड-19 की मुश्किलों और यात्रा पर रोक के बीच- एमरजेन्सी चिकित्सा सेवाओं पर बुरा असर पड़ रहा है
तीन दिन के बच्चे को 17 घण्टे तक वेंटीलेटर पर रखकर अस्पताल लाया गया और कार्डियक प्रक्रिया के लिए एनआईसीयू में भर्ती किया गया
नई दिल्लीः पूरी दुनिया कोरोनावायरस महामारी के डर से जूझ रही है, इस बीच अन्य बीमारियों के मरीज़ों की मुष्किलें बढ़ गई हैं। पाया गया है कि लोग अस्पताल जाने के डर से और इन्फेक्षन से बचने के लिए अपनी ज़रूरी सर्जरी टाल रहे हैं।
किसी भी उम्र या बीमारी के मामले में इलाज को टालना उचित नहीं है। इसके अलावा कई मामलों में नवजात षिषु जन्मजात दिल की बीमारियों के साथ पैदा होते हैं, जिन्हें तुरंत इलाज की ज़रूरत होती है।
डाॅ मुथु जोथी, सीनियर कन्सलटेन्ट, पीडिएट्रिक कार्डियोथोरेसिक सर्जरी, इंटरवेंषनल कार्डियोलोजी, इन्द्रप्रस्थ अपोलो होस्पिटल्स ने कहा, ‘‘दिल की जन्मजात बीमारियां नवजात षिषुओं के लिए जानलेवा साबित हो सकती हैं, अगर इलाज में देरी की जाए।
अगर जन्म के समय इनका निदान और इलाज न हो तो बच्चे को सांस में तकलीफ़, हार्ट मरमर, बार-बार रेस्पीरेटरी एवं फेफड़ों के इन्फेक्शन जैसे लक्षण हो सकते हैं। इससे न केवल बच्चे के जीवन की गुणवत्ता पर बल्कि उसके विकास पर भी असर पड़ता है और उसकी जीवन प्रत्याशा सीमित हो जाती है।’’
हाल ही में यूपी में जन्मे तीन दिन के नवजात शिशु को दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ अपोलो लाया गया, बच्चे को जन्म के बाद सांस में तकलीफ़ हो रही थी। मामले की जटिलता को समझते हुए अपोलो होस्पिटल्स ने तुरंत बच्चे को दिल्ली लाने की व्यवस्था की।
बच्चे को 17 घण्टे की यात्रा के द्वारा वेंटीलेटर के साथ एम्बुलेन्स से दिल्ली लाया गया और अपोलोे होस्पिटल्स में उसकी सफल सर्जरी की गई। सर्जरी के बाद 10 दिन तक उसे नियोनेटल इंटेंसिव केयर में रखा गया, जिसके बाद बच्चे की हालत में सुधार हुआ और फिर उसे छुट्टी दे दी गई।
इस प्रक्रिया के मुख्य सर्जन डाॅ मुथु ने कहा, ‘‘यह मामला बेहद चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि पहले से बच्चे को यहां लाने में समय लगने के कारण इलाज में देरी हो चुकी थी। सर्जरी में जोखिम बहुत अधिक था, क्योंकि बच्चे का वज़न जन्म के समय मात्र 1.5 किलो था। यह सबसे कम वज़न का बच्चा है, जिस पर इस अस्पताल में इतनी जटिल कार्डियक सर्जरी की गई है। समय पर इलाज मिलने के कारण बच्चे को बचा लिया गया।’’
इसी तरह, लुधियाना से आई सात साल के एक बच्ची के दिल में जन्म से ही छेद था, जिसके कारण उसके फेफड़ों में प्रेशर बहुत अधिक था। (बड़ो वेंट्रीकुलर सेप्टल दोष और गंभीर पल्मोनरी हाइपरटेंशन)। परिवार की आर्थिक सीमाओं के चलते कई सालों से सर्जरी में देरी होती रही।
जब निमोनिया और सांस की तकलीफ बहुत बढ़ गई तो एमरजेन्सी में बच्ची को अपोलो होस्पिटल्स लाया गया। लाॅकडाउन के बीच आवागमन में रोक के चलते, बच्ची को दिल्ली लाने की व्यवस्था की गई। उसकी सर्जरी सफल रही। ऐसी स्थिति में, सर्जरी के अलावा यात्रा के लिए अनुमोदन लेना और विभिन्न एनजीओ की मदद से इलाज के लिए धनराषि जुटाना एक बड़ी चुनौती थी। क्योंकि इलाज में एक मिनट की देरी भी मरीज़ के लिए जानलेवा हो सकती थी।
जन्मजात दिल की बीमारियों के साथ पैदा होने वाले बच्चों के इलाज में देरी कई परेषानियों का कारण बन सकती है। इससे न केवल मरीज़ का जीवन जोखिम में पड़ जाता है, बल्कि कई बार देर से इलाज करने के कारण इलाज सफल होने की संभावना भी कम हो जाती है।