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डिजिटल दौर के बावजूद कागज की प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं हो सकती: कलेक्टर
पहले राष्ट्रीय कागज दिवस पर इंदौर पेपर ट्रेडर्स एसो. के कार्यक्रम में डाक टिकट का लोकार्पण
इंदौर. जिस तरह पहली बरसात में मिटटी की सौंधी महक मन को अच्छी लगती हैं, उसी तरह किताबें भी अपनी खुशबू बिखेरती हैं। कागज के बिना जीवन की कल्पना बहुत मुश्किल है। हमारा शहर जिस तरह कचरे की रिसायकलिंग के कारण कचरा मुक्त बन गया है, उसी तरह अब हमें कागज के मामले में भी थ्री आर पद्धति अपना कर इस शहर, राज्य और देश को भी रद्दीमुक्त बनाने की जरूरत है। ऐसा करने से स्वच्छता में तो निखार आएगा ही, कागज बनाने की लागत में भी कमी आएगी। डिजिटल दौर के बावजूद कागज की प्रासंगिकता और उपयोगिता कभी खत्म नहीं हो सकती.
ये विचार हैं कलेक्ट निशांत बरवड़े के, जो उन्होने दुआ सभागृह में इंदौर पेपर ट्रेडर्स एसो. द्वारा राष्ट्रीय कागज दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किये। अध्यक्षता शिक्षाविद डॉ. जयंतीलाल भंडारी ने की। अतिथियों ने इस मौके पर कागज दिवस के प्रसंग पर भारत सरकार द्वारा जारी पांच रू. मूल्य के डाक टिकट का लोकार्पण भी किया। प्रारंभ में कागज से बने फूलों से एसो. के अध्यक्ष आशीष बंडी, सचिव मयंक मंगल, संयोजक राजेन्द्र मित्तल एवं पूर्व अध्यक्ष अरविंद बंडी आदि ने अतिथयों का स्वागत किया।
अध्यक्ष आशीष बंडी ने केंद्र सरकार द्वारा पहली बार राष्ट्रीय कागज दिवस की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि कागज पूरी तरह पर्यावरण हितैषी है, जिसके कारण किसी तरह का प्रदूषण नहीं फैलता क्योकि यह मिट्टी में आसानी से मिल कर नष्ट हो जाता है। देश में प्रति व्यक्ति कागज की खपत 13 किग्रा प्रतिवर्ष हैं जबकि अमरिका में 257 किग्रा। एशिया में यह आंकड़ा 40 किग्रा. प्रति व्यक्ति है।
अध्यक्षता कर रहे शिक्षाविद डॉ. भंडारी ने कहा कि वर्ष 2025 तक देश में कागज की मांग 330 लाख टन तक पहुंच जाएगी, अतः देश में कागज के नए उद्योग स्थापित होना जरूरी है अन्यथा आयात बढ़ने से देश का विदेशी विनिमय गड़बड़ा जाएगा। फिलहाल देश में कागज की मांग की पूर्ति के लिए विदेशों से आयात करना पड़ रहा है।
संचालन संदीप भार्गव ने किया और आभार माना सचिव मयंक मंगल ने। कार्यक्रम में उमेश नेमा एवं अनिल गोयनका सहित शहर के प्रमुख कागज व्यापारी एवं प्रिंटिग व्यवसाय से जुड़े व्यापारी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
इंदौर जैसा कोई नहीं
कलेक्टर निशांत बरवड़े ने अपने प्रभावी उद्बोधन में कहा कि इंदौर की यह खूबी है कि यहा अच्छे कामो के लिए यदि एक कदम उठाया जाता है तो 100 कदम आपके साथ उठ खड़े होते हैं। मैने राज्य के लगभग सभी जिलों को देखा है लेकिन इंदौर जैसा कोई नहीं। कागज विक्रेताओ के बीच आकर मुझे अपना विद्यार्थी काल और आईएएस की तैयारियों के दिन याद आ गए। अभी भी मेरा एक कक्ष किताबों से भरा हुआ है। पहली वर्षा के समय मिट्टी से जैसे सौंधी महक मन को सुकून अनुभ्ूाति देती है, किताबे भी उसी तरह एक खुशबू बिखेरती है।कागज दिवस पर जन जागरण का अभियान स्कूली बच्चांें के बीच जा कर भी चलाना चाहिए। बच्चों को पता होना चाहिए कि कागज के निर्माण में न तो पेड़़ कटते है, न ही पानी का अधिक उपयोग होता है। देश, प्रदेश और शहर को आगे बढ़ाने में कागज की महत्वपूर्ण भूमिका से नई पीढी को भी अवगत होना चाहिए।
जन जागरण अभियान का शुभारंभ
राष्ट्रीय कागज दिवस के मौके पर इंदौर पेपर ट्रेडर्स एसो. के लगभग 150 सदस्यों ने विशेष केप पहन कर एवं पेपर डे के बैज लगा कर गांधी प्रतिमा के समक्ष हाथों में बेनर्स और तख्तियां ले कर कागज के बारे में व्याप्त इन धारणाओं का जोरदार प्रतिकार किया कि कागज के निर्माण से पेड़ कटते हैं और प्रदूषण फैलता है। रीगल चौराहे पर कागज विक्रेताओं ने फेडरेशन ऑफ पेपर ट्रेडर्स एसो. ऑफ इंडिया के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद बंडी के नेतृत्व में नागरिकों को पर्चे भी बांटे। इस दौरान चौराहे की यातायात व्यवस्था को एक क्षण के लिए भी बाधित नहीं होने दिया गया।