होम्योपैथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है

पेश है होम्योपैथी से जुड़े कुछ रोचक सवाल और उनके जवाब …..

क्या होम्योपैथी दवाओं के कुछ साइड इफेक्ट्स हैं? ‘हीलिंग काइसिस’ क्या है?
जवाब – होम्योपैथी दवाओं में साइड इफेक्ट्स के बजाय कभी-कभी ‘हीलिंग काइसिस’ प्रक्रिया देखने को मिलती है। जिसके द्वारा शरीर के जहरीले तत्व बाहर निकलते हैं। मसलन, किसी को बुखार की दवाई दी गई और उस व्यक्ति को लूज मोशन, उल्टी या स्किन पर एलर्जी हो जाए। दरअसल, ये दिक्कतें भी होम्योपैथी इलाज का हिस्सा हैं, लेकिन लोग इसे साइड इफेक्ट समझ लेते हैं। इस प्रक्रिया को ‘हीलिंग काइसिस’ कहते हैं।

क्या होम्योपैथी में इलाज काफी धीमा होता है?
जवाब = 80 – 90 फीसद मामलों में लोग होम्योपैथ के पास तब पहुंचते हैं जब अन्य चिकित्सा पद्धतियों से इलाज कराकर थक चुके होते हैं। कई बार तो 15 से 20 साल से इलाज कराने के बाद पेशंट होम्योपैथ के पास पहुंचते हैं। ऐसे मामलों में इलाज में वक्त लग सकता है।

होम्योपाथी में इलाज कैसे होता है?
जवाब – इसमें मरीज की हिस्ट्री काफी मायने रखती है। अगर किसी की बीमारी पुरानी है तो डॉक्टर उससे पूरी हिस्ट्री पूछता है। मरीज क्या सोचता है, वह किस तरह के सपने देखता है जैसे सवाल भी पूछे जाते हैं। ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानने के बाद ही मरीज का इलाज शुरू होता है। इस पद्धित से अमूमन हर तरह की बीमारियों का समुचित इलाज हो सकता है। पुरानी और असाध्य बीमारियों के लिए तो ये सबसे अच्छा इलाज माना जाता है। एलर्जी, एग्जिमा, अस्थमा, कोलाइटिस, माइग्रेन, जैसी बीमारियों को भी होम्योपैथी जड़ से खत्म कर सकती है। कैंसर के मामलों में भी इसका परसेंटेज काफी अच्छा है। शुगर, बीपी, थाइरॉइड आदि के नए मामलों में यह पद्धति अधिक कारगर साबित होती है।

क्या होम्योपैथी में दवा सुंघाकर भी इलाज किया जाता है?
हां, कुछ दवाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें मरीज को सिर्फ सूंघने के लिए कहा जाता है। मसलन, साइनुसाइटिस और नाक में गांठ की समस्या होने पर डॉक्टर ऐसे ही इलाज करते हैं। 10-15 साल पहले तक होम्योपैथी इलाज के दौरान लहसुन, प्याज जैसी चीजें नहीं खाने की सलाह दी जाती थी लेकिन नए शोधों ने इस सोच को बदल दिया है। अब डॉक्टर इन चीजों को खाने की मनाही नहीं करते। अब इंसानी शरीर प्याज, लहसुन आदि के लिए नया नहीं रहा।

क्या इस चिकित्सा पद्धति से इलाज कराते हुए कोई परहेज नहीं है?
होम्योपैथी की दवा खाने के दौरान जिस एक चीज की सख्त मनाही होती है वह है कॉफी। दरअसल, कॉफी में कैफीन होती है। कैफीन होम्योपैथी दवा के असर को काफी कम कर देती है। कुछ डॉक्टर डियो और परफ्यूम भी लगाने से मना करते हैं। माना जाता है कि इनकी खुशबू से भी दवा का असर कम हो जाता है।

क्या दवायें प्लास्टिक या काँच की डिब्बी में होने से भी फर्क पड़ता है?
जवाब – होम्योपैथिक दवाएं कांच की बोतल में देना ही बेहतर है। अगर उस पर कॉर्क लगा हो तो और भी अच्छा। दरअसल, होम्योपैथी की दवाओं में कुछ मात्रा में अल्कोहल का उपयोग किया जाता है। अल्कोहल प्लास्टिक से रिऐक्शन कर सकता है। वैसे, आजकल प्लास्टिक बॉटल की क्वॉलिटी भी अच्छी होती है। इसलिए प्लास्टिक का इस्तेमाल भी कई डॉक्टर दवाई देने के लिए करते हैं। दरअसल, कांच की बॉटल के टूटने का खतरा होता है। इसलिए अमूमन इनका इस्तेमाल कम ही किया जाता है।
 

कहाँ बनी हुई दवाइयाँ ज्यादा बेहतर हैं?
जवाब – होम्योपैथी की दवाई के उत्पादन और गुणवत्ता के मामले में जर्मनी पूरी दुनिया में आगे है। इंडिया में होम्योपैथी की डिमांड को देखते कुछ जर्मन कंपनियों ने यहां भी अपने सेंटर शुरू किए हैं। कई भारतीय कंपनियां भी अच्छी दवाएं बना रही हैं। मगर मैं फिर दोहरा रहा हूँ कि होम्योपैथी का भविष्य भारत में ही है।
 

सफेद मीठी गोलियों और लिक्विड दवा में क्या फर्क है?
जवाब – होम्योपैथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है। लेकिन जहाँ ज्यादा डोज दिया जा सकता है वहाँ लिक्विड फॉर्म में दवा सीधे भी दी जाती है। दरअसल होम्योपैथिक दवाएं सीधे हमारे नर्वस सिस्टम को उत्तेजित करने के लिए बनी हैं। चूंकि जीभ से पूरा नर्वस सिस्टम जुड़ा हुआ है, इसलिए हम इन दवाइयों को जीभ पर रखते हैं. अगर हम इसे जीभ पर नहीं रखेंगे तो यह सही से काम नहीं करेगी.

जीभ पर रखने से दवाई का असर पूरे नर्वस सिस्टम पर एक साथ हो जाता है। जीभ से दवाई नर्वस सिस्टम में जब तक न घुसे या दवाई के साथ कुछ और चीजों का असर न हो, तब तक किसी और चीज को लेने की मनाही है। इसलिए होम्योपैथिक दवाइयों के खाने से आधे घंटा पहले और आधा घंटे बाद में कुछ भी खाने-पीने की अनुमति नहीं होती है। इन दवाओं का एक्शन मुंह से शुरू होता है। कुछ लीक्विड फॉर्म वाली होम्योपैथिक दवाइयों को जीभ से नहीं ली जाती है. इसे पानी के साथ लिया जाता है।

होम्योपैथी दवायें जीभ पर रखने के पीछे क्या साइंस है?
जवाब – होम्योपैथिक दवाई में मौजूद रसायन जीभ के नीचे म्यूकस मैंब्रेन के संपर्क में आता है। यह रसायन संयोजी ऊतक तक फैल जाता है। इसके नीचे इपीथेलियम सेल्स होते हैं जिनमें असंख्य नलिकाएं होती हैं। दवाई में मौजूद रसायन इन्ही नलिकाओं के माध्यम से रक्त परिसंचरण तंत्र में पहुंच जाता है। होम्योपैथिक दवा सीधे ब्लड सर्कुलेशन में पहुंचती है। इसलिए यह तेज गति से प्रभावित अंगों तक पहुंचती है। अन्य दवाइयों के विपरीत यह सिर्फ स्लायवरी एंजाइम के संपर्क में आती है। इसलिए इसका अन्य अंगों पर कोई खास साइड इफेक्ट नहीं होता है।

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