इंद्रियों के आधार पर होता है सुख-दुख का अनुभव: मनीषप्रभ सागर

इन्दौर।  मनुष्य इंद्रियों के अधीन रहता है।  जब वातावरण प्रतिकूल होता है तो रोता है, जब वातावरण अनुकूल होता है तो हंसता है। इंद्रियों के कारण ही हंसता है रोता है। इंद्रियों के आधार पर ही हम सुख दुख का अनुभव करते हैं। इंद्रियों को वश में करने के लिए संयम जरूरी है। संयम के लिए साधना, तप आराधना, जरूरी है। इससे धर्म आगे बढ़ेगा।
उक्त विचार खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य मुनिराज मनीषप्रभ सागर ने शुक्रवार को कंचनबाग स्थित श्री नीलवर्णा पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट में चार्तुमास धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि परमात्मा की आज्ञा की अवहेलना से हमें भारी नुकसान होता है। जिसकी कोई भरपाई नहीं कर सकता। इसे बताने के लिए मुनिराज ने एक ज्ञानवर्धक कहानी सुनाई।
एक बार नेपोलियन युद्ध कर रहा था। रात में सैन्य छावनी के लिए निर्देश दिया कि कोई भी किसी भी तरह की रोशनी नहीं करेगा। नेपोलियन ने रात में छावनी में घूमकर देखा तो एक टेंट में हल्की सी रोशनी जल रही थी। इस रोशनी मे एक सैनिक पत्र लिख रहा था। नेपोलियन के पूछने पर सैनिक ने बताया कि लंबे समय से बाहर होने के कारण उसे घर की याद आ रही थी। तब नोपोलियन ने कहा कि इस पत्र में अंतिम लाइन यह भी लिखों कि  अब अगले पत्र का इंतजार मत करना। इसके बाद सुबह सारे सारे सैनिकों के सामने नेपोलियन ने उस सैनिक को गोली मार दी और कहा कि उसने आदेश का पालन नहीं किया जो जरूरी है।
मुनि मनीषप्रभ सागर मसा ने कहा कि जब आदेश का पालन नहीं करने पर सैनिक को मृत्युदंड दिया जा सकता है तो आप समझें कि परमात्मा की आज्ञा का पालन न करने पर हमें क्या सजा मिलेगी। यदि हमने स्वामी क ी आज्ञा अवहेलना की तो नरक भोगना होगा। क्योंकि आज्ञा ही धर्म है। हमने सिद्धांतों से समझौता कर लिया है। अपने हिसाब से सिद्धांतों को ढाल लिया है। इससे धर्म पीछे जाता है।  यदि हमने परमात्मा की आज्ञा जैसा जीवन जीया तो तन-मन स्वस्थ रहेगा। भले ही शास्त्र न पढ़ें, सामयिक न करें, लेकिन परमात्मा की आज्ञा को माने।

होगा आत्मा का उत्थान

मुनि मनीषप्रभ सागर मसा ने कहा कि सिद्धांत के प्रति, धर्म के प्रति और आत्मा के प्रति श्रद्धा रखें, ऐसा करने पर दुख नहीं होता। मुनियों ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी प्राणों की आहुति दे देते हैं और हम जिन शासन की रक्षा के लिए सिद्धांतों का अनुसरण भी नहीं करते। धर्म का ऐसा पालन करें कि लोग हमारा अनुसरण करें, हमारे आचरण, व्यवहार, खान-पान, भाषा का ऐसा उपयोग हो कि लोग उसे  उदाहरण के रूप में माने। श्रद्धा के अभाव में धर्म पिछड़ता है।  हम मन, इंद्रियों, शरीर को महत्व देते हैं। इससे सिद्धांत व धर्म भूल जाते हैं। सम्यक की नींव मजबूत होने से धर्म श्रेष्ठ होता है। जैसे हम प्रश्न सुनते हैं, प्रश्न करते हैं, उसे जीवन में उतारते नहीं है तो प्रश्न का मूल्य नहीं होता।  चाहे परिस्थितियां अनुकूल हो या प्रतिकूल, र्म के प्रति, शासन के प्रति वफादार रहने, अडिग रहने से, आत्मा का उत्थान होगा। जिन शासन का प्रभाव बढ़ेगा।
नीलवर्णा जैन श्वेता बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता एवं सचिव संजय लुनिया ने जानकारी देते हुए बताया कि खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी के सान्निध्य में उनके शिष्य पूज्य मुनिराज श्री मनीषप्रभ सागरजी म.सा. आदिठाणा व मुक्तिप्रभ सागरजी प्रतिदिन सुबह 9.15 से 10.15 तक अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगे। रविवार को बच्चों का शिविर लगेगा। कंचनबाग उपाश्रय में हो रहे इस चातुर्मासिक प्रवचन में सैकड़ों श्वेतांबर जैन समाज के बंधु बड़ी सं या में शामिल होकर प्रवचनों का लाभ भी ले रहे हैं। धर्मसभा में राजेश सुराणा, दीपेश दोषी, दिलीप जैन, प्रकाश लुनिया, सचिन जैन आदि उपस्थित थे।

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