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भविष्य को सुधारने वर्तमान में अच्छे काम जरूरी: मनीषप्रभ
इन्दौर. चातुर्मास एक व्यवस्था कैंप है. इस कैंप के लिए समय निकालें. चातुर्मास में कर्मों की बीमारी का इलाज मिलता है. चातुर्मास वह सीढ़ी है जिससे पता चलता है कि जीवन क्यों जीना है, कैसे जीना है, कैसे रहना है, क्या विचार व्यक्त करना है, चेतना को जगाना है. अंत में संकट में आने पर पश्चाताप करने से अच्छा है कि चातुर्मास में तप करें.
उक्त विचार आचार्य जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी के शिष्य मुनिराज मनीषप्रभ सागर ने शनिवार को कंचनबाग स्थित श्री नीलवर्णा पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट में चातुर्मास धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए.
मुनिराज मनीषप्रभ सागर ने आगे कहा कि यदि वर्तमान में दुख है तो मान लीजिए आपने जो काम भूतकाल में किए है, उसका नतीजा है. इसलिए चेतना को जगाकर वर्तमान में अच्छे काम करें ताकि भविष्य सुधर जाए. महावीर स्वामी ने कहा है कि इस संसार में कोई किसी को सुख नहीं दे सकता, कोई किसी को दुख नहीं दे सकता. यह हमारे कार्य है जो हमें सुख-दुख देते हैं. उन्होंने बताया कि मनुष्य किसी एक वस्तु की प्राप्ति के लिए सारे जतन करता है, लेकिन जप वह वस्तु प्राप्त कर लेता है तो दूसरी वस्तु के पीछे लग जाता है। यही क्रम चलता रहता है।
वर्तमान को अच्छा बनाने के लिए आपाधापी-भागदौड़ कभी काम आने वाली नहीं है। साथ चलने वाली नहीं है, इससे भविष्य भी अच्छा नहीं होगा। वर्तमान और भविष्य को बेहतर बनाने के लिए 24 घंटे में से कुछ समय चिंतन, साधना आराधना, चेतना के लिए खुद के लिए निकाले।
यहीं रह जाएंगे सारे साधन
मुनिराज मनीषप्रभ सागरजी ने कहा कि व्यक्ति सुबह से शाम तक किसी न किसी काम में लगा रहता है ताकि उसका वर्तमान में सुधार हो, बेहतर हो जाए. वह राग-द्वेष, छल-कपट, मेहनत से सारे साधन प्राप्त करता है लेकिन वह भूल जाता है कि सारे प्राप्त साधन, सामग्री और शरीर यहीं रह जाएंगे. यदि वह यह जान ले कि इन सभी साधनों का मुझे क्या काम है तो उसका भविष्य सुधर जाएगा.नीलवर्णा जैन श्वेताबर मूर्तिपूजक ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता एवं सचिव संजय लुनिया ने जानकारी देते हुए बताया कि आचार्य जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी के सान्निध्य में उनके शिष्य पूज्य मुनिराज मनीषप्रभ सागरजी आदिठाणा प्रतिदिन सुबह 9.15 से 10.15 तक अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगे.