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हर तीन में से एक बच्चा है हिडन हंगर का शिकार
पेडिकॉन -2020 के तीसरे दिन बच्चों के स्वास्थ्य पर वातावरण और भोजन के प्रभाव पर हुई चर्चा
इंदौर। बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है पर जिस देश के बच्चे ही स्वस्थ नहीं होंगे उस देश का भविष्य भला कैसा होगा। इंडियन एकेडमी ऑफ़ पेडियाट्रिशियन्स द्वारा ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर में ‘क्वालिटी चाइल्ड केयर’ थीम पर आयोजित पेडिकॉन – 2020 के तीसरे दिन बच्चों के स्वास्थ्य पर उनके आसपास के वातावरण और खानपान के असर पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई, जिसमें कई चौंकाने वाले आंकड़ें भी सामने आए। इजिप्ट से आए डॉ वेल बहबह ने सभी का ध्यान हिडन हंगर की ओर खींचा। उन्होंने बताया गुणवत्तापूर्ण भोजन ना करने के कारण दुनिया के हर 3 में 1 बच्चा हिडन हंगर का शिकार है।
कॉन्फ्रेंस के चीफ ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ वीपी गोस्वामी ने बताया कि इस चार दिनी कॉन्फ्रेंस में टीके और सर्जरी के नए तरीकें बताने के साथ ही डॉक्टर्स के रिसर्च पेपर भी प्रस्तुत किए जा रहा हैं इस कॉन्फ्रेंस में एक्सपर्ट्स ने यह भी बताया कि दुनिया भर के थैलेसीमिक बच्चों में 9.24 मिलियन ब्लड की आवश्यकता है जबकि हमें सिर्फ 9 मिलियन ब्लड ही मिल पा रहा है।
थैलेसीमिक बच्चों का दिल बहुत कमज़ोर होता है ऐसे में रक्त नहीं मिल पाना बहुत ही गंभीर स्थिति है। अब बोन मेरो ट्रांसप्लांट बहुत ही अच्छा विकप आया हैं इन बच्चों के लिए। जिसमें अच्छे अस्पतालों के 60 से 70 प्रतिशत केस सक्सेस रिजल्ट देखे गए हैं। इन बच्चों के केस में पहले जहाँ सिर्फ घरवाले ही मरीज को रक्तदान कर सकते थे अब एचएलए मैचिंग के साथ अब किसी भी व्यक्ति का रक्त इन बच्चों को चढ़ाया जा सकता है।
कॉन्फ्रेंस के चीफ को-ऑर्गेनाइजिंग चेयरपर्सन डॉ शरद थोरा ने बताया कि कांफ्रेंस के तीसरे दिन कई तकनिकी और शिक्षाप्रद सेशंस हुए, जिसका फायदा आगामी वर्षों में साफ देखा जा सकेगा। इस मौके पर कॉन्फ्रेंस की ऑर्गनाइजिंग कोर कमिटी के सदस्य डॉ दीपक फंडसे, डॉ प्रमोद जैन और डॉ निर्भय मेहता भी उपस्थित थे।
प्रदूषित वातावरण में रहने वाले बच्चों को अस्थमा का खतरा ज्यादा
बच्चों में भी अस्थमा एलर्जी एक बड़ी समस्या है। इंडियन एकादमी ऑफ़ पीडियाट्रिशियन के रेस्पेरेटरी चैप्टर के सेक्रेटरी बंगलौर से आए डॉ सुब्रमण्या एन के कहते हैं कि एलर्जी और अस्थमा अलग-अलग चीजे हैं। एलर्जी में त्वचा से जुडी समस्याएं जैसे रेशेस, दाने उठना आदि प्रमुखता से शामिल है, वही अस्थमा होने पर हवा में मौजूद कणों के कारण साँस लेने में समस्या होती है। यह समय के साथ बढ़ती जाती है। अस्थमा जेनेटिक और पर्यावरणीय कारणों से हो सकता है।
पर्यावरणीय कारणों में लंबे समय तक ध्रूम्रपान या फिर प्रदूषित हवा के बीच में रहने से हो सकता। वही जेनेटिक रूप से प्रोन-अस्थमेटिक लोगों में इस तरह की परिस्थिति में कम समय रहने पर भी क्रिटिकल अस्थमा हो सकता है। जो बच्चे मुख्य ट्रैफिक से जुड़े क्षेत्रों में रहते हैं या दिल्ली जैसे प्रदूषित शहरों में रह रहे हैं, उन्हें अस्थमा का खतरा ज्यादा होता है इसलिए हम अभिभावकों को जागरूक करके बच्चों को इंडोर और आउटडोर पॉल्यूशन से बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
अस्थमा के इन्हेलर्स और स्टेरॉयड है पूरी तरह सुरक्षित
डॉ सुब्रमन्या ने कहा कि अभिभावकों को भी यह समझना भी जरुरी है कि यदि किसी चीज से बच्चों में अस्थमा के लक्षण दिखाई देते हैं तो बच्चों को उन चीजों से दूर करने से कोई फायदा नहीं होगा। आपको डॉक्टर को दिखाकर इसका सही इलाज लेना जरुरी है ताकि ऐसी चीजों के संपर्क में आने पर भी बच्चों को किसी तरह की समस्या ना हो। इसी तरह अभिभावक हमसे अस्थमा के इलाज में उपयोग होने वाले इन्हेलर्स और स्टेरॉयड के बारे में भी कई सवाल करते हैं। मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि ये सभी पूरी तरह से सुरक्षित है, यह सीधे कम डोज लुंग्स तक पहुचाते है और इसकी आदत भी नहीं पड़ती है।
फ़ूड इन्टॉलरेंस और फ़ूड एलर्जी में अंतर समझना जरुरी है
डॉ सुब्रमन्या ने बताया कि किसी भी खाद्य पदार्थ को खाने के बाद होने वाली सामान्य परेशानी फ़ूड इन्टॉलरेंस होता है, जो समय के साथ खुद-ब-खुद ठीक हो सकता है, जैसे दूध या दही खाने के बाद कफ होना। वही फ़ूड एलर्जी होने पर आपको उस खाद्य पदार्थ को खाने के कुछ समय बाद स्किन पर रेशेस, दाने और खुजली जैसी समस्याएं होने लगेगी। एक बार किसी तरह की परेशानी आपको फ़ूड इन्टॉलरेंस के कारण भी हो सकती है परंतु अगली बार भी किसी खाद्य पदार्थ से आपको परेशानी हो तो फिर डॉक्टर्स से सलाह लें। 10 ऐसे बच्चें जिनके माँ पिता उनमें फ़ूड एलर्जी समझते है उनमें से 9 फ़ूड इन्टॉलरेंस केस होते है और एक फ़ूड एलर्जी का। एक्सपर्ट्स कहते है पालक स्वयं ही एलर्जी मान कर बच्चों की डाइट से विटामिन सी और फाइबर जैसे जरुरी तत्त्व ख़त्म कर देते है इसमें अमरुद, संतरा, केला और दही प्रमुख देखे गए है। बच्चों को क्या खाना चाहिए इस पर डॉ सुब्रमन्या बच्चों को ग्रोसरी स्टोर में मिलने वाली हर चीज खिलानी चाहिए और बेकरी में मिलने वाली चीजों से बचना चाहिए।
चिकित्सकों पर विश्वास पैदा करने के लिए एजुकेशन सिस्टम को बेहतर बनान जरुरी
प्रो. डॉ अशोक रावत ने कहा कि इन दिनों देखा जा रहा है कि लोगों का डॉक्टर्स में विश्वास कम होने लगा है। एम्स में जिस तरह की सुविधाएँ और सेवाएं दी जा रही है यदि देश के हर अस्पताल में ऐसी ही सुविधाएँ मिलने लगे तो चिकित्सा का स्तर अपने आप बेहतर हो जाएगा। इसके साथ ही मेडिकल की पढाई के दौरान यदि गुरु अपने शिष्य को तकनिकी ज्ञान के साथ कम्युनिकेशन स्किल्स भी सिखाएं तो आगे चलकर ये डॉक्टर्स मरीजों के साथ बेहतर संवाद स्थापित कर पाएंगे, जिससे मरीज और डॉक्टर के बीच विश्वास बढ़ेगा और समस्याएं कम होगी।
अमीर घर के बच्चे भी है हिडन हंगर का शिकार
इजिप्ट से आए डॉ वेल बहबह ने बताया दुनिया में एक तरफ जहाँ कुपोषण से बच्चों की मौत हो रही है वही दूसरी ओर अच्छे घरों के बच्चे भी गुणवत्तापूर्ण भोजन ना करने के कारण कुछ अलग तरह की बीमारियों से मृत्यु का शिकार हो रहे हैं। उन्होंने दुनिया भर के बच्चों पर किए गए विभिन्न अध्यायों में सामने आए कुछ चौंकाने वाले आंकड़ें भी बताए-
- दुनिया के 2 बिलियन बच्चों में आयरन और ज़िंक की कमी होती है।
- दुनिया भर में 5 साल की उम्र के 7 मिलियन बच्चे दोनों तरह के कुपोषण के शिकार है।
- दुनिया में हर 3 में से 1 बच्चा हिडन हंगर का शिकार है।
- दुनिया भर के 10 प्रतिशत बच्चों में जरुरी विटामिन्स की कमी देखी गई है।
- हिडन हंगर के शिकार बच्चे के स्कूल पर्फोमन्स में 30 प्रतिशत तक गिरावट देखी गई है।
- हिडन हंगर के शिकार बच्चों की हाइट और मानसिक विकास सही स्तर तक नहीं पंहुचा पाता है।
- हिडन हंगर के शिकार 7 प्रतिशत बच्चे भविष्य में लाइफ स्टाइल डिसऑर्डर के चपेट में आते हैं।