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औषधियों, तेल, व्रत एवं दान के द्वारा गुरु पीड़ा मुक्ति

डॉ श्रद्धा सोनी, वैदिक ज्योतिषाचार्य
औषधि स्नान
गुरु के अशुभ होने की स्थिति में औषधि स्नान का विशेष महत्त्व है । औषधि स्नान
से भी गुरुकृत रोग तथा गुरु के अशुभ प्रभाव में कमी आती है।
औषधि स्नान सामग्री
हल्दी, स्वर्णचूर्ण, शहद, चावल, पीली सरसों, मुलहठी, नमक, शक्कर पीले पुष्प, गूलर आदि किसी भी वृक्ष के ताजे नए पत्ते आदि।
विधि- औषधि स्नान किसी भी शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से आरम्भ करना चाहिये। इसके लिये ताजे पत्ते एवं पीले पुष्पो के अतिरिक्त सामग्री समान मात्रा में लें अथवा जितनी उपलब्ध हो जाए उसे किसी भी देसी दवा बेचने वाले से खरीद कर कूट-पीस लें। फिर जिस गुरुवार से स्नान करना है उससे एक रात्रि पहले (बुधवार की रात्रि) इस सामग्री में से थोड़ी मात्रा में लेकर जल में भिगो दें। चूर्ण न मिला पाने की स्थिति में रात भर के लिये सोने का कोई भी आभूषण अथवा मुद्रिका जल में डाल दें। अगले दिन प्रातः काल उस सामग्री को छान कर स्नान के जल में मिला
दें। ताजे पत्ते व पीले पुष्प इस समय मिलायें। फिर उस जल से स्नान करें।
ऐसा आप प्रारम्भ में एक माह प्रत्येक गुरुवार को औषधि स्नान करें, इसके बाद लगातार अथवा 43 दिन तक स्नान करें। माह में एक बार भी स्नान कर सकते हैं।
यदि आप रोज अथवा प्रत्येक गुरुवार को स्नान करना चाहें तो भी कर सकते हैं। इससे कोई हानि नहीं होती है अपितु गुरुकृत रोग व कष्टों से मुक्ति मिलती है।
बृहस्पति तेल
आपको यदि कोई गुरुकृत रोग है, स्मरण शक्ति क्षीण हो रही है अथवा बाल असमय सफेद हो रहे हैं तो इस तेल के प्रयोग से पूर्ण लाभान्वित हो सकते हैं।
गुरु तेल बनाने के लिये आप 1 लीटर नारियल तेल लें। उसमें 10 ग्राम पिसी हल्दी मिलाकर गर्म कर लें। फिर उसे छान कर उसमें 15 ग्राम चन्दन का तेल मिश्रित करें। इसके बाद एक पीले कांच की बोतल में तेल डाल कर ढक्कन से बन्द कर सील कर दें। यदि आपको पीले कांच की बोतल न मिले तो किसी भी सफेद कांच की बोतल पर पीली पारदर्शी पन्नी अथवा कागज लपेट कर भी तेल बना सकते हैं। बोतल को सूर्योदय के बाद प्रथम दो घण्टे के लिये धूप में रखें। फिर पीले कपड़े में लपेट कर किसी ठंडे स्थान पर रख दें। अगले दिन पुनः सूर्योदय के समय धूप में रखें। ऐसा 15 दिन तक रखें। दूसरी ओर 500 ग्राम नारियल तेल में गुड़हल के पत्ते डालकर ठीक से गर्म कर लें। पत्ते एकदम से जल कर काले हो जाने चाहिये। इस तेल को भी धूप में तैयार तेल में मिला दें। तेल तैयार है। इस तेल का प्रयोग मालिश की तरह करें। सिर में डालने के लिये इस तेल में 11 बूंद नींबू का रस मिलाकर कर प्रयोग करें। इसके प्रयोग से आपको गुरुकृत रोग व कष्टों से मुक्ति मिलेगी। शरीर में अलग ही प्रकार का तेज अनुभव करेंगे। यह तेल श्वास रोग, दमा विकार, शिरो रोग, बालों का असमय सफेद होना, झडना व अन्य गरुकत रोगों के उपचार में अमृत का कार्य करेगा। स्त्रियां अपनी त्वचा की कान्ति निखारने के लिये इस तेल की मालिश कर सकती हैं। इस तेल के प्रयोग से त्वचा की कान्ति बढ़ती है। सिर में डालने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। बालों का सफेद होना अथवा झडना जैसे रोग में यह तेल संजीवनी का कार्य करता है।
बृहस्पति व्रत
गुरु का अशुभ फल कम करने के लिये व शुभ फल में वृद्धि के लिये (गुरुवार) का व्रत बहुत अच्छा प्रभाव देता है। इसके लिये यदि आप मीठा व्रत रखते हैं तो अधिक अच्छा है अन्यथा बिना नमक के भोजन का व्रत का संकल्प लेकर 7 अथवा 21 गरुवार का मीठा व्रत रखें। इसके लिये पूरे दिन निराहार रहे तो बहुत शुभ है अन्यथा एक समय फलाहार कर सकते हैं। उसके बाद भोजन कर सकते हैं। भोजन पूर्णतः शद्ध व शाकाहारी हो। इस व्रत से श्रीहरि एवं बृहस्पतिदेव की कृपा प्राप्त प्राप्त होती है व गुरुकृत कष्टों से मुक्ति मिल कर मानसिक व शारीरिक शक्ति बढ़ती है। यह व्रत आप किसी भी शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से कर सकते हैं। व्रत वाले दिन पीले वस्त्र
धारण करें अथवा अपनी जेब में पीला रूमाल अथवा पीला वस्त्र रखें। भोजन से पूर्व गाय को हल्दी से तिलक कर दो आटे की लोई अर्थात् आटे के पेड़े के साथ गुड़
चने की गीली दाल खिलायें। भोजन में बेसन से निर्मित किसी भी पदार्थ का भोजन कर सकते हैं। भोजन से पूर्व ॐ ग्रां ग्रीं गौं सः गुरवे नमः का 31, 51 अथवा 100 जाप करें। प्रातः पीपल के वृक्ष को पीले चन्दन अथवा चन्दन में हल्दी घिस कर तिलक करें व शुद्ध घी का दीपक, धूप-अगरबत्ती के साथ जल अवश्य अर्पित करें, फिर केसर से अपने मस्तक पर तिलक करें। यदि आप चाहें तो कवच, स्त्रोत अथवा 108 नामों का उच्चारण भी कर सकते हैं। आपने जितने व्रत का संकल्प लिया है उतने व्रत पूर्ण होने पर आप उद्यापन करें तथा गुरु से सम्बन्धित वस्तुओं का दान करें। यदि आप और अधिक व्रत रखना चाहते हैं तो उद्यापन के बाद बिना संख्या के एक समय के सामान्य भोजन का व्रत रख सकते हैं। इस व्रत को करने से धन की प्राप्ति तथा स्थिरता एवं यश की वृद्धि होती है। अविवाहित इस व्रत को करते हैं तो उनके विवाह का योग शीघ्र बनता है। अगर विद्यार्थी यह व्रत करते हैं तो उनकी बुद्धि तीक्ष्ण होती है तथा उच्च शिक्षा के अवसर बढ़ते हैं।
विवाह हेतु विशेष प्रयोग– यह मेरा स्वयं का शोध है कि जैसे किसी कन्या की
विवाह की आयु हो गई है तथा पत्रिका में विवाह योग भी है परन्तु अज्ञात कारणों से
विवाह नहीं हो पा रहा है तो कन्या गुरु यंत्र की उपरोक्त विधि से स्थापना करे। गुरुवार
के व्रत के साथ गुरु का कोई मंत्रजाप भी करे तो मेरा विश्वास है कि अनुष्ठान समाप्त
होने से पहले उसके सम्बन्ध की बात आरम्भ हो जायेगी। यह कार्य पूर्ण विश्वास एवं श्रद्धा के साथ करना चाहिये। मैंने यह प्रयोग अभी तक अनेक कन्यायों को स्वयं की देखरेख में करवाया है। परिणाम शत-प्रतिशत आशानुकूल निकले हैं।
दान
प्राचीनकाल से ही दान का अत्यन्त महत्त्व माना गया है। देवताओं तथा ग्रहों की
प्रिय वस्तुओं का दान देने से वे प्रसन्न होते हैं तथा अपनी कृपाओं की वर्षा करते हैं।
यदि आप गुरुकृत पीड़ा भोग रहे हैं तो गुरु की वस्तओं का दान करके गुरुदेव की कृपा
प्राप्त कर सकते हैं। दान करने की वस्तुयें इस प्रकार है।
कोई भी गुरु का उपरत्न (यदि दान करना चाहे तो), 300 ग्राम से 11 किलो चने
की दाल व इतना ही गुड़ अपनी सामर्थ्य के अनुसार, कांसे का लोटा, थाली अथवा
कोई भी बर्तन चाहे तो दीपक, शुद्ध घी, कपूर, हल्दी, पीली सरसों, पांच फल, कोई
भी धार्मिक पुस्तक, पीले पुष्प, चाहे तो सोना भी, पीला वस्त्र, संभव हो तो गुरु यंत्र,
शहद, शक्कर, फल, गोरोचन, पीले रंग का पैन (कलम), दक्षिणा आदि। दान करने का
श्रेष्ठ समय सध्या को माना गया है। यह आवश्यक नहीं है कि आप इन सभी का दान करें। आपकी जितनी सामर्थ्य हो, उतना दान करें। किसी से उधार अथवा कर्ज लेकर दान नहीं करें।
क्रमशः…अगले लेख के माध्यम से हम अरिष्ट गुरु शान्ति के विशेष उपायों के विषय मे चर्चा करेंगे।