”कार्यान्जली” में दिखी गाँधी दर्शन की झलक

इंदौर. श्री वैष्णव विद्यापीठ विश्वविद्यालय के श्री रंगपीठ द्वारा महात्मा गाँधी के 150वें जन्म महोत्सव के अवसर पर गाँधी दर्शन की सफल प्रस्तुति की गई. नाटक के निदेशक राजीव शुक्ल ने स्वतन्त्रता के बाद गाँधी जी ने देश निर्माण की जो परिकल्पना की थी उसे ही नाटक का आधार बनाया.
आजादी के बाद समकालीन राष्ट्र निर्माताओं ने देश के विकास के लिए सत्ता की महत्ता को प्रतिपादित करते है वही गाँधी जी सत्ता लोलुपता से दूर जनसेवा को आदर्श मानते है और आगाह करते है कि सश्रा से विकास की परिकल्पनाएं तो की जा सकती है लेकिन इसके द्वारा सामाजिक बुराईयों का निराकारण नहीं किया जा सकता.
सत्ता ओर सेवा के बीच द्वंद्व ही नाटक को गतिशीलता प्रदान करता है. राजनेता जहां सत्ता पर सवार होकर अपनी विकास की दिशा में बढ़ते है वहीं गाँधी जी जनता द्वारा जनता की सेवा को आधार बनाकर स्वराज को ग्राम सुराज में क्रियान्वित करने लगते है और जनता के स्तर पर फिर मुलाकात होती है.
राजनेताओं एवं गाँधी विचारकों की जहां पर फर्क यह होता है कि राजनेताओं के लिए जहां जनता वोट बैंक है वही गाँधी विचारकों के जनता अपने स्वावलम्बी ग्राम विकास के कर्ण भार है. सत्ता के दो केन्द्रों को चरम पर पहँुचाकर कहानी में नया मोड़ आता है जो गाँधी जी के व्यक्तिगत जीवन में दाखिल होते हुए कुछ अनुत्तरित प्रश्नों की खोज है.
पहले जीवन संगिनी कस्तूरबा के माध्यम से आश्रम के कठोर अनुशासन के बारे में गाँधी से प्रश्न पूछे जाते है और बाद में नाथूराम गोडसे से संवाद है. जहां धर्म और देश के विभाजन के लिए गाँधी के विचारधारा को कसौटी से गुजरना पड़ता है. गाँधी और गोडसे के संवादों में ज्ञान की उपयोगिता के विरोधाभास को पात्रों ने मंच पर बखूबी प्रस्तुत किया.

सांगीति पक्ष भी रहा महत्वपूर्ण

गाँधी दर्शन की सफल प्रस्तुति में इसके सांगीतिक पक्ष का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा, जिसमें गाँधी जी के प्रिय भजनों वैष्णव जन तो तेने कहीये…., रधुपति राघव राजा राम….. के साथ ही साथ कुछ नये गीत जैसे आओं दीप जलाये वाहा जहां अभी भी अंधेरा है…., साफ रहे ओर स्वस्थ रहे….. जैसे गीतों को नाटक में यथा स्थान प्रस्तुत किया गया.  कीतेश संघवी ने गांधी का शानदान अभिनय किया।
वहीं आयुष बर्वे ने अपनी बुलंद आवाज से नाथूराम के पात्र के साथ न्याय किया. अन्य पात्रों में विनिता जायसवाल (श्री), अक्षत (नेहरु) और दीपेष (मौलाना कलाम) ने भी अपनी अभिनय कौषल का परिचय दिया। संगीत संयोजन एवं गायन में निधी शर्मा, रिषभ पारे, समकित जैन आदि ने प्रशंंसनीय है.

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