स्तन कैंसर से बचने के लिए जरूरी है महिलाओं को जागरुक होना  

“ब्रैस्ट कैंसर – प्रिवेंशन एंड अर्ली डिटेक्शन” विषय पर इंडेक्स मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में ‘इंटीग्रेटेड टीचिंग प्रोग्राम’

इंदौर. भारत में बीते एक दशक में स्तन कैंसर के मामले कई गुना बढ़ गए हैं और दुसरे सभी प्रकार के कैंसर की तुलना में स्तन कैंसर के मामले सबसे ज़्यादा हैं (हर साल 1.62 लाख नए मामले)। सही जानकारी, जागरुकता, थोड़ी सी सावधानी और समय पर इसके लक्षणों की पहचान और इलाज से इस समस्या को हराया जा सकता है और इससे बढ़ रहे मृत्यु-दर को भी कम किया जा सकता है।

ये कहना है डॉ. दिलीप कुमार आचार्य, सर्जिकल विशेषज्ञ और आईएमए कैंसर और तंबाकू नियंत्रण समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष का; जो इंडेक्स मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि व वक्ता के रूप में उपस्थित थे। इंडेक्स मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर ने यह कार्यक्रम विश्व स्तन कैंसर माह के रूप में मनाया। कार्यक्रम का संचालन डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन श्रीमती चित्रा खिरवडकर ने किया।

 डॉ. आचार्य ने कार्यक्रम को संबोधित कर शुरुआती जागरुकता, रोग-निदान और उचित उपचार के लिए महिलाओं के बीच जागरुकता बढ़ाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।  डॉ. आचार्य ने बताया कि यूएसए में प्रत्येक 8 महिलाओं में से एक महिला में स्तन कैंसर का निदान किया जा रहा है, जबकि भारत में हर 28 महिलाओं (मुख्य शहरों में 22 महिलाओं) में से एक महिला स्तन कैंसर से पीड़ित हैं।

यूएस में स्क्रीनिंग प्रोग्राम, शुरुआती निदान और प्रारंभिक उचित उपचार के कारण भारत की तुलना में यूएस में मृत्यु दर काफी कम है। जबकि भारत में, ज्यादातर महिलाओं में एडवांस्ड स्टेज पर कैंसर का पता चलता है।

उन्होंने स्तन कैंसर के नॉन मोडीफ़ायबल एंड मोडीफ़ायबल रिस्क फैक्टर्स के बारे में चर्चा की। अर्ली मेनार्क, लेट मीनोपॉज, उम्र बढ़ने, करीबी रिश्तेदार, माँ, चाची, बहन को स्तन कैंसर होने से इसके रिस्क फैक्टर्स बड़ सकते हैं जो की नॉन मोडीफ़ायबल हैं। नियमित एक्सरसाइज, तम्बाकू से परहेज़, मोटापा नियंत्रण, शराब का सीमित सेवन, स्वस्थ आहार इत्यादि मोडीफ़ायबल रिस्क फैक्टर्स हैं।

डॉ. आचार्य ने आगे बताया कि स्तन में एक गांठ होना आम बात है और लगभग 80% स्तन गांठे नॉन कैंसरस होती हैं, इसलिए डॉक्टर द्वारा प्रत्येक स्तन गांठ की जांच की जानी चाहिए। कैंसर निदान के बावजूद महिलाएं अभी भी वैकल्पिक उपचार का सहारा लेती हैं। 40 साल की उम्र के बाद, हर 2-3 साल में  डॉक्टर द्वारा मैमोग्राफी और क्लीनिकल एग्ज़ामिनेशन से सही समय पर बीमारी का पता लगाया जा सकता है।

डॉ. आचार्य ने स्तन कैंसर की स्वयं जांच की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया। स्वयं जांच से इस बीमारी का बिना किसी मेडिकल जांच के पता लगाया जा सकता है और समय रहते इसका इलाज कराया जा सकता है।

इस कार्यक्रम में इन्टर्न, पोस्ट ग्रेजुएशन छात्र और पेरामेडिकल स्टाफ उपस्थित थे। सभी के लिए यह इंटीग्रेटेड टीचिंग प्रोग्राम बेहद इंटरैक्टिव और शिक्षाप्रद साबित हुआ। मुख्य अतिथि का सम्मान डॉ. अजय जोशी, सर्जरी विभागाध्यक्ष ने किया।

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