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श्रद्धा और विश्वास के बिना कोई पूजा सार्थक नहीं हो सकती
इंदौर। शिव-पार्वती का विवाह श्रद्धा और विश्वास का समन्वय है। जीवन में श्रद्धा और विश्वास के बिना किसी प्रार्थना, पूजा या अनुष्ठान की सार्थकता नहीं हो सकती। देश, धर्म और ईश्वर के लिए बलिदान देने वाला अमर हो जाता है इसलिए धर्म और ईश्वर के प्रति दृढ़ता का भाव होना चाहिए। शिव की आराधना कहीं भी, कैसे भी करें, हमेशा कल्याणकारी फल देती है।
प्रख्यात भागवताचार्य पं. सुखेन्द्र कुमार दुबे ने आज हवा बंगला मेन रोड़ स्थित शिर्डी धाम सांई मंदिर परिसर में श्रावण मास के उपलक्ष्य में आयोजित शिवपुराण कथा महोत्सव में पार्वती जन्म एवं शिव विवाहोत्सव महिमा प्रसंग पर व्यक्त किये। कथा के दौरान शिव पार्वती परिणय बंधन का जीवंत उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। प्रारंभ में शिर्डीधाम सांई मंदिर के ओमप्रकाश अग्रवाल, हरि अग्रवाल, संयोजक विजय भैया, प्रणव शुक्ला, मोहित शर्मा, श्रीमती शारदा चौहान, पूनम शर्मा आदि ने ग्रंथ का पूजन किया।
कथा के दौरान सुरजीत सिंह, श्रीमती कृष्णा रासगया ,मुकेश रासगया, चंद्रिका और श्रीमती पीयूषा शुक्ला के मनोहारी भजनों पर कथा पांडाल पहले दिन से ही झूम रहा है। कथा में सोमवार 6 अगस्त को कार्तिकेय एवं गणेश जन्मोत्सव तथा तारकासुर वध, 7 को तुलसी-शालिग्राम एवं अनिरूद्ध-उषा विवाह, 8 को अर्द्धनारीश्वर रूप एवं नंदीश्वर अवतार, 9 को रूद्रावतार एवं हनुमान जन्मोत्सव, 10 को द्वादश ज्योतिर्लिंग कथा तथा 11 अगस्त शनिवार को प्रणवाक्षर एवं पंचाक्षर सहित शिव व्रत पूजन, रूद्राभिषेक आदि के रहस्य की कथा के पश्चात पूर्णाहुति होगी। कथा मंे प्रतिदिन पूजन के बाद आरती एवं कथा के तुरंत बाद शिव महाआरती होगी जिसमें प्रतिदिन साधु-संत एवं अन्य भक्तजन भी शामिल होंगे।
पं. दुबे ने कहा कि जब तक प्रत्येक व्यक्ति में नारायण का अंश मानने की दृष्टि नहीं आती, हमारी साधना अधूरी ही रहेगी। शिव-पार्वती का विवाह चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, त्रयोदशी, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में हरिद्वार के कनखल में हुआ। आज भी वहां स्नान करने पर कुंवारी कन्याओं के विवाह जल्द हो जाते हैं। हम सब खाली हाथ आए हैं और वैसे ही जाएंगे भी। ईश्वर और धर्म हमेशा हमारे साथ रहते हैं। और कोई साथ दे या न दे, ईश्वर और धर्म मृत्यु के बाद भी हमारे ही साथ रहते हैं।
संसार की किसी कामना के लिए धर्म का हनन हो तो वह पाप होता है लेकिन यदि ईश्वरीय कर्म करते हुए मर्यादा का उल्लंघन या ऐसा कुछ हो तो वह पुण्य बन जाता है। पाप का फल दुख है और पुण्य का सुख। पापकर्म भोगते समय मीठा होता है, जबकि पुण्य कर्म भोगते समय कड़वा।