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अक्षय तृतीया इस वर्ष सर्वार्थ सिद्धी, अमृत सिद्धि, रवि, त्रिपुष्कर व आयुष्मान एवं सौभाग्य योग मे मनेगी
ईश्वरीय व चिरंजीवी तिथि। अक्षय तृतीया इस वर्ष सर्वार्थ सिद्धी, अमृत सिद्धि, रवि, त्रिपुष्कर व आयुष्मान एवम् सौभाग्य योग मे मनेगी। मेष राशि में चतुर् ग्रही युति मिले जुले परिणाम देगीसभी प्रकार की खरीदी शुभता के साथ स्थिरता प्रदान करेगी,जल पूरित कलश में आम्र पत्ते व खरबूजा रख दान करें,स्वर्ण खरीदी श्रेष्ठ,
यह बात अचार्य पंडित रामचंद्र शर्मा वैदिक, अध्यक्ष मध्य प्रदेश ज्योतिष एवम् विद्वत परिषद ने कही। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में व्रत,पर्व त्योहारों का विशेष महत्व है।वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया के नाम से प्रसिद्ध है। अक्षय का शाब्दिक अर्थ है जिसका कभी क्षय या नाश नही हो जो स्थायी रहे। स्थायी वही रह सकता है जो सदा सत्य हो।सत्य केवल परमात्मा है जो अक्षय,अखंड और सर्व व्यापक है। अक्षय तृतीया ईश्वरीय तिथि है।भगवान परशुरामजी का प्राकट्य दिवस होने से परशुराम तिथि व चिरंजीवी तिथि है ।
त्रेता युग का श्रीगणेश आखातीज से हुआ अत; युगादि तिथि भी है।अक्षय तृतीया हमे जीवन मूल्यों का वरण करने का संदेश देती है इसलिए यह आत्म विश्लेषण के साथ। आत्म विश्लेषण की तिथि भी है।अक्षय तृतीया स्वयं सिद्ध मुहूर्त है ।आज के दिन विवाह आदि।शुभ कर्म बिना किसी मुहूर्त के संपादित किए जाते है ,यह दान एवम् पुण्य का पर्व है।आज के दिन दिए दान,किए स्नान, जप,तप आदि शुभ कर्मों का फल अक्षय होने से इसका नाम अक्षय तृतीया”पढ़ा।यह सुख और सौभाग्य देने वाली पवित्र तिथि कुछ विशेष ज्योतिषीय योग संयोग में आ रही है।
शनिवार को द्वितीया प्रातः 7.49 बजे तक रहेगी बाद में तृतीया प्रारंभ होगी जो रविवार को प्रातः 7.47 बजे तक अर्थात 24 घण्टे रहेगी।कृतिका रोहिणी के संयोग के साथ ही आयुष्मान व सौभाग्य योग,सर्वार्थ सिद्धी,अमृत सिद्धि,रवि व त्रिपुष्कर योग इस पर्व को कुछ खास बना रहे है।इस महा योग में सभी प्रकार की खरीदी शुभ रहेगी।
अक्षय तृतीया, स्वयं सिद्ध मुहूर्त है जो मुहूर्त शास्त्र के विधि निषेधों के बंधन से सर्वथा मुक्त होने से सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते है।
अचार्य पंडित रामचंद्र शर्मा वैदिक, अध्यक्ष मध्य प्रदेश ज्योतिष एवम् विद्वत परिषद ने बताया की साढ़े तीन स्वयं सिद्ध मुहूर्तों में अक्षय तृतीया एक है।चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,अक्षय तृतीया,विजया दशमी,वसंत पंचमी,दीप पर्व के दूसरे दिन प्रतिपदा आदि ये स्वयंसिद्ध मुहूर्त है। इन मुहूर्तों में गुरु शुक्र अस्तादी दोषों का विचार नही किया जाता है।उक्त मुहूर्त मुहूर्त शास्त्रीय विधि निषेधों के बंधन से बिलकुल मुक्त है।सभी प्रकार के विवाह आदि मंगल कार्य किसी भी प्रकार के शास्त्रीय गुण दोष को विचारे बिना निर्धारित समय में करने की शास्त्र आज्ञा है।