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लंबे समय तक स्टेरॉयड लेने से बेहतर है बायोलॉजिक्स ट्रीटमेंट
डर्माजोन वेस्ट 2024 और 29वीं क्यूटिकॉन एमपी कॉन्फ्रेंस में देशभर से आए डॉक्टर्स ने लिए सेशन
इंदौर। भारतीय डर्माटोलॉजी वेनेरियोलॉजी और लेप्रोलॉजी सोसाइटी (IADVL) मध्य प्रदेश के तत्वावधान में डर्माजोन वेस्ट 2024 और 29वीं क्यूटिकॉन एमपी कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जा रहा है।
कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन शनिवार को मुंबई में आए वरिष्ठ डॉ. सुशील तहिलयानी ने बताया कि बायोलॉजिक्स भले ही महंगे है पर बहुत सारे साइड इफेक्ट वाली मेडिसिन का अच्छा विकल्प है। बायोलॉजिक्स के बारे में हम 1998 में पढ़ रहे है और भारत में इसकी अवेबिलिटी 2005 से उपलब्ध है। इसके उपयोग के लिए पेशेंट की काउंसलिंग करनी पड़ती है क्योंकि यह थोड़ी मंहगी होती है। लेकिन लंबे समय तक स्टेरॉयड के इलाज से कई बेहतर है बायोलॉजिक्स कोर्स करना इसके परिणाम भी बहुत बेहतर देखे जा रहे हैं। मेने देखा है सरकारी तंत्र में स्किन डीजीज के साथ सौतेला व्यवहार होता है, स्किन की बीमारियों को कॉस्मेटिक सर्जरी के श्रेणी में रखा जाता है जिस वजह से लोग इसे हेल्थ इंश्योरेंस में क्लेम नहीं किया जाता है। लेकिन कहीं ऐसी स्क्रीन की बीमारियां हैं जो मरीज के लिए मृत्यु का कारण तक बन सकती हैं।
बढ़ रहा है बायोलॉजिक्स का इस्तेमाल
डॉ.तहिलयानी ने कहा कि स्किन डिजीज के ट्रीटमेंट में बायोलॉजिक्स काफी ज्यादा कारगर साबित हो रही है। बायोलॉजिक्स एक तरह के प्रोटीन मॉलिक्यूल होते हैं जो बॉडी में इंजेक्ट किए जाते है। यह एक प्रकार का आउटडोर ट्रीटमेंट है जिसके लिए पेशेंट को एडमिट नहीं होना पड़ता।अगर किसी बीमारी का कारण नहीं पता हो पर वह बॉडी के किसी पार्ट को नुकसान पहुंचा रहा है तो उसे रोकने के लिए अलग अलग कदम पर बायोलॉजिक्स का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा करने से बॉडी में हो रहे डैमेज को रोका जा सकता है। सोरायसिस में बायोलॉजिक्स बेहद फायदेमंद साबित होता है। पिछले 10 से 15 वर्षों में इसके इस्तेमाल में काफी वृद्धि देखी गई है।
बच्चों को शॉवर के बजाए बकेट से नहलाए
मुंबई से आई डॉ. मंजोत गौतम ने बताया कि छोटे बच्चों में स्किन इंफेक्शन होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है। एक्जिमा इसमें सबसे कॉमन है। दुनिया भर में 15 परसेंट बच्चों में एक्जिमा की बीमारी पायी जाती है। अब यह इंडिया में भी बढ़ रहा है। ऐसे बच्चों की बॉडी को मॉइस्चराइज रखना चाहिए। जिस भी चीज में परफ्यूम है उसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम जब छोटे थे तो हमारे पेरेंट्स हमें मिट्टी में खेलने के लिए छोड़ दिया करते थे उस समय हम जो एक्सपोज होते थे तो जो हमारी इम्यूनिटी डेवलप होती थी वह काफी स्ट्रांग होती थी। आजकल के सिंगल चाइल्ड पैरेंट्स बच्चों को ओवर प्रोटेक्शन में रखते है जिससे ये बच्चे काफी बाद में एक्सपोज्ड होते है तो टीएच1 की बजाए टीएच-2 इम्यूनिटी का रिस्पांस डेवलप होते है जिससे उनमें एग्जीमा के चांसेज ज्यादा होते है।
डॉ.गौतम ने कहा कि बच्चों को शॉवर से नहलाने के बजाए मग और बकेट का इस्तेमाल करें क्योंकि शॉवर के प्रेशर से बच्चों के शरीर का मॉसीचर भी खत्म हो जाता है। वहीं अगर बाथटब में बच्चा नहा रहा है तो उसमें भी 10 मिनट से ज्यादा नहीं नहाने दे। सैनेटाइजर का इस्तेमाल ज्यादा नहीं करें। वेट वाइप के बजाए कॉटन बॉल और बॉयल पानी से बच्चों के शरीर को पोछे। जन्म के बाद के शुरुआती 4 साल में फूड एलर्जी का बेहद ध्यान रखना चाहिए। जितना ज्यादा हो सके घर का ही खाना दे। बाहर का जो भी खाना है जिसमें आर्टिफिशियल कलर या फ्लेवर और प्रिजरवेटिव पड़ा है बच्चों को उससे दूर ही रखना चाहिए।
डॉक्टर की एडवाइस पर ही लें स्टेरॉयड
कांफ्रेंस के पैट्रोन और मुख्य सलाहकार डॉ. अनिल दशोरे ने कहा कोई भी स्टेरॉयड बिना डॉक्टर की सलाह के लम्बे समय तक लेना परेशानी का सबब हो सकता है। इसकी वजह ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, आंखों में खराबी, किडनी प्रॉब्लम और हार्मोनल डिसबैलेंस जैसी समस्या भी हो सकती है। लॉन्ग टर्म तक चलने वाले स्टेरॉयड शरीर के किसी भी अंग को खराब कर सकता है।
लम्बे समय तक स्टेरॉयड का सेवन खतरनाक
ऑर्गेनाइज़िंग सैक्रेटरी डॉ. मीतेश अग्रवालने कहा कि बायोलॉजिक्स के आने से स्टेरॉयड का इस्तेमाल कम होने लगा है, जिसका मरीज को फायदा मिलने लगा है। पहले देखा जाता था कि जब मरीज को इलाज के लिए स्टेरॉयड दिया जाता था तो पेशेंट उसी प्रिस्क्रिप्शन को दिखा दिखा कर लम्बे समय तक स्टेरॉयड का सेवन करते रहते थे जिसके दुष्परिणाम बाद में देखने को मिलते थे और वह बीपी और डायबिटीज का शिकार हो जाते थे।
शहरों में प्रदूषण और तनाव के कारण बढ़ रही स्किन डिजीज
डॉ. भावेश स्वर्णकार ने कहा कि बहुत सार लोग कॉस्मोलॉजी का कोर्स करके अपने आप को स्किन स्पेशलिस्ट के रूप में दर्शाते हैं और कई बार तो वह केस इतना खराब कर देते हैं कि हमें उसे सही करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि जो बीमारी प्रदूषण और तनाव से होती है वह शहरों में ज्यादा देखने को मिलती हैं पर ग्रामीण इलाके के जो पेशेंट्स है वह शहरी पेशेंट्स की तुलना में हमारे पास काफी देर से पहुंचते है। ऑर्गेनाइजिंग टीम से डॉ. कैलाश भाटिया ने बताया कि दूसरे दिन कॉन्फ्रेंस में नाखून ,बाल और सफेद दाग से जुड़े सेशन का आय़ोजन किया गया। इस सम्मेलन में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और गोवा सहित छह राज्यों के विशेषज्ञ हिस्सा लेकर देश की टॉप और एक्सपीरियंस फैकल्टी से नॉलेज प्राप्त कर रहे है।