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भारत में हर साल जाँच में 15,000 लोग मल्टिपल माइलोमा से पीड़ित पाए जा रहे
इंदौर. इंदौर में आयोजित हुई एक प्रेस मीटिंग में अग्रणी मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, डॉ. (कर्नल) प्रकाश चितलकर ने भारत में मल्टीपल माइलोमा (एमएम) के बढ़ते भारं पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि भारत में हर साल जाँच में 15,000 लोग मल्टिपल माइलोमा से पीड़ित पाए जा रहे हैं. इनमें से लगभग 30-40 प्रतिशत मरीज 40 वर्ष की उम्र के हैं.
मल्टीपल माइलोमा एक तरह का खून का कैंसर है, जो प्लाज़्मा कोशिकाओं अत्यधिक वृद्धि करता है। जैसे-जैसे माइलोमा बढ़ता है, यह वृद्धि खून बनाने वाली अन्य कोषिकाओं का उत्पादन प्रभावित करने लगती हैं, जिससे हीमोग्लोबिन कम होने लगता है, प्रतिरोधी क्षमता कम हो जाती है और किडनी तक खराब हो जाती है। मल्टीपल माइलोमा का निदान चिकित्सकों, आर्थोपेडिक सर्जनों, किडनी विशेषज्ञ द्वारा किया जाना चाहिए और आगे मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट के पास भेजा जाना चाहिए।
डॉ. (कर्नल) प्रकाश जी. चितलकर ने कहा, ‘‘हमें अभी भी यह समझना होगा कि लोगों को मल्टिपल माइलोमा क्यों होता है। यद्यपि उम्र, परिवार का इतिहास, मोटापा और अन्य प्लाज़्मा कोशिकाओं की मौजूदगी इसके कुछ कारणों में शामिल हैं।
एमएम अन्य गंभीर बीमारियों का जोखित बढ़ा देता है। मैं लोगों को बताना चाहता हूँ कि इस तरह के कैंसर का इलाज संभव है, खासकर तब, जब इसकी पहचान समय पर कर ली जाए। मरीजों को इलाज के विकल्प जानने के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।’’
मल्टिपल माइलोमा के आम लक्षणों में हड्डियों में निरंतर दर्द, खासकर पीठ या पसलियों में, वजन का बिना वजह गिरना, बार बार बुखार या संक्रमण होना, बार बार पेषाब आना और प्यास तथा लगातार थकावट या कमजोरी महसूस होना षामिल है। इसका निदान लैबोरेटरी जाँच की प्रक्रिया, इमेजिंग टेस्ट एवं बोन मैरो बायोप्सी द्वारा किया जाता है।
इसका इलाज मरीजों की उम्र और बीमारी की स्टेज, जब इस बीमारी की पहचान होती है, पर निर्भर होता है। इसके इलाज में कीमोथेरेपी, इम्यूनोथेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन शमिल है। उपचार के परिणाम में सुधार हो रहा है, जिससे आज अधिकांश रोगी निदान के समय के बाद लगभग 5 – 6 साल जीने की उम्मीद कर सकते हैं।