श्राद्ध पक्ष में पितरों का तर्पण और उन्हें अर्ध देने भर से पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है।

डॉ श्रद्धा सोनी

सामान्य रूप से हम सभी श्राद्ध पक्ष को पित्तरों के तर्पण और उनकी आराधना का ही पर्व समझते हैं। पर हम यह नहीं जानते कि श्राद्ध कर्म से पितृ शांति के अलावां ग्रह- दशाओं पर भी विशेष प्रभाव पड़ता है साथ ही आठो वसु, रुद्र, नवग्रह, अग्नि, विश्वदेव, मनुष्य और पशु-पक्षी भी संतुष्ट व प्रसन्न होते हैं.

वहीं श्राद्ध कर्म से जन्मकुंडली के पापी व नीच ग्रह भी अपने अशुभ प्रभाव को छोड़कर जातक को शुभ परिणाम देने लगते हैं जिससे कार्यों में आ रही बाधाएं स्वतः समाप्त होने लगती हैं जातक रोग, सोक, दुःख अथवा भय से मुक्त होकर स्वस्थ्य और संवृद्ध जीवन की तरफ अग्रसर होता है।

ज्योतिष शास्त्र में श्राद्ध कर्म को विशेष महत्वपूर्ण माना गया है। इस पूरे पक्ष में पूर्वजों की सेवा-पूजा आराधना करने से पितृ ऋण और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। पितृगण किये हुए श्राद्ध कर्म से संतुष्ट और तृप्त होकर सुखी व सम्पन्न होने का आशीर्वाद देते हैं, यस समझने वाली बात है कि व्यक्ति जबतक जीवित होता है उसका रोम-रोम अपने घर-कुटुंब के लिए समरर्पित होता है.

अब अगर उसकी मृत्यु हो जाये तो वह शारीरिक रूप से तो इस दुनियां से चला जाता है पर उसकी आत्मा अपने घर के मोह-बंधन से मुक्त नहीं हो पाती जिसके कारण उसको गति नहीं मिलती और वह भटकती रहती है। अक्सर घर में जब-जब भी खुशियां आती हैं तो लोग उन खुशियों में ऐसे मशगूल होते हैं कि अपने पितरों को याद तक नहीं करते उन्हें घर में बने पकवान का भोग तक अर्पित नहीं करते वहीं जाने-अनजाने पितृ पक्ष में भी अपने पितरों का तर्पण व श्राद्ध तक नहीं करते तो पितृगण असंतुष्ट होकर श्राप दे देते हैं।

पूर्वजों द्वारा दिया गया यही श्राप जन्मकुंडलियों में पितृ दोष के रूप में उभर कर सामने आता है इसकी वजह से परिवार में अकाल मृत्यु, भाग्योदय न होना, विवाह में विलंब, संतान ना होना, असाध्य रोग, भूत-प्रेत बाधाएं व पारिवारिक कलह स्थाई रूप से घर कर जाती है।

पितृ दोष से पीड़ित जातक इसके निदान हेतु ज्योतिषियों, पंडितों, तांत्रिकों के चक्कर लगाता रहता है लेकिन उसे इस दोष से छुटकारा नहीं मिल पता ज्योतिष शास्त्र में इस दोष के निवारण का सही और सहज उपाय बताया गया है इसके लिए श्राद्ध पक्ष को सही व अनुकूल समय कहा गया है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार श्राद्ध पक्ष में पितरों का तर्पण और उन्हें अर्ध देने भर से पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है।

यहां इस बात पर भी विचार किया जाना जरूरी है की पितृ दोष बनता कैसे है अर्थात किन ग्रहों की वजह से जन्मकुंडली में इसका निर्माण होता है । इसके लिए अनिष्ट कारी और क्रूर ग्रह जिम्मेदार हैं । इन ग्रहों में राहु, केतु, शनि, मंगल, गुरु, सूर्य प्रमुख हैं। सामान्यतः जिन कुंडलियों में शनि-राहु, शनि-केतु, शनि-मंगल, राहु-गुरु, राहु-चंद्र, सूर्य-शनि, सूर्य-केतु, सूर्य-राहु, मंगल-गुरु, आदि ग्रहों की युतियां किसी भी भाव में हो तो यह पितृदोष का सूचक है।

विभिन्न भावों में यह युतियां विभिन्न परिणाम देती हैं कभी लाभदायक तो कभी हानिकारक लेकिन हानिकारक परिणाम अधिकांशतः देखने को मिलते हैं । इसलिए जिन जातकों की जन्मपत्रिका में यह युतियां बन रही हो उन्हें अत्यावश्यक रूप से इन का निदान करा लेना चाहिए अन्यथा जन्म कुंडली के शुभ परिणाम भी अशुभ परिणामों में बदल जाते हैं। पितृ दोष के निवारण हेतु श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करना चाहिए इससे मुक्त होने का यह एकमात्र उपाय है।

इसके लिए विशिष्ट तिथि व वार कहे गए हैं। ज्योतिषशास्त्र में श्राद्ध कर्म के लिए विशेष तिथि व वार का भी निर्धारण किया गया है। इन तिथियों और वारों में श्राद्ध करने से आश्चर्यजनक परिणामों की प्राप्ति होती है। यही नहीं कौन सा ग्रह कब और कैसे परिणाम देगा इस बात का भी समुचित समाधान किया गया है।

जैसे-
* सूर्य की शांति के लिए रविवार को श्राद्ध किया जाए तो उत्तम फल की प्राप्ति होती है व रोग और शोक से छुटकारा मिलता है।
* चंद्र के लिए सोमवार को श्राद्ध किया जाता है इससे सौभाग्य में वृद्धि होती है।
* वही शत्रुओं पर विजय के लिए मंगलवार का श्राद्ध करना उचित है।
* कामना सिद्धि के लिए बुधवार का श्राद्ध करने का विधान बताया गया है।
* अभीष्ट विद्या प्राप्ति के लिए गुरुवार का श्राद्ध करना चाहिए।
* वैभव के लिए शुक्रवार तथा दीर्घायु प्राप्ति के लिए शनिवार को श्राद्ध कर्म फलदाई माना गया है।
इन निर्धारित किए गए वारों में श्राद्ध करने से उनसे संबंधित ग्रहों की शांति होती है और वे संतुष्ट होकर मनोवांछित परिणाम देने लगते हैं।

वहीं वारों के अनुरूप श्राद्ध के लिए तिथियों का भी निर्धारण किया गया है। इन निर्धारित तिथियों में श्राद्ध करने से भी आसानुकुल फलों की प्राप्ति होती है ।
जैसे-
* प्रतिपदा के श्राद्ध से पुत्र प्राप्ति * द्वितीय के श्राद्ध से कन्या प्राप्ति * तृतीया से बंधन से छुटकारा
* चतुर्थ के श्राद्ध से पशु लाभ
* पंचमी के श्राद्ध से राज्य कृपा
* षष्ठी के श्राद्ध से चुनाव या किसी भी विजय की प्राप्ति
* सप्तमी को कृषि व आयुर्वेद में सफलता
* अष्टमी को बैंकिंग-वाणिज्य में लाभ
* नवमी दशमी के श्राद्ध से उत्तम वाहन का सुख
* एकादशी को सुख-शांति, चांदी तथा रत्नों व पुत्र की प्राप्ति
* द्वादशी के श्राद्ध से स्वर्ण व उत्तम फलों की प्राप्ति
* त्रयोदशी के श्राद्ध से अपनी जाति में श्रेष्ठता तथा पूर्णिमा एवं अमावस्या को श्राद्ध करने से मनोअनुकूल परिणामों की प्राप्ति होती है।
श्राद्ध पक्ष के दौरान पितरों के निमित्त दिया गया जल उन्हें ऐच्छिक स्वरूपों में मिल जाता है। जैसे-
पितृ यदि देव लोग को गए हो तो उन्हें अमृत के रूप में, पशु बने हो तो उन्हें चारे के रूप में, गंधर्व बने हो तो भोग आदि के रूप में, यक्ष बने हो तो पेयजल के रूप में, नाग योनि में हो तो वायु के रूप में, राक्षस योनि में हो तो आमिष भोजन के रुप में, मनुष्य बने हो तो स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में अपनी-अपनी तृप्ति करते हैं। अतः जो मनुष्य श्राद्ध करता है वह पितरों सहित अन्य सांसारिक योनियों को भी तृप्त करता है। अतः इस श्राद्ध कर्म को करने से जातक को पितृ ऋण से तो मुक्ति मिलती ही है साथ ही स्वास्थ्य, धन-धान्य, ऐश्वर्य, प्रभाव की प्राप्ति भी होती है तथा वह मोक्ष का भी अधिकारी होता है।

श्राद्ध कर्म के लिए विशिष्ट स्थान-

श्राद्ध कर्म के लिए नदियों पर्वतों व तीर्थों का भी विशेष महत्व बताया गया है। इसके लिए निर्धारित तीर्थ स्थानों में श्राद्ध करने का विशेष फल भी दर्शाया गया है। श्राद्ध के लिए जिन तीर्थ स्थानों को महत्व दिया गया है उनमे बनारस, हरिद्वार, इलाहाबाद, गया, व उज्जैन के अलावा वाराह पर्वत, महालय, सौरो, प्रभाष, विल्वक तीर्थ, कुब्जाम्र तीर्थ, भृगुतंग, केदार पर्वत, कालूतीर्थ, नेमिषारण्य, पुष्कर, अमरकंटक, त्रिंबकेश्वर श्री शैल, भद्रकर्णक प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त शास्त्रों में नदियों को भी श्राद्ध कर्म के लिए व्यापक महत्व दिया गया है। श्राद्ध हेतु उपयुक्त नदियों में गंगा, नर्मदा, बेतवा, क्षिप्रा, सरस्वती, सरयू, फल्गु तथा गोदावरी को विशेष फलदाई बताया गया है। इन स्थानों और नदियों के तटों पर किए गए श्राद्ध से पितृ सदा संतुष्ट रहते हैं और वे पारिवारिक सुख शांति का आशीर्वाद प्रदान करते हैं

वर्ष 2018 में पितृ-पक्ष 24 सितंबर 2018 सोमवार से शुरू हो रहा है. यह 8 अक्टूबर 2018 सोमवार तक रहेगा. इस तालिका से देखें तिथियों की पूरी सूची और जानें, किस दिन कौन सा श्राद्ध है.

24 सितंबर 2018 सोमवार पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर 2018 मंगलवार प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर 2018 बुधवार द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर 2018 गुरुवार तृतीय श्राद्ध
28 सितंबर 2018 शुक्रवार चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर 2018 शनिवार पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर 2018 रविवार षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2018 सोमवार सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2018 मंगलवार अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2018 बुधवार नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2018 गुरुवार दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2018 शुक्रवार एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2018 शनिवार द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2018 रविवार त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध
( इस दिन त्रयोदशी व चतुर्दशी दोनो श्राद्ध रहेगा )
8 अक्टूबर 2018 सोमवार सर्वपितृ अमावस्या,

महालय अमावस्या

पितृ पक्ष के सबसे आखिरी दिन को महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है. इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहते हैं. क्योंकि इस दिन उन सभी मृत पूर्वजों का तर्पण करवाते हैं, जिनका किसी न किसी रूप में हमारे जीवन में योगदान रहा है. इस दिन उनके प्रति आभार प्रक्रट करते हैं और उनसे अपनी गलतियों की माफी मांगते हैं. इस दिन किसी भी मृत व्यक्ति का श्राद्ध किया जा सकता है. खासतौर से वह लोग जो अपने मृत पूर्वजों की तिथि नहीं जानते, वह इस दिन तर्पण करा सकते हैं।

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