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क्या आपका फेस मास्क आपके और आपके परिवार के लिए सुरक्षित है?
मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए यह कहना उचित है कि, इस वैश्विक महामारी की वजह से हमारी दुनिया में एक बड़ा बदलाव आया है और अब उन सभी चीजों के प्रति हमारा नज़रिया पूरी तरह बदल गया है, जिसे पहले सामान्य माना जाता था। इसका असर केवल हमारी सेहत पर ही नहीं हुआ है, बल्कि विभिन्न व्यवसायों के साधनों पर भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है।
एक तरफ इस महामारी ने जहां कई उद्योगों को नुक़सान पहुंचाया है, वहीं दूसरी तरफ इसने नए अवसरों को भी जन्म दिया है। आज मास्क और पीपीई किट के अलावा सैनिटाइजिंग एवं डिसिन्फेक्टिंग सॉल्यूशन जैसे प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियां सुर्खियों में हैं। इसने छोटी और मध्यम आकार की कंपनियों को विकसित होने और बड़ी कंपनियों को अपने प्रोडक्ट्स में विविधता लाने का अवसर प्रदान किया है।
हालांकि सभी कंपनियों के लिए यह एक शानदार मौका है, लेकिन इसकी वजह से कई कंपनियों के बीच स्वास्थ्य एवं स्वच्छता से संबंधित उत्पादों के निर्माण की होड़ मच गई है। आज मास्क बनाने वाली कई कंपनियां इनके निर्माण में जिन सामग्रियों और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही हैं, उसके बारे में उनके द्वारा लोगों को गलत जानकारी दी जा रही है। वास्तव में इस तरह के उत्पादों में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियां विषाक्त होती हैं या कैंसर को जन्म दे सकती हैं, साथ ही लंबे समय में गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती हैं।
आज हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां सिर्फ इस महामारी से ही हमारी जिंदगी को खतरा नहीं है बल्कि ऐसे प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स से भी हमारी जिंदगी खतरे में पड़ सकती है, जिनका इस्तेमाल हम खुद को वायरस से बचाने के लिए कर रहे हैं। यह समय हमारे लिए बेहद अहम है क्योंकि अब हमें इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि, बाजार में आसानी से उपलब्ध मास्क न केवल गलत सूचना फैला रहे हैं, बल्कि इनके इस्तेमाल से कैंसर जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं।
कुछ उत्पादों में 10-20% बैन्ज़ल्कोनियम क्लोराइड होता है जिसे हम आमतौर पर BAC के नाम से जानते हैं। वैज्ञानिकों के अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष यह बताते हैं कि, BAC हमारी सांसों के लिए बेहद जहरीली है। BAC के संपर्क में आने से साइटोटॉक्सिसिटी की संभावना बढ़ जाती है और यह इंसानों के ब्रोन्कियल सेल लाइन में DNA को गंभीर नुकसान पहुंचाता है।
इसके अलावा, अगर BAC लंबे समय तक या लगातार हमारी सांसों के संपर्क में आता है तो इससे फेफड़ों में जलन, सूजन और ऐल्वीयलर (वायुकोश) को नुकसान की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। कुछ ब्रांड तो अपने उत्पादों में टाइटेनियम डाइऑक्साइड और सिल्वर क्लोराइड का इस्तेमाल कर रहे हैं और वे इस बात को स्वीकार भी करते हैं।
कोरोना किलर मास्क के दावे भी झूठे हैं और इसकी अफवाह फैलाई गई है। कैनेडियन सेंटर फॉर ऑक्यूपेशनल हेल्थ एंड सेफ्टी (CCOHS) ने टाइटेनियम डाइऑक्साइड के उपयोग के बारे में यह बात स्पष्ट की है कि, इससे कैंसर की संभावना होती है और अगर सांसों के जरिए यह इंसानों के शरीर में पहुंच जाए तो फेफड़ों का कैंसर हो सकता है।
महामारी के दौरान लोग अपने फायदे के लिए खुल्लम-खुल्ला इस तरह के काम कर रहे हैं जो बेहद शर्मनाक और निंदनीय है। वे ऐसे उपभोक्ताओं का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्हें इस बारे में सटीक जानकारी नहीं है। भारत एक विकासशील और विविधताओं वाला देश है, जहां ऐसे मामलों में विनियमन और सरकारी निगरानी की कमी है और इस तरह के झूठे दावों से लाखों लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है।
आमतौर पर हम जिन मास्क का उपयोग कर रहे हैं, वे हम सभी की सेहत के लिए हमारी कल्पना से अधिक नुकसानदायक हो सकते हैं। इनमें भारी धातु सामग्रियों के साथ-साथ खतरनाक रसायन, तथा अधिक मात्रा में सिल्वर, टाइटेनियम, जिंक या अन्य लीचिंग केमिकल्स मौजूद होते हैं, जो बेहद हानिकारक हैं और हमारी सेहत को संभावित तौर पर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इसके अलावा, कंपनियों द्वारा मास्क में किसी भी तरह के एंटीवायरल गुण की मौजूदगी की जांच करने का कोई सबूत / परीक्षण परिणाम उपलब्ध नहीं है। लिहाजा, इस तरह के रसायन जितनी अधिक मात्रा में लोगों के फेफड़ों में प्रवेश करेंगे उनकी मृत्यु की संभावना भी उतनी ही ज्यादा होगी।
कुछ कंपनियां अपने उत्पादों के प्रदर्शन से जुड़े आंकड़ों के बारे में गलत जानकारी दे रही है और इसे बढ़ा-चढ़ा कर बता रही है, साथ ही उत्पादों की सुरक्षा से जुड़े आंकड़े को सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है जिससे उपयोगकर्ताओं को गलत जानकारी मिलती है और उनका स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाता है।
हमें इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि, N-95 मास्क कोविड से सुरक्षा प्रदान करने के लिए नहीं बनाया गया है। WHO ने स्वास्थ्य कर्मियों को N-95 मास्क पहनने की सलाह दी, जिसमें 300 नैनोमीटर या उससे बड़े आकार के कणों को शरीर से दूर रखने की क्षमता होती है। कोविड-19 के कणों का औसत आकार 120 नैनोमीटर होता है।
इसलिए, इस वायरस को मारने और निष्क्रिय करने में सक्षम एंटीवायरल मास्क आज हमारे लिए बेहद जरूरी बन गया है, जो पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल हो तथा किसी तरह के प्रति-संक्रमण (क्रॉस-कॉन्टेमिनेशन) के बिना हमारी पूरी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके।
कुछ हफ़्ते पहले, 17 जून को भारतीय विज्ञान के क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत हुई, जो मानवता की रक्षा करने और दोबारा सामान्य तरीके से जिंदगी जीने के लिए समय की मांग बन चुकी थी। स्विट्जरलैंड स्थित लिविंगार्ड एजी ने भारत में अपना फेस मास्क लॉन्च किया। यह अपनी तरह का पहला ऐसा फेस मास्क है जो बैक्टीरिया एवं वायरस को सीधे तौर पर निष्क्रिय करने में सक्षम है, साथ ही इसमें नोवेल कोरोनोवायरस SARS-CoV-2 को 99.9% तक निष्क्रिय करने की क्षमता भी शामिल है।
वर्तमान में कंपनी द्वारा बाजार में उतारे गए इस मास्क का निर्माण भारत में, भारतीयों द्वारा और भारत के लिए किया जा रहा है। वायरोलॉजी एवं टेक्सटाइल्स के क्षेत्र में विश्व स्तर पर दो सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान, यानी कि बर्लिन की फ्रेई यूनिवर्सिटी तथा ITA RWTH आचेन के शोधकर्ताओं ने लिविंगार्ड की सेल्फ-डिसिन्फेक्टिंग तकनीक के असरदार होने की पुष्टि की है, और जब किसी भी तरह के टेक्सटाइल पर इसका इस्तेमाल किया जाता है तो इसमें कोरोनोवायरस को नष्ट करने की क्षमता मौजूद होती है, साथ ही यह फैब्रिक पर स्थायी रूप से कायम रहती (अघुलनशील) है।
एरिज़ोना यूनिवर्सिटी, टक्सन के वैज्ञानिकों ने भी इसी तरह के निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं जो आज विशेष रूप से प्रासंगिक हैं, क्योंकि दुनिया भर के देशों ने धीरे-धीरे लॉकडाउन में लागू प्रतिबंधों को कम करना शुरू कर दिया है और जनता भी सामान्य जीवन में वापस आने का मार्ग तलाश रही है।
लिविंगार्ड ने कोविड-19 के खिलाफ संघर्ष करने का संकल्प लिया है और फिलहाल पूरी दुनिया में पुलिसकर्मियों तथा इस संघर्ष में सबसे आगे काम कर रहे लोगों द्वारा इस मास्क का इस्तेमाल किया जा रहा है, और इस तरह यह कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में सबसे ज्यादा असुरक्षित लोगों की रक्षा करता है।
इस प्रकार के मास्क से न केवल हमारे शरीर को नुकसान पहुंचता है, बल्कि नॉन-बायोडिग्रेडेबल होने की वजह से यह पर्यावरण के लिए भी बड़े पैमाने पर हानिकारक है। आज मास्क हमारी जिंदगी का अभिन्न अंग बन चुके हैं और कोविड-19 संकट से निपटने में इसकी भूमिका सबसे अहम है, लेकिन ज्यादातर मास्क का प्रतिदिन निपटान करना बेहद जरूरी है, खासकर स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों के मास्क का प्रतिदिन निपटान करना आवश्यक है।
लेकिन, धीरे-धीरे यह कचरा पर्यावरण के लिए संकट बनता जा रहा है। दिल्ली और दूसरे महानगर आज भी इस कचरे को व्यवस्थित तरीके से इकट्ठा करने और उनका निपटान करने में काफी पीछे हैं, जो आगे चलकर सफाई कर्मियों की सेहत के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है।
हालांकि बाहर निकलते समय मास्क का उपयोग करने, घर पर मास्क बनाने, जैसी बातों के बारे में लोगों को बहुत सी सूचनाएं और जानकारी दी गई हैं, फिर भी एकल उपयोग मास्क के उचित तरीके से निपटान के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है ताकि इन्हें सड़कों पर, कचरे के निपटान स्थलों पर तथा दूषित जल निकायों में कूड़े के रूप में नहीं फेंका जाए।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि, वर्ष 2050 तक महासागरों में मछलियों की तुलना में प्लास्टिक अधिक मात्रा में मौजूद होगी, लेकिन पीपीई, मास्क, दस्ताने, प्रोटेक्टिव बॉडी बैग के रूप में एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक की खपत में भारी उछाल के कारण वक्त से पहले भी ऐसा हो सकता है। जब हम 130 बिलियन की आबादी वाले देश में डिस्पोजेबल मास्क के इस्तेमाल का आकलन करते हैं, तो हमें यह बात समझ आती है कि आने वाले दिनों में पर्यावरण को कितना बड़ा नुकसान होने वाला है।
मास्क का चयन करने से पहले इन 5 सवालों पर जरूर गौर करें:
क्या यह मास्क सर्टिफाइड है या वर्तमान में लागू नियामक मानकों के अनुरूप है?
SARS-CoV-2/ कोविड-19 से बचाव की जांच के लिए अपनाया गया परीक्षण प्रोटोकॉल और स्वतंत्र परीक्षण एजेंसियों / प्रयोगशालाओं की रिपोर्ट कितनी विश्वसनीय है, और परीक्षण प्रोटोकॉल में क्या संशोधन किए गए हैं? पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त ISO 18184 के मानकों के अनुरूप ही कपड़े से बनने वाले उत्पादों की एंटीवायरल क्षमता का निर्धारण किया जाता है।
उत्पाद की एंटीवायरल क्षमता कितने समय तक बरकरार रहती है – कितने वक्त तक इसके इस्तेमाल के बावजूद इसकी एंटीवायरल क्षमता कायम रह सकती है, कितनी बार धुलाई किए जाने तक यह क्षमता बनी रह सकती है, उत्पाद के निर्माण और/ या पैकेज को खोलने की तिथि के बाद कितने दिनों तक इसकी क्षमता बनी रहती है? – ISO 18184 प्रोटोकॉल के अनुसार परीक्षण से पहले मास्क को 10 बार धोना आवश्यक है– क्या इस प्रोटोकॉल का पालन किया गया है?
उत्पाद में इस्तेमाल किए जाने वाले एंटीवायरल एजेंट कितने सुरक्षित हैं– अगर उत्पाद का प्रदर्शन लंबे समय तक कायम नहीं रहता है, तो इसकी वजह क्या है? क्या यह इसमें मौजूद रसायनों के नहीं घुलने का दावा करता है?
अगर प्रोडक्ट में किसी तरह के एंटीवायरल गुण मौजूद होने के दावे किए गए हैं, तो क्या इस क्षेत्र में उपयोग के लिए तकनीक को मंजूरी दी गई है? क्या इस उत्पाद का जैव-अनुकूलता परीक्षण सफल रहा है, और क्या इस उत्पाद के सुरक्षित होने से संबंधित आंकड़े मौजूद हैं?