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मारीशस पूरी तरह हिन्दू सभ्यता और संस्कृति के रंग में रंगा
हिन्दी परिवार की मासिक बैठक पाठक संसद केन्द्रिय अहिल्या पुतकालय में आयोजित की गई। इस बार मारीशस में हुए 11 वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में इन्दौर से प्रतिनिधित्व करने वाले हिन्दी परिवार के सदस्य वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेई, डाँ चंद्रा सायता, कला जोशी ने वहाँ के रोमांचकारी यात्रा के संस्मरणों को साझा किया ।
उन्होंने बताया कि 1958 में मारीशस आजाद हुआ उसके पहले अरब, डच, फ्रेंच, जर्मन ने वहाँ पर शासन किया। माँरीशश में भारत से बिहारी उत्तरप्रदेश और दक्षिण के लोग ज्यादा बसे हुए हैं । मारीशस में गन्ना बहुतायात में पाया जाता है। शक्कर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादन देश है। यहाँ की आबादी मात्र 14 लाख है और उसकी अपनी कोई सेना नहीं है , सिर्फ पुलिस व्यवस्थता है , अमूमन क्राईम होते नहीं है , पूरा संचार तंत्र स्वचालित है।
शाम चार बजे बाद ही बाजार बंद हो जाते हैं। वहां के लोग घरों में भी शुद्ध हिन्दी बोलते हैं जिसकी हमारे यहाँ कल्पना भी नहीं की जा सकती। हमारे देश को गर्व से भारत कहा जाता है, इंडिया नहीं। वहाँ के लोग बेहद अनुशाषित एवं संस्कार वान है। हाथ जोडक़र नमस्कार प्रणाम कर अभिवादन करते हैं।
माँरीशश पूरी तरह हिन्दू सभ्यता और संस्कृ ति के रंग में रंगा हुआ है । वहाँ के इन्टरनेशनल ऐयरपोर्ट का नाम भी शिवसागर रामगुलाम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है । जगह जगह मंदिर बने हुए हैं , सो डेढ़ सौ फूट की शंकर , दुर्गा आदि देवी देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित है । मंदिरों में अद्भूत श्रंगार होता है उन पर दूध – हार फूल चढ़ाने की पाबंदी है, स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
घर के बाहर के दरवाजों में हनुमान और गणेश की मुर्तियाँ स्थापित है । गंगा तालाब है जहाँ शाम सवेरे हरिद्वार और बनारस की तरह गंगा आरती होती है । उसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि बिहार के लोग यहाँ से गंगा जल का पात्र भरकर ले जाते थे और उस तालाब में डालते थे इसलिये उस तालाब का नाम गंगा तालाब पड़ा।
पूरे कार्यकम परिसर को हिन्दु संस्कृति के रंग में रंगा गया था उसका नाम संत तुलसीनगर रखा गया था । जगह जगह मूर्धन्य साहित्यकारों मैथिलीशरण गुप्त , रामधारीसिंह दिनकर, निराला , सुमित्रानंदन पंत आदि के विशालकाय बैनर लगाये गये थे। कोरिया , चीन , जापान , हंगरी आदि देशों से संस्कृत सीखने आये हुए विद्यार्थियों ने स्वागत अभिनंदन का जिम्मा सम्हाल रखा था । 40 से अधिक देशों के प्रतिनिधी सदस्यों ने हिस्सा लिया। अंग्रेजी बोलने वाला कोई नहीं था।
सभी शुद्ध हिन्दी में वार्तालाप कर रहे थे । पूरा का पूरा कार्यक्रम पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेई को समर्पित किया गया था ,जगह जगह उनके कटआऊट लगे हुए थे । वहाँ के प्रधानमंत्री प्रवीण कुमार जगन्नाथ ने अपने उद्बोद्धन में अटलबिहारी वाजपेई को अपना बड़ा भाई बताया और कहा की उन्होंने ही माँरीशश को ऊँगली पकडक़र चलना सिखाया हमें विश्वास नहीं हो रहा है कि वो हमारे बीच नहीं रहे।
सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाला 11वें सम्मेलन का मोनो था , जिसे डिज़ाईन भी इन्दौर के ही अमित यादव ने किया था । यह मोनो 11 की आकृति में है जिसमें भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर हरे रंग में और वहां के लुप्त हो रहे लाल रंग के राष्ट्रीय पक्षी डोडो की आकृति है।
दोनों को समुद्र के पानी में तैरते हुए दिखाया गया और इसके पीछे तर्क यह दिया गया की मोर ने डोडो को समुद्र में डूबने से बचाया और कहा कि दोस्त तुम चिंता मत करो जब तक मैं हूँ तुम्हें कुछ नहीं होगा हम एक और एक मिलकर दो नहीं 11 हैं ,जो कि इस ११वें विश्व हिन्दी सम्मेलन का प्रतीक है ।
सम्मेलन कई सत्रों में संपन्न हुआ । सम्मेलन में हिन्दी परिवार की सहभागिता सबसे ज्यादा रही । अमूमन मंच पर बैनर भी हिन्दी परिवार का लगा हुआ था । सम्मेलन में दिल्ली , मुम्बई, भोपाल , इन्दौर से हिन्दी परिवार के कई सदस्य शामिल हुए । इन्दौर से वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेई कृष्ण कुमार अष्ठाना आलोक रस्तोगी डाँ चन्द्रा सायता कला जोशी साहित 12-15 सदस्यों ने शिरकत की ।
सम्मेलन को सुषमा स्वराज ने भी संभोधित किया और माँरीशश को अपना बेटा कहा। इस अवसर पर वहाँ के प्रधानमंत्री ने भारत में क्षय हो रही संस्कृति पर ङ्क्षचता जा़हिर की और कहा की हम वहाँ की संस्कृति को माँरीशश में जिंदा रखेंगे । अभिमन्यु अनन्त हाल में भाषा और संस्कृति के संवर्धन विषय पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे ।
डाक टिकट भी जारी किया गया । इस अवसर पर भोपाल से माँरीशश , हिमगंगा भूटान से, ज्ञानाचार आदि कई स्मारिकाओं , कृतियों का विमोचन भी किया गया। इसमें इन्दौर की लेखिका डाँ चन्द्रा सायता की कृति स्वस्थ दिल , स्वस्थ जीवन शैली कृति एवं कला जोशी की कृति भी शामिल है ।
बाल साहित्य पर संगोष्ठी इन्दौर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्णकुमार अष्ठाना की अध्यक्षता में संपन्न हुई । 11वां विश्व हिन्दी सम्मेलन अपने पीछे कई स्मृतियों की छाप छोड़ गया जिसकी यादें बरसों तक ह्रदय में अंकित रहेगी।
दिनेशचंद्र तिवारी, ओम उपाध्याय , रामआसरे पांडे , संतोष मोहंती , अनूप सहर हंसा मेहता , आशा जाखड़ , सुधा चौहान आदि उपस्थित थे । आभार प्रदीप नवीन ने माना ।