- टास्कअस ने हर महीने 250 से ज़्यादा नए स्टाफ को नियुक्त करने की योजना के साथ इंदौर में तेजी से विस्तार शुरू किया
- Capture Every Live Moment: OPPO Reno13 Series Launched in India with New MediaTek Dimensity 8350 Chipset and AI-Ready Cameras
- OPPO India ने नए AI फीचर्स के साथ पेश की Reno13 सीरीज़
- इंदौर एनिमल लिबरेशन की पहल: जानवरों के अधिकारों का हो समर्थन
- सपनों को साकार करने का मंच बन रहा है ‘प्लास्ट पैक 2025’
“श्राद्ध, श्रद्धेय और श्रृद्धा सुमन”
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
श्राद्ध कर्म का वर्णन हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णित है। सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध का समापन होने जा रहा है। श्राद्ध में निहित श्रृद्धा ही हमें श्रृद्धा सुमन अर्पित करने की ओर प्रेरित करती है। श्राद्ध के द्वारा हमारे पितृ प्रसन्न होते है। आज जीवन में जो शायद प्रसन्नता के सुन्दर रंग हमें चहुँ ओर बिखरे दिखाई देते है, वह हमारे पूर्वजों की मेहनत एवं आशीष का ही परिणाम है। उनके पुण्य प्रताप से ही हमें यह स्वस्थ्य काया एवं पुष्पित-पल्लवित माया प्राप्त हुई है।
प्रत्येक प्राणी मृत्यु से भयभीत होता है, परन्तु सृष्टि के संतुलन के लिए जन्म और मृत्यु दोनों ही आवश्यक है और यदि मृत्यु न हो तो बस एक का ही साम्राज्य हो जाएगा। मृत्यु ही तो हमें अंत में पीड़ा से मुक्ति प्रदान कर प्रभु के धाम में ले जा सकती है, परन्तु मृत्यु का सत्य कड़वा है। जिसे स्मृति पटल में रखना अत्यंत आवश्यक है। मृत्यु चिंता का विषय नहीं अपितु जीवन के प्रत्येक क्षण को उत्सव बनाने का विषय है और इस जीवन रूपी उत्सव में प्रभु के नाम का स्मरण ही हमें मुक्ति का मार्ग दिखा सकता है।
आने वाले समय में हमारी पीढ़ी श्राद्ध करेगी या नहीं, यह निश्चित नहीं है, परन्तु हम जीवित रहते हुए ही प्रभु के प्रति श्रृद्धा से स्व-उद्धार का मार्ग खोज सकते है। धुंधुकारी के कृत्य अच्छे नहीं थे पर श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण के पुण्य से ही उसे मुक्ति प्राप्त हो गई थी, तो आज हमारे पास उन्नत टेक्नोलॉजी एवं अनेक संसाधन उपलब्ध है। हमें अत्यधिक यत्न नहीं करना है अपने उद्धार के लिए। हम अपना कार्य सम्पादित करते-करते भी प्रभु के नाम का श्रवण, कीर्तन, वाचन कर सकते है। टीवी हो या इंटरनेट की सुविधा, हम अपनी इच्छा के अनुरूप कथा का श्रवण कर सकते है। समय की उपलब्धता के अनुसार हम अपने संशय की निवृत्ति वेद, शास्त्रों, ग्रंथो के अध्ययन द्वारा भी कर सकते है। श्रवण, वाचन, ध्यान इन सभी के लिए सर्व-सुलभ साधन उपलब्ध है और कलयुग में मोक्ष प्राप्ति का साधन प्रभु का नाम जप ही बताया गया है। कथा श्रवण के कारण ही हनुमानजी ने श्रीराम जी के साथ वैकुंठ जाना स्वीकार नहीं किया, अपितु पृथ्वी पर रहकर ही प्रभु के नाम की अनवरत वर्षा में भाव-विभोर होने का निर्णय किया क्योंकि वे ईश्वर के नाम की महिमा को भलीं-भाँति समझते है। आज तीर्थ यात्रा की सुलभता बढ़ गई है। किसी भी स्तुति का गायन, वाचन, श्रवण हम आसानी से कर सकते है। प्रत्येक कथा अलग-अलग साधु-संतों के द्वारा समय की उपलब्धता के अनुसार सुनी जा सकती है, पर फिर भी हम सदैव आने वाले कल की प्रतीक्षा करते है। हमें इस मृत्यु लोक में रहते हुए ही प्रभु की आराधना द्वारा अपने कल्याण का मार्ग तय करना है।
परिवर्तित परिवेश और परिस्थितियों के अनुरूप हमें स्वयं ही अपने कल्याण का मार्ग निश्चित करना होगा। जब हमारी मृत्यु होती है तब हमें “राम नाम सत्य है”, इस कथन को जन मानस सुनाते है और उस समय इस सत्य को समझने योग्य हम नहीं रह पाते। हम इस नश्वर शरीर और संसार की माया हो ही सत्य मानते है और उसी में ही लिप्त रहते है, पर सृष्टि के सृजन कर्ता एवं पालन कर्ता उनकी लीला और उनके अस्तित्व की महिमा की ओर हमारा ध्यान केंद्रित नहीं होता है। हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि यदि मरते समय प्राणी को ईश्वर का स्मरण हो जाए तो उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है, परन्तु हमारा सामाजिक परिवेश हमें परिवारजन और रिश्तेदारों में ही उलझाएँ रखता है। हम मोह-माया के जाल से छूट नहीं पाते है। हमारे बुजुर्ग तो इसीलिए परिवार के सदस्यों की नाम ही भगवान के नाम पर रखते थे, जिससे प्रतिक्षण एवं अंत समय में भी प्रभु का ही स्मरण होता रहे। हमारे धर्म ग्रंथों में पितरो के उद्धार के लिए पिण्ड-दान, तर्पण इत्यादि विधियों का उल्लेख मिलता है, पर क्यों हम स्वयं के उद्धार के चिंतनीय विषय पर नहीं सोचते। श्राद्ध में निहित श्रृद्धा ही हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता के भाव का बोध कराती है। आइये हम सब इस श्राद्ध में जिन श्रद्धेय पूर्वजों ने हमें असीम प्यार, स्नेह प्रदान किया एवं हमें आशीष देते हुए इस संसार से विदा प्राप्त की उनके प्रति ह्रदय से श्रृद्धा सुमन अर्पित करें।