जन्माष्टमी का पर्व आज मनाया जाएगा, इस वर्ष बिना रोहणी नक्षत्र के मनानी होगी श्री कृष्ण जन्माष्टमी

डॉ श्रद्धा सोनी
वैदिक ज्योतिष आचार्य, रत्न विशेषज्ञ, वास्तु एक्सपर्ट

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, लेकिन कई बार ऐसी स्थिति बन जाती है कि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र दोनों एक ही दिन नहीं होते है !

इस बार भी कृष्ण जन्म की तिथि और नक्षत्र एक साथ नहीं मिल रहे हैं 18 अगस्त को रात्रि 9 बजकर 30 मिनट के बाद अष्टमी तिथि का आरंभ हो जाएगा जो 19 अगस्त को रात्रि 11 बजकर 06 मिनट तक रहेगी, वहीं रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 19 अगस्त को रात्रि 01 बजकर 59 मिनट से होगा ! जन्माष्टमी का पर्व 19 अगस्त शुक्रवार में मनाया जाएगा।

19 अगस्त में व्रत और श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व

हम सभी के लिए 19 अगस्त शुक्रवार को व्रत रखना चाहिए, 19 अगस्त को उदयातिथि में अष्टमी तिथि रहेगी और रात्रि 11:06 के बाद नवमी तिथि लग जाएगी, इस दिन अष्टमी और नवमी दोनो रहेंगी, साथ उस दिन कृतिका नक्षत्र बन रहा है, जन्माष्टमी को लेकर जब विचार किया जाता है तो रोहिणी नक्षत्र का ध्यान अवश्य रखा जाता है, लेकिन इस बार 18 और 19 अगस्त दोनों ही दिन रोहिणी नक्षत्र का संयोग नहीं बन पा रहा है, पुष्पांजलि पंचांग और संकट मोचन पंचांग के अनुसार, 19 अगस्त को कृत्तिका नक्षत्र देर रात 01.59 तक रहेगा, इसके बाद रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ होगा, इसलिए इस बार जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र का संयोग भी नहीं रहेगा, इसलिए 19 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का पर्व मनाया जाएगा।

मथुरा-वृंदावन में सालों से पंरपरा रही है कि भगवान कृष्ण जन्माष्टमी के जन्मोत्सव सूर्य उदयकालिक और नवमी तिथि विद्धा जन्माष्टमी मनाने की परंपरा है इसलिए 19 अगस्त में ही श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा, गृहस्थ संप्रदाय के लोग कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं और वैष्णव संप्रदाय के लोग कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं, जन्माष्टमी को मनाने वाले दो अलग-अलग संप्रदाय के लोग होते हैं, स्मार्त और वैष्णव इनके विभिन्न मतों के कारण दो तिथियां बनती हैं।

स्मार्त वह भक्त होते हैं जो गृहस्थ आश्रम में रहते हैं। यह अन्य देवी-देवताओं की जिस तरह पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं, उसी प्रकार कृष्ण जन्माष्टमी का धूमधाम से उत्सव मनाते हैं। उसी प्रकार वैष्णव जो भक्त होते हैं वे अपना संपूर्ण जीवन भगवान कृष्ण को अर्पित कर देते हैं। उन्होंने गुरु से दीक्षा भी ली होती है और गले में कंठी माला भी धारण करते हैं। जितनी भी साधु-संत और वैरागी होते हैं, वे वैष्णव धर्म में आते हैं।

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