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समय रहते शल्यक्रिया होने से एक नवजात को दुर्लभ हृदय बीमारी से नवजीवन
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मध्य भारत में पहली बार अपोलो राजश्री अस्पताल इन्दौर नें नवजात शिशु में पेसमेकर समाविष्ट कर शिशु को दुर्लभ हृदय की बीमारी से बचाया
इन्दौर – एक वयस्क हृदय सामान्यतः 50 से 60 की गति से धड़कता है। वहीं यह बच्चों में अधिक गति से धड़कता है – जो कि उसकी उम्र पर निर्भर करता है और यह गति 120 से 160 धड़कन प्रति मिनट तक हो सकती है। हमनें, यहां इन्दौर के अपोलो राजश्री अस्पताल में एक 2 किलोग्राम के 2 दिन के नवजात को बचाया, जिसकी हृदयगति मात्र 50 धड़कन प्रति मिनट है। बिना इलाज के इस नवजात का बचना असंभव था।
इस बच्ची को जन्म से ही हृदय में बाधा होकर उसकी हृदयगति 50 धड़कन प्रति मिनट से भी कम थी। इस अवस्था का समय रहते हुए निदान बाल हृदयरोग विषेषज्ञ डॉ. संजुक्ता भार्गव द्वारा उस वक्त किया गया जब वह बच्ची एस.एन.एस. अस्पताल, इन्दौर में डॉ. ज़फर खान की देखभाल में हृदपात और श्वांस लेने की तकलीफ के साथ भर्ती हुई थी।
बीमारी का निदान कर बच्ची को इन्दौर में विजयनगर स्थित राजश्री अपोलो अस्पताल भेजा। यहां पर बाल हृदय शल्यचिकित्सक डॉ. निशित भार्गव द्वारा स्थायी पेसमेकर शरीर में समाविष्ट किया गया और उसके पश्चात बच्ची ने स्थिर स्वास्थ्यलाभ प्राप्त किया जिसके बाद उसे अस्पताल से स्वस्थ्य अवस्था में डिस्चार्ज किया गया।
इस अवसर पर बात करते हुए डॉ. निशित भार्गव ने कहा कि यह संभवतः मध्य भारत का पहला इस प्रकार का मामला है। उन्होंनें कहा, “जब बच्ची अपोलो राजश्री अस्पताल में भर्ती हुई उस वक्त उसके दिल की धड़कन 50 की गति से भी कम थी और वह जन्मजात हृदय बाधा से पीडि़त थी, ऐसी स्थिति में उसका बचना काफी मुष्किल था।
सामान्यतः हृदय की गति 120 से 160 धड़कन प्रति मिनट होती है।” आगे उन्होंने कहा कि पूर्ण हृदय की गति का रूक जाना एक दुर्लभ विकार है जिसका व्यपकता 22000 नवजातों में 1 की होकर, बचने की संभावना बहुत की कम होती है। यह विकार तब होता है जब माता की एंटीबॉडी गर्भनाल को पार करके गर्भस्थ शिशु में स्थानांतरण हो जाता है। यह एंटीबॉडी बच्चे के कार्डियोमायोसाईट्स और कंडक्षन टिष्यृ से जुड़कर उन्हें नुकसान पहुँचाते है।
डॉ. निशित भार्गव, डॉ. संजुक्ता भार्गव, डॉ. ज़फर खान और डॉ. बिपिन आर्या की टीम द्वारा सफल शल्यक्रिया की गई। बाल हृदय शल्यचिकित्सक डॉ. निशित भार्गव ने बताया कि शल्यक्रिया पूर्व सबसे बड़ी चुनौती थी बच्ची के माता-पिता को शल्यक्रिया के लिये तैयार करना, क्योंकि बच्ची का वजन मात्र 2 किलोग्राम ही था। अन्य चुनौती थी बच्ची के लिये पेसमेकर का उपलब्ध कराना। हमें खुशी है कि इस टीम ने चुनौतियों का मुकाबला कर सफलता प्राप्त की। अभी वह बच्ची स्वस्थ और सुरक्षित है।
अपोलो राजश्री अस्पताल, इन्दौर के निदेशक डॉ. अशोक बाजपई ने बताया कि 36 वर्ष पहले मरीज़ों को अत्याधुनिक उपचार देने की दृष्टि से अपोलो की नींव रखी। यह उपलब्धी उसकी ओर एक और कदम है। मैं पूरी टीम को बधाई और उत्कृष्टता की खोज के लिये उन्हें शुभकामनाओं देता हूँ।
अपोलो राजश्री अस्पताल, विजयनगर, इन्दौर कार्डियोलॉजी में उत्कृष्टता का केन्द्र है और हृदयरोग और हृदय शल्यक्रिया के अंतर्गत 360 डिग्री सेवाऐं प्रदान कर रहा है जिसमें नैदानिक, इंटरवेनशनल कार्डियोलॉजी, हृदयशल्यक्रिया, बाल हृदय हृदयशल्यक्रिया और निवारक कार्डियोलॉजी शामिल है।