प्रकृति की सुंदरता नृत्य द्वारा व्यक्त की

इंदौर. मांदल की थाप पर थिरकते भील, आदिवासी कलाकारों के कदम, हाथ में धनुष, तीर कमान लिये घूम-घूम कर नृत्य करते हुए जब लालबाग परिसर में रोड शो करने निकले तो चारों तरफ उनके देखने के लिए भारी भीड़ जमा हो गई. इसके पीछे-पीछे कर्नाटक के लोक कलाकार,मध्यप्रदेश के लोक कलाकार भी प्रस्तुङ्क्षतयां देते चल रहे थे. वहीं झूलों का आनंद उठाते बच्चों और युवा तरह-तरह की आवाज निकाल रहे थे. वहीं माता पिता अपने बच्चों को ऊंंट पर बिठा कर फोटो निकालने की होड़ कर रहे थे. व्यंजनेां के स्टाल पर भी भारी भीड़ थी. जनता सिगड़ी मसाला डोसा पसंद कर रही थी. तो रंग मराठी व्यंजन भी अपना रंग जमा रहे थे. गर्माे की वजह से लोग कुल्फी, आईसक्रीम,ज्यूस का लुत्फ उठाते नजर आये.लोक संस्कृति के संयोजक शंकर लालवानी ने बताया कि संस्कृति में आसाम का बिहू नृत्य खास रहा. जिसमें लय बद्व ताल पर नृत्य , लड़के मंूगा सिल्क की धोती पहनकर तथा लड़किया मैक्नसादा पहनकर नदी, हवा,फूल के माध्यम से प्रकृति की सुंदरता को नृत्य द्वारा व्यक्त की. वाद्य यंत्र रूप में हाथ से बने गोगोना,बासुरी,ड्रग्स और झांझ का इसमें सुंदर प्रयोग हुआ. यादव जनजाति का बरेदी नृत्य जो कि दीपावली पर गोवर्धन पूजा से प्रारंभ होकर 15 दिनों तक किया जाता है. श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को भी दर्शाया गया. पंजाब से आये लोक कलाकारों ने प्रेमी-प्रेमिका द्वारा आपस की चुहल बाजी को दर्शाता हुआ जिन्दुआ प्रस्तुत किया. साथ ही पंजाब की समृद्व सांस्कृतिक विरासत को बताता बलबई, गिद्वा प्रस्तुत किया.हर खुशी के मौके पर आने वाला मस्ताना लोक नृत्य भांगड़ा प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया.महाराष्ट्र से आये लोक कलाकारों ने मछुआरों  के द्वारा किया जाने वाला नृत्य कोली नृत्य प्रस्तुत किया.  जिसमें दर्शकों के बीच में से दूल्हा – दुल्हन को मंच पर लाया गया. और सारे बाराती खुशी में झूमकर नृत्य करते हुए दिखाई दिये. यह नृत्य सामान्यत: शादी, कोकोनट डे और होली के अवसर पर किया जाता है. काला तलाव गांव जिला भावनगर से आये लोक कलाकारों ने नवदुर्गा पर किया जाने वाला खूबसूरत नृत्य गरबा प्रस्तुत किया. जिसमें सर पर घड़े में मिटटी का दीपक रख कर हाथों से ताली बजाते हुए घूम-घूम कर नवदुर्गा की आराधना प्रस्तुत की. मणीपुर के लोक कलाकारों ने लाई हरोबा जो कि मेटेईस जनजाति का लोकनृत्य है. जिसमें वहां की प्राचीन जीवन पद्वति को बताया जाता है. साथ ही कर्नाटक का सुगी कुनिथा, तेलगंाना का गुस्साडी़ व उड़ीसा का ढ़ालसाई भील भगोरिया एवं उत्तराखंड का नृत्य भी प्रस्तुत हुआ. कला कार्यशाला में भी काफी भीड़ उमड़ रही है.

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