पुत्र प्राप्ति के लिए गर्भाधान काल

डॉ श्रद्धा सोनी, वैदिक ज्योतिषाचार्य, रतन विशेषज्ञ, वस्तु एक्सपर्ट

दंपति की इच्छा होती है कि उनके घर में आने वाला नया सदस्य पुत्र ही हो। कुछ लोग पुत्र-पुत्री में भेद नहीं करते, ऐसे लोगों का प्रतिशत बहुत कम है। यदि आप पुत्र चाहते हैं या पुत्री चाहते हैं तो कुछ तरीके यहां दिए जा रहे हैं, जिन पर अमल कर उसी तरीके से सम्भोग करें तो आप कुछ हद तक अपनी मनचाही संतान प्राप्त कर सकते हैं-

पुत्र प्राप्ति हेतु मासिक धर्म के चौथे दिन सहवास की रात्रि आने पर एक प्याला भरकर चावल का धोवन यानी मांड में एक नीबू का रस निचोड़कर पी जावें। अगर इच्छुक महिला रजोधर्म से मुक्ति पाकर लगातार तीन दिन चावल का धोवन यानी मांड में एक नीबू निचोड़कर पीने के बाद उत्साह से पति के साथ सहवास करे तो उसकी पुत्र की कामना के लिए भगवान को भी वरदान देना पड़ेगा। गर्भ न ठहरने तक प्रतिमाह यह प्रयोग तीन दिन तक करें, गर्भ ठहरने के बाद नहीं करें।

गर्भाधान के संबंध में आयुर्वेद में लिखा है कि गर्भाधान ऋतुकाल (मासिक धर्म) की आठवीं, दसवीं और बारहवीं रात्रि को ही किया जाना चाहिए। जिस दिन मासिक ऋतु स्राव शुरू हो, उस दिन तथा रात को प्रथम दिन या रात मानकर गिनती करना चाहिए। छठी, आठवीं आदि सम रात्रियां पुत्र उत्पत्ति के लिए और सातवीं, नौवीं आदि विषम रात्रियां पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती हैं अतः जैसी संतान की इच्छा हो, उसी रात्रि को गर्भाधान करना चाहिए।

इस संबंध में एक और बात का ध्यान रखें कि इन रात्रियों के समय शुक्ल पक्ष यानी चांदनी रात (पूर्णिमा) वाला पखवाड़ा भी हो, यह अनिवार्य है, यानी कृष्ण पक्ष की रातें हों तो गर्भाधान की इच्छा से सहवास न कर परिवार नियोजन के साधन अपनाना चाहिए।

शुक्ल पक्ष में जैसे-जैसे तिथियां बढ़ती हैं, वैसे-वैसे चन्द्रमा की कलाएं बढ़ती हैं। इसी प्रकार ऋतुकाल की रात्रियों का क्रम जैसे-जैसे बढ़ता है, वैसे-वैसे पुत्र उत्पन्न होने की संभावना बढ़ती है, यानी छठवीं रात की अपेक्षा आठवीं, आठवीं की अपेक्षा दसवीं, दसवीं की अपेक्षा बारहवीं रात अधिक उपयुक्त होती है।

पूरे मास में इस विधि से किए गए सहवास के अलावा पुनः सहवास नहीं करना चाहिए, वरना घपला भी हो सकता है। ऋतु दर्शन के दिन से 16 रात्रियों में शुरू की चार रात्रियां, ग्यारहवीं व तेरहवीं और अमावस्या की रात्रि गर्भाधान के लिए वर्जित कही गई है। सिर्फ सम संख्या यानी छठी, आठवीं, दसवीं, बारहवीं और चौदहवीं रात्रि को ही गर्भाधान संस्कार करना चाहिए।

गर्भाधान वाले दिन व रात्रि में आहार-विहार एवं आचार-विचार शुभ पवित्र रखते हुए मन में हर्ष व उत्साह रखना चाहिए। गर्भाधान के दिन से ही चावल की खीर, दूध, भात, शतावरी का चूर्ण दूध के साथ रात को सोते समय, प्रातः मक्खन-मिश्री, जरा सी पिसी काली मिर्च मिलाकर ऊपर से कच्चा नारियल व सौंफ खाते रहना चाहिए, यह पूरे नौ माह तक करना चाहिए, इससे होने वाली संतान गौरवर्ण, स्वस्थ, सुडौल होती है।

गोराचन 30 ग्राम, गंजपीपल 10 ग्राम, असगंध 10 ग्राम, तीनों को बारीक पीसें, चौथे दिन स्नान के बाद पांच दिनों तक प्रयोग में लाएं, गर्भधारण के साथ ही पुत्र अवश्य पैदा होगा।

शक्तिशाली व गोरे पुत्र प्राप्ति के लिए—

गर्भिणी स्त्री ढाक (पलाश) का एक कोमल पत्ता घोंटकर गौदुग्ध के साथ रोज़ सेवन करे | इससे बालक शक्तिशाली और गोरा होता है | माता-पीता भले काले हों, फिर भी बालक गोरा होगा | इसके साथ सुवर्णप्राश की २-२ गोलियां लेने से संतान तेजस्वी होगी |

यदि आपकी संनात होती हो परन्तु जीवित न रहती हो तो सन्तान होने पर मिठाई के स्थान पर नमकीन बांटें।

भगवान शिव का अभिषेक करायें तथा सूर्योदय के समय तिल के तेल का दीपक पीपल के पेड़ के पास जलायें, लाभ अवश्य होगा। मां दुर्गा के दरबार में सुहाग सामिग्री चढ़ाये तथा कुंजिका स्तात्र का पाठ करें तो भी अवश्य लाभ मिलेगा।

पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का तरीका—–

पुराने आयुर्वेद ग्रंथों में पुत्र-पुत्री प्राप्ति हेतु दिन-रात, शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष तथा माहवारी के दिन से सोलहवें दिन तक का महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथों में भी इस बारे में जानकारी मिलती है।

यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।

चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।

पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।

छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।

सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।

आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।

नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।

दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।

ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।

बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।

तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।

चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।

पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।

सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।

व्यास मुनि ने इन्हीं सूत्रों के आधार पर पर अम्बिका, अम्बालिका तथा दासी के नियोग (समागम) किया, जिससे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर का जन्म हुआ। महर्षि मनु तथा व्यास मुनि के उपरोक्त सूत्रों की पुष्टि स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक ‘संस्कार विधि’ में स्पष्ट रूप से कर दी है। प्राचीनकाल के महान चिकित्सक वाग्भट तथा भावमिश्र ने महर्षि मनु के उपरोक्त कथन की पुष्टि
पूर्णरूप से की है।

गर्भाधान मुहूर्त—–

जिस स्त्री को जिस दिन मासिक धर्म हो,उससे चार रात्रि पश्चात सम रात्रि में जबकि शुभ ग्रह केन्द्र (१,४,७,१०) तथा त्रिकोण (१,५,९) में हों,तथा पाप ग्रह (३,६,११) में हों ऐसी लग्न में पुरुष को पुत्र प्राप्ति के लिये अपनी स्त्री के साथ संगम करना चाहिये। मृगशिरा अनुराधा श्रवण रोहिणी हस्त तीनों उत्तरा स्वाति धनिष्ठा और शतभिषा इन नक्षत्रों में षष्ठी को छोड कर अन्य तिथियों में तथा दिनों में गर्भाधान करना चाहिये।

COMMENTS

  • <cite class="fn">Hemlata Bhardwaj</cite>

    Mujhe agar 4th January ko shaam 7:30p.m. bje date aayi tho uske hisaaab se mera 8th day 10th day konsa hoga means meri even dates konsi hongi

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