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अधिक मास में रोगों से मचेगा हाहाकार: आचार्य शर्मा

इंदौर. अधिक (पुरुषोत्तम) मास में विष्णु के साथ शिव की भी कृपा प्राप्त होगी. विष्णु के आग्रह पर श्रीकृष्ण ने मल को पुरुषोत्तम मास नाम दिया. 19 वर्षों बाद आश्विन अधिक मास आया. फल प्राप्ति की इच्छा से किये जाने वाले सभी कार्य वर्जित है. भगवत्प्राप्ति वाले कार्य का अक्षय फल मिलेगा. तुलसी में दीपदान करें. रोगों से हा हा कार मचेगा. कहीं अकाल व दुर्भिक्ष भी होगा. जनता को जीवन जीने की कला सीखना होगी. स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ेगी.
यह बात भारद्वाज ज्योतिष व आध्यात्मिक शोध संस्थान के शोध निदेशक आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा वैदिक ने कही. आचार्य शर्मा ने बताया कि ज्योतिष व धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों की मान्यता है कि जिस माह में सूर्य की संक्रांति नहीं हो वह माह, अधिक मास के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष 19 वर्षों के बाद उसी माह व दिन से आश्विन अधिक मास प्रारम्भ हो रहा है. पूर्व में 18 सितम्बर 2001 को आया था. आगे भी 18 सितम्बर 2039 को पुन: आश्विन अधिक मास के रूप में आएगा.
आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि अधि मास 32 माह, 16 दिन व 4 घड़ी के अंतर से आया करता है. सूर्य व चन्द्रमा के वर्षों में अंतर होता है. सूर्य का वर्ष 365 दिनों से कुछ अधिक और चंद्रमास 354 दिनों का होता है. चंद्र व सूर्य मास के इस अंतर को पूरा करने के लिए हमारे ज्योतिर्मनिषियों व धर्मशास्त्रकारों ने अधिक मास की व्यवस्था की है. इस वर्ष आश्विन का माह अधिमास के रूप में 18 सितम्बर से 16 अक्टूबर शुक्रवार तक रहेगा. पितृपक्ष के बाद नवरात्र 29 दिनों बाद आरम्भ होगी.
आश्विन अधिक मास का क्या है फल
18 सितम्बर से 16 अक्टूबर शुक्रवार तक अधिक मास रहेगा। प्रथम आश्विन शुक्ल और द्वितीय आश्विन कृष्ण दोनों पक्षों के अंतराल में सूर्य संक्रांति का अभाव होने से यह अधिक मास, पुरूषोत्तम मास के रूप में प्रसिद्ध होगा. धर्मशास्त्रों में आश्विन अधिक मास को शुभ नहीं माना है. जनता रोग ग्रस्त व दुखी रहेगी. देश में हा हा कार की स्तिथियाँ बनेगी. देश में कहीं-कहीं दुर्भिक्ष व अकाल जैसी स्तिथियाँ भी बनेगी. स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ेगी. जनता को जीवन जीने की कला स्वयमेव ही सिखना होगी.
अधिक मास में क्या करें क्या नहीं
आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि अधिक मास में फल प्राप्ति की इच्छा से किये जाने वाले सभी कार्य धर्म शास्त्रों ने वर्जित किये है, वहीं ईश्वर के उद्देश्य से जो कार्य किये जाते है उनका अक्षय फल होता है. अधिक मास में विवाह, मुंडन,गृहारम्भ, गृह प्रवेश, देवप्रतिष्ठा, फल की प्राप्ति से किये जाने वाले अनुष्ठान, नए आभूषण, वाहन, भूमि भवन आदि सामग्री की खरीदी व अन्य कामय्य कर्म वर्जित है.
रोगादि कष्ट की निवृत्ति के लिए जप, अनुष्ठान, गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्त आदि आवश्यक कार्य व संस्कार किये जा सकते हैं. आचार्य शर्मा वैदिक के बताया कि तुलसी के सम्मुख दीपदान, ऊँ नमो भगवते वसुदेवाय का जप ,सूर्य नमस्कार,अर्घ्य दान व पाठ पूजा आदि कार्य श्रेष्ठ है. भगवान विष्णु के साथ शिवजी की भी कृपा प्राप्तहोगी.
विष्णु पुराण के अनुसार मल मास को साक्षात शिवजी की कृपा का मास कहा गया है। शिवजी व विष्णु भगवान की पूजा अर्चना से अलौकिक आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है व लक्ष्मी नारायन की कृपा बनी रहती है। शिवपुराण में अधिमास को भगवान शिव का स्वरूप बताया है। पुराणों के अनुसार देव वचन है कि प्रभो शिव,,,आप माह में अधिमास व व्रतों में चतुर्दशी (शिवरात्रि) व्रत है।
इस प्रकार इस माह विष्णु भगवान के साथ देवाधिदेव महादेव की कृपा भी प्राप्त होती है।जो फल सौ वर्षों तक जपतप करने से प्राप्त होता है वहअधिमास में मात्र एक ही दिन चतुर्दशी को शिवजी व विष्णु दोनों की आराधना से प्राप्त हो जाता है।धर्मशास्त्रों मै अधिमास में श्री विष्णुजी कातुलसी से अर्चन,पुरुषोत्तम मास का महात्म्य पाठ, दान आदि शुभ कर्म करता है उसे गोलोक की प्राप्ति व योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त होता है।
ऐसे पड़ा पुरुषोत्तम मास नाम
आचार्य पण्डित रामचंद्र शर्मा वैदिक ने बताया कि इस मास के देवता प्रजा के पालक भगवान विष्णु है। मलमास को प्रजा पालक विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के चरणों मे नतमस्तक करवाया। इस सम्बंध में विभिन्न पुराणादि धर्मशास्त्रों में कथा है कि मलमास ने भगवान विष्णु को अपनी व्यथा बताई की , है श्रीवेकुंठाधिपति मेरे (मलमास) का सभी शुभ कार्यों में तिरस्कार कर दिया गया है।इस पर भगवान ने मल की व्यथा कथा सुन गोलोक ले जा उसे श्रीकृष्ण के चरणों मे नतमस्तक करवाया।श्रीकृष्ण ने मल की व्यथा सुन उसे विष्णु भगवान के आग्रह पर पुरुषोत्तम मास नाम दिया।