कोविड के संकट के समय बच्चों की भावनात्मक बेहतरी की उपेक्षा नहीं करें: विशेषज्ञ

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की पूर्व संध्या पर, एसओएस चिल्ड्रन विलेज ने पेरेंटिंग और इमोशनल वेलबीइंग कोच डा. शिल्पा गुप्ता के साथ मिलकर बच्चों के लिए  भावनात्मक सहायता कार्यक्रम शुरू किया।

नई दिल्ली. एसओएस चिल्ड्रेन विलेजेज आफ इंडिया के विशेषज्ञों ने वर्तमान कोविड संकट के दौरान बच्चों और किशोरों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान कोविड महामारी के दौरान बच्चे तनाव एवं मानसिक समस्याओं से घिर सकते हैं और उनके जीवन पर इनका स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि भावनात्मक बेहतरी मानसिक स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन यह बच्चों के विकास के प्रारंभिक वर्षों के दौरान बच्चों के आसपास के वातावरण से संबंधित कारकों के अलावा पारिवारिक मसलों और बच्चे के व्यक्तित्व से जुड़े अन्य मुद्दों से भी प्रभावित होता है।

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की पूर्व संध्या पर, एसओएस  चिल्ड्रन विलेजेज ने प्रसिद्ध पेरेंटिंग और इमोशनल कोच डॉ शिल्पा गुप्ता के साथ मिलकर इमो एड नामक बच्चों के लिए भावनात्मक सहायता कार्यक्रम शुरू किया है।

एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज ऑफ इंडिया के सीनियर डिप्टी नेशनल डायरेक्टर श्री सुमंता कर ने कहा, “हमारे पास देश भर में 32 गांवों में रहने वाले करीब 7,000 बच्चे हैं। हम फैमिली स्ट्रेंथिंग प्रोग्राम के जरिए सीधे तौर पर 17,000 से ज्यादा बच्चों को सहायता प्रदान करते हैं। हमारी देखरेख में रहने वाले बच्चों की भावनात्मक बेहतरी हमारे लिए महत्वपूर्ण प्राथमिकता है। इसके लिए, हमने कई मॉड्यूल विकसित किए हैं जैसे कि रेसिलेंस बिल्डिंग, सकारात्मक युवा विकास और एक नया बाल प्रवेश कार्यक्रम।

इसका कारण यह है कि हमारे विलेज में आने वाले बच्चे पहले से ही किसी न किसी प्रकार के आघात से गुजर चुके होते हैं। एसओएस माताओं की भावनात्मक बेहतरी के लिए एक कार्यक्रम भी है, क्योंकि देखभालकर्ताओं का मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है। अब, डॉ शिल्पा गुप्ता के सहयोग से, हमने बच्चों और एसओएस माताओं को भावनात्मक प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने के लिए एक ऑनलाइन कार्यक्रम शुरू किया है।

इसमें एक व्यक्ति के भावनात्मक स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए व्यावहारिक उपकरण और तकनीक सीखने के लिए ऑनलाइन कार्यशालाएं शामिल हैं और भावनात्मक चिंताओं को बढ़ने से रोकना है। यह कार्यक्रम हमारे बच्चों की भावनात्मक क्षमता का निर्माण करेगा। ”

सेंटर फॉर चाइल्ड एंड अडोलेसेंट वेलबीइंग (सीसीएडब्ल्यू) की एसोसिएट डायरेक्टर डॉ शिल्पा गुप्ता परामर्शदाता और सलाहकार के रूप में एसओएस चिल्ड्रन विलेज से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा “आज जब कोरोनावायरस को लेकर भय ने समाज को अपनी गिरफ्त में ले लिया है वैसे में यह बच्चों और किशोरों के लिए चुनौतीपूर्ण समय हैं और इसके कारण स्वास्थ्य को लेकर चिंता बढ रही है।

स्कूल के कार्यक्रम गड़बड़ा गए है जो कि बच्चों को उनके व्यवहार में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस महामारी के कारण बड़ी संख्या में परिवार आर्थिक तंगी के शिकार हो चुके हैं जिसके परिणामस्वरूप बच्चों के भावनात्मक या शारीरिक शोषण की समस्या बढ़ सकती है। कई बच्चे अपने स्वयं के स्वास्थ्य और अपने प्रियजनों के बारे में चिंतित हैं। “

श्री सुमंता कर ने कहा  “2016 में किए गए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में पाया गया था कि 13 से 17 वर्ष की आयु के बच्चों में मानसिक विकारों की व्यापकता 7.3 प्रतिशत है, जो हर साल बढ़ी रही है। कोविड महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को बदतर बना दिया है। चीन में एक अध्ययन के अनुसार, कोविड -19 के प्रकोप के कारण समग्र भावनात्मक बेहतरी में में 74 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। लोगों में चिंता, अवसाद, और आक्रोश, और कम सकारात्मकता जैसी नकारात्मक भावनाएं प्रकट हो रही है। भारत में भी इसी तरह की स्थितियां हो सकती हैं।”

डॉ शिल्पा गुप्ता ने कहा: “बच्चे दिन भर कई भावनाओं का अनुभव करते हैं जैसे उदासी, अकेलापन, गुस्सा, चिड़चिड़ापन, तनाव, हताशा, इत्यादि। इमोएड के जरिए उन्हें उन भावनात्मक कठिनाइयों से निबटने में मदद की जाती है जिनका सामना वे रोजाना करते हैं। इसके तहत अनेक वैज्ञानिक उपकरण और तकनीक हैं जो बच्चों को अपनी भावनाओं को बेहतर ढंग से विनियमित करने और उन्हें अपनी भावनाओं को संभालने में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सशक्त बनाते हैं। शुरुआती परिणाम बहुत उत्साहजनक रहे हैं। ”

डॉ शिल्पा गुप्ता ने बच्चों की भावनात्मक भलाई पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले कोविड  -19 के दौरान के कारकों को समझाते हुए कहा: ” बच्चों के घर से बाहर होने, स्कूलों के बंद होने के कारण उनके साथियों के साथ कम बातचीत होने और शिक्षण में कमी और अभिभावकों में  बेरोजगारी अथवा मादक पदार्थों के दुरूपयोग से कई पर्यावरणीय कारक जुडे हैं । परिवारिक के कारकों में जो मुद्दे शामिल हैं उनमें एक यह है कि माता–पिता बच्चों को महामारी की स्थिति के बारे में सही तरीके से समझा नहीं पा रहे हैं।

इसके अलावा माता–पिता नहीं जानते कि बच्चों को कैसे स्वस्थ्य तरीके से रचनात्मक कामों में संलग्न रखा जाए। साथ ही बच्चे पहले की तुलना में अधिक रूप से घरेलू हिंसा की घटनाओं को देख रहे हैं और इसके कारण बच्चों में चिंता, क्रोध और निराशा बढ़ रही है। जिन बच्चों का खराब स्कूली प्रदर्शन है, जिन्हें सीखने में कठिनाइयां हैं या जो पहले से ही मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त है।

उनमें भावनात्मक समस्याएं होती है। जिनमें भावनात्मक समस्या होती है उनमें अति सक्रियता, ध्यान केन्द्रित करने से संबंधित समस्या आवेग, आक्रामकता, आत्म-अनुचित व्यवहार, दूसरों के साथ सामाजिक संवाद नहीं करना, अत्यधिक भय या चिंता, अपरिपक्वता, सीखने की कठिनाइयों या मनोदशा में असामान्य बदलाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं।”

उन्होंने कहा: “ये सभी निष्कर्ष बच्चों की भावनात्मक भलाई को मजबूत करने की दिशा में तत्काल काम करने के लिए हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं ताकि बच्चे चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हो सकें, उनमें आत्मसम्मान का विकास हो और उनमें मजबूती आए तथा सकारात्मक भावनाओं में वृद्धि हो।  माता-पिता या देखभाल करने वाले बच्चों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे कमजोर बच्चों की भावनात्मक जरूरतों को समझें, उनकी बात सुनें, उन्हें आराम दें और उन्हें आश्वस्त करें। ”

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