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सिकल सेल एवं अप्लास्टिक एनीमिया नियंत्रण के लिए विदेशी भी अपना रहे हिंदुस्तानी तरीके
राज्यपाल मंगुभाई पटेल से चर्चा में सीसीआरएच,आयुष मंत्रालय,भारत सरकार की वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. ए. के. द्विवेदी ने दी जानकारी
इंदौर। समूचे उत्तर और मध्य भारत में सर्दियों के दौरान गुड़ और तिल की बनी गजक खासतौर पर खूब खाई जाती है। इससे खून बढ़ता है। जिसका सीधा फायदा सिकल सेल एवं अप्लास्टिक एनीमिया जैसी खून की कमी होने वाली बीमारियों से बचाव में होता है। इनसे रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है क्योंकि इन लड्डुओं में मैग्नीशियम, कॉपर, आयरन विटामिन, नियासिन, फास्फोरस, प्रोटीन के साथ-साथ कई अन्य मिनरल्स भी पाये जाते हैं। इसी तारतम्य में तिल-गुड़ के लड्डू और चक्की भी इस्तेमाल की जाती है।
भारतीय खानपान से जुड़ी कुछ ऐसी ही दिलचस्प और महत्वपूर्ण बातें मैंने अपनी हाल की लंदन और दुबई यात्राओं के दौरान विदेशियों को दीं और वे इन्हें अपनाकर स्वयं को सेहतमंद बना रहे हैं। इन जानकारियों का दस्तावेज, भारत सरकार के आयुष मंत्रालय, सी सी आर एच की वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. ए. के. द्विवेदी ने शुक्रवार को राज्यपाल मंगुभाई पटेल की इंदौर यात्रा के दौरान दीं। अप्लास्टिक एनीमिया पर उन्होंने पाँच मरीजों के सफल इलाज की अपनी केस स्टडी साझा करते हुए बताया कि अप्लास्टिक एनीमिया में गोंद के लड्डू, मेवे के लड्डू और खसखस का हलवा जैसी कई भारतीय रेसेपीज बहुत फायदा पहुँचाती हैं।
एप्लास्टिक एनीमिया डे के मौके पर आगामी 3 मार्च आयोजित होने वाले कार्यक्रम के लिए डॉक्टर द्विवेदी ने राज्यपाल महोदय को आमंत्रित भी किया। उन्होंने बताया कि 25 फरवरी से 3 मार्च तक सिकल सेल एवं अप्लास्टिक एनीमिया से बचाव को लेकर विशेष अभियान पूरे शहर में चलाया जाएगा और समापन दिवस पर “राष्ट्रीय आयुष कॉन्फ्रेंस” भी आयोजित की जाएगी। जिसमें सिकलसेल एनीमिया, अप्लास्टिक एनीमिया, आयरन डेफिशियेंसी एनीमिया तथा हीमोलीटिक एनीमिया पर विषय विशेषज्ञों द्वारा विस्तृत चर्चा की जाएगी। इस अवसर पर देवी अहिल्या विवि की कुलपति डॉ. रेणु जैन, ख्यात मनोचिकित्सक डॉ. वैभव चतुर्वेदी समेत अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे।