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सत्संग से ही मिलेंगे सदगुणों के गहने: स्वामी जगदीशपुरी
इंदौर। सभी शास्त्रों का सार भागवत है। भागवत जैसा ग्रंथ हर देष, काल एवं परिस्थिति में प्रासंगिक है, जो संषयग्रस्त व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के जीवन में सही मार्ग पर प्रवृत्त करता है। भागवत वह कथा है जिसमें भूल से भी चले आएंगे तो जीवन का उद्धार हो जाएगा। जीवन को संवारने के लिए सोने-चांदी और हीरे-पन्ने के आभूषण नहीं, सदगुणों एवं संस्कारों के गहने चाहिए जो सत्संग से ही मिलेंगे.
शक्करगढ़, भीलवाड़ा स्थित अमरज्ञान निरंजनी आश्रम के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी जगदीशपुरी महाराज ने मनोरमागंज स्थित गीता भवन पर चातुर्मास अनुष्ठान के अंतर्गत आज भागवत कथासार एवं प्रवचन के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किये. गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन एवं सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी, जेपी फडिय़ा आदि ने प्रारंभ में महामंडलेश्वरजी का स्वागत किया.
आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री ने स्वस्ति वाचन किया. इसके पूर्व सुबह महामंडलेश्वरजी के सान्निध्य में विष्णु सहस्त्रनाम से आराधना में भी सैकड़ों भक्त शामिल हुए. गीता भवन में स्वामी जगदीशपुरी महाराज के सान्निध्य में प्रतिदिन प्रात: 8.30 से 9 बजे तक विष्णु सहस्त्रनाम से आराधना, 9 से 10.30 एवं सांय 5 से 6.30 बजे तक भागवत कथासार एवं प्रवचनों की अमृत वर्षा जारी रहेगी.
एक क्षण भी बदल सकता है दिशा
भागवत महात्यम बताते हुए विद्वान वक्ता ने कहा कि कलियुग में भागवत कथा में एक क्षण का सत्संग भी जीवन की दशा और दिशा बदल सकता है। भागवत ऐसा महासागर है जिसमें अनेक रत्न भरे पड़े हैं। जितना गहरा उतरेंगे, उतना बड़ा खजाना इस भंडार में मिल जाएगा। भागवत को ऐसा कल्पवृक्ष भी कहा गया है जिसकी छाया में जाने वाले व्यक्ति के प्रत्येक शुभ संकल्प फलीभूत होते हैं। भागवत जीवन के संशयों से स्वयं को मुक्त करने का सबसे सरल और सहज माध्यम है।