मिच्छामि दुक्कडम शब्द नहीं भाव: जिनमणिप्रभ

इंदौर. क्षमा(मिच्छामि दुक्कडम) मनुष्यता की पहचान है. एक तरफ से मांगी गई या की गई छमा का कोई अस्तित्व नहीं होता. कोई क्षमा करेगा या नहीं ऐसे संकल्प विकल्प को छोड़कर जो अपने शत्रु या प्रतिद्वंदी के समक्ष स्वयं उपस्थित होकर निश्चल हृदय से क्षमा मांगता है वही विनम्र और क्षमाशील कहलाता है। क्षमा में असीमित शक्ति होती है.
यह बात आज पर्युषण पर्व के अंतिम दिन महावीरबाग में गच्छाधिपति आचार्य जिनमणि प्रभ सूरीश्वर जी ने श्रावक श्राविकाओं के समक्ष कही. बारसा सूत्र के वाचन के बाद प्रवचन पांडाल में सभी ने सामूहिक रूप से छमा मांगी.
खरतरगच्छ जैन श्री संघ के तत्ववावधान में एरोड्रम रोड स्थित महावीरबाग में चल रहे चातुर्मास के फॉरेन आज पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण के अंतिम दिन  छमापना दिवस जिसे संवत्सरी महापर्व भी कहते है, पर गुरुवार को सुबह मंदिर जी से बारसा सूत्र की शोभायात्रा निकालकर प्रवचन स्थल लाया गया जहाँ आचार्य जिनमणि जी ने सूत्र का वाचन किया.
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ श्रीसंघ एवं चातुर्मास समिति के प्रचार सचिव संजय छांजेड़, जितेंद्र शेखावत एवं चातुर्मास समिति संयोजक छगनराज हुंडिया एवं डूंगरचंद हुंडिया ने जानकारी देते हुए बताया कि आज सिद्धि तप की तपस्या करने वालो का अंतिम दिन था.
गुरुवार को प्रात: 7 बजे बारसा सूत्र को मंगल जुलूस के रूप में मंदिर जी से प्रवचन स्थल लाया गया। गुरूवार को नरेश मेहता, हेमंत लसोढ़, सूजान चोपड़ा, प्रदीप छाजेड़, धर्मेंद्र मेहता सहित समग्र जैन समाज बंधु शामिल हुए थे.

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