- Did you know Somy Ali’s No More Tears also rescues animals?
- Bigg Boss: Vivian Dsena Irked with Karanveer Mehra’s Constant Reminders of Family Watching Him
- Portraying Diwali sequences on screen is a lot of fun: Parth Shah
- Vivian Dsena Showers Praise on Wife Nouran Aly Inside Bigg Boss 18: "She's Solid and Strong-Hearted"
- दिवाली पर मिली ग्लोबल रामचरण के फैन्स को ख़ुशख़बरी इस दिन रिलीज़ होगा टीज़र
प्लास्टिक उद्योग पर आई पर्यावरण के लिए साझा जिम्मेदारी
ईपीआर की अस्पष्टता पर सेमिनार संपन्नइ
ंदौर। देश में प्लास्टिक उद्योग पर विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (ईपीआर) की अवधारणा प्रस्तुत की है। जिसके लिए अभी नियम और कायदे अस्पष्ठ है। प्लास्टिक उद्योग पर बढते दबाव के चलते देश के अनेक राज्यों में इसके तहत सख्ती भी हुई और कई कारखानें बंद किए गए थे। लेकिन उद्योग की बडी समस्या इसका पालना करना है। इस मामलें में इंडियन प्लास्टपैक फोरम ने एक सेमिनार का आयोजन कर इस संबध में चर्चा की।
विषय विशेषज्ञ के रूप में रिलायंस इंडस्ट्रीज के श्री राजेश कोबा मौजूद थे। उन्होनें विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (ईपीआर) पर अभी तक के प्रयासों की जानकारी दी। साथ ही उद्योगपतियों को संगठन के रूप में मिल कर इस दिशा में शासन से बात करने के साथ पीआरओ या वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी के रूप में प्रयास करने का सुझाव दिया।
आईपीपीएफ के सचिव सचिन बंसल ने बताया कि प्लास्टिक के लिए सोश्ल मिडिया पर फैले रहे भ्रम और अनेक भ्रांतियों के चलते प्लास्टिक पर प्रतिबंध की मांग उठती है। सरकार द्वारा पर्यावरण के हित में विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (ईपीआर) की अवधारणा प्रस्तुत की गई है इसमें अस्पष्टताओं के कारण, ईपीआर विवाद की जड़ बन चुका है। ईपीआर की शर्तों का पालन नहीं किए जाने के कारण देश के कई शहरों में सैकड़ों प्लास्टिक प्रसंस्करण इकाइयों को या तो सील कर दिया गया है या फिर इन्हें बंद कराया गया है।
उन्होनें बताया कि सही तरीके से रिसायकलिंग सिस्टम का उपयोग किया जाए तो इसे रोका जा सकता है। ईपीआर उसी का हिस्सा है लेकिन इसमें कौन कितनी जिम्मेदारी उठाएगा इस पर स्पष्ट नियम नही है। उन्होनें बकाया कि बीते वर्ष महाराष्ट्र में उद्योग कारखानों को सील किया गया था। इसका व्यापक विरोध भी किया गया था।
ईपीआर नीति की अस्पष्टता को दूर करने और निर्माताओं ने ईपीआर के कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त समय दिए जाने उद्योग जगत कर रहा है। सेमिनार में ईपीआर स्पेशलिस्ट राजेश कोबा ने बताया कि भारत में 10 फीसदी सालाना की बढ़ोतरी के साथ प्लास्टिक बनाया जा रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 2016 के अनुमानों के मुताबिक, रोज 15 हजार टन प्लास्टिक का कचरा पैदा होता है, जिसमें से 9 हजार टन इक_ा करके प्रॉसेस किया जाता है, जबकि बाकी 6 हजार टन आम तौर पर नालियों और सड़कों पर गंदगी फैलाने के लिए छोड़ दिया जाता है या लैंडफिल यानी कचरा जमा करने वाले स्थलों पर पाट दिया जाता है। तकरीबन 80 लाख टन प्लास्टिक हर साल समुद्रों में पहुंच जाता है और समुद्री जीवन के लिए खतरा पैदा कर देता है।
कचरे को छांटना एक बड़ी समस्या है। लैंडफिल में जमा प्लास्टिक आसपास की मिट्टी, जमीन और यहां तक कि पानी को भी दूषित करता है। उन्होनें बताया कि चिंता की बात है कि एक बार इस्तेमाल वाले प्लास्टिक का चलन बढ़ रहा है। उत्पादन और खपत का पैटर्न आने वाले दशक में या उसके बाद भी दोगुनी बढ़ोतरी दिखा रहा है। तो अभी हम इसमें भले तैर रहे हैं, पर जल्दी ही डूब जाएंगे।
भारत में में सालाना तकरीबन 11 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है। भारत में एक बार इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक बढ़ रहा है। इसे रिसाइकल कर पाना तकरीबन नामुमकिन है क्योंकि इसमें से ज्यादातर की मोटाई 50 माइक्रॉन से कम है। कैरी बैग, स्ट्रॉ, कॉफी स्टॉरर, गैस वाले पेयों, पानी की बोतलों और ज्यादातर फूड पैकेजिंग में इस्तेमाल हुए प्लास्टिक में से 50 फीसदी इसी श्रेणी में आते हैं।
उन्होनें बताया कि कचरा बीनने वाले केवल वही उठाते हैं जिसे रिसाइकल किया जा सकता है। पीईटी बोतलें तो आसानी से रिसाइकल हो जाती हैं, पर टेट्रा पैक, चिप पैक और एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले केचप पाउच सरीखे ज्यादातर (90 फीसदी) प्लास्टिक रिसाइकल नहीं होते। सरकार जहां प्लास्टिक को कम और रिसाइकल करने पर जोर दे रही है।
कई प्रदेशों में एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक बिक्री खुदरा इस्तेमाल और यहां तक कि भंडारण तक तमाम स्तरों पर पर पाबंदी लगाई है।
निर्माताओं को लेनी होगी जिम्मेदारी
सेमिनार बताया गया है कि आम राय है कि इस समस्या से निबटने के लिए ऊपर से नीचे का तरीका अपनाना चाहिए और प्लास्टिक बनाने वाले ही वे लोग हैं जिन्हें आगे आकर यह दुष्चक्र तोडऩा चाहिए। एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी या ईपीआर यानी बनाने वालों पर यह अतिरिक्त जिम्मेदारी डालना की अवधारणा है। क्योंकि मुश्किल यह है कि हम इससे निबटने के लिए एकजुट नीति आखिर कैसे बनाएं।
जिम्मेदारी मैन्युफैक्चरर पर ही डालनी होगी, क्योंकि जो प्लास्टिक बनाता है, उसे ही इसे रीसाइकल करना या निबटाना होगा। ईपीआर की अवधारणा केवल कागजों पर मौजूद है, पर 2016 के कचरे के नियमों में बाद में बदलाव किए गए और ये मैन्युफैक्चरर्स की जिम्मेदारी तय नहीं करते। दुनिया के कई देशों में ईपीआर लागू करने के बाद कई मॉडल उपयोग किए गए है। उन पर भारत में भी काम किया जा रहा है। ऐसे में ब्रांड आनर्स ने सामूहिक रूप से प्लेटफार्म बना कर काम शुरू किया है। इस मॉडल छोटे शहरों में भी काम किया जा सकता है। उद्योग स्वंय अलग अलग नही करते हुए संगठन के रूप में काम कर सकते है।