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देश में सरकार की बात होती है लेकिन राष्ट्र की बात नहीं होतीः पुष्पेंद्र
इंदौर. देश में सरकार की बात तो होती है लेकिन राष्ट्र की बात नहीं. देश को सरकार चलाती है और उस सरकार को लोग चुनते हैं. सरकारें आती-जाती रहती है. राष्ट्र स्थायी है और इसे समाज चलाता है. इसे सरकार नहीं चला सकती. राष्ट्र आस्था से जुड़ा होता है और उसकी कोई सीमा नहीं होती. जबकि देश सीमाओं में बंधा होता है.
यह विचार हिन्दू राष्ट्र शक्ति के संस्थापक और मुख्य संरक्षक हिन्दूवादी नेता पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ के हैं, जो उन्होंने शाम को निजी होटल में आयोजित पत्रकार वार्ता में कहे. इस मौके पर संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष मृत्युंजय सिंह भी विशेष रूप से उपस्थित थे.
उन्होंने कहा कि समाज डरपोक या कायर हो जाता है तो उस कमजोरी के कारण मूल्यों, संस्कारों, संस्कृति, आस्थाओं में सरकार का दखल शुरू हो जाता है और सरकार डिक्टेक्ट करने लगती है. हमारी जिंदगी में वर्तमान में 99 प्रतिशत हस्तक्षेप सरकार है. इसका एक उदाहरण सबरीमाला मंदिर या कुछ मंदिर है. जबकि यह आस्था का विषय है, सुप्रीम कोर्ट या सरकार का नहीं.
जो काम समाज को करना चाहिए वह कानून नहीं कर पाएगा. इसलिए मैं युवाओं से चाहता हूं कि समाज को जगाए. समाज की कुरीरियों को बताए. रिफरेंस अपने साथ में रखे. समाज को जगाए और जो गलत हो रहा है उसके लिए सरकार पर दबाव बनाए.
उन्होंने कहा कि हमारा संगठन हिन्दू राष्ट्र शक्ति का संबंध किसी राजनैतिक दल से नहीं है और न ही वह चुनाव लड़ता है। संगठन का काम हिन्दू समाज को जाग्रत करना और पूर्ववर्ती सरकारों ने जो गलतियां की हैं, उसे सुधारना. हम ईमानदारी से काम करेंगे तो निश्चित ही राष्ट्र खड़ा होगा. बस हम सभी मुद्दों को घर-घर तक पहुंचाएं.
सभी धर्म बराबर तो अल्पसंख्यक का दर्जा क्यों
उन्होंने कहा कि हमारा हिन्दू समाज बड़ा वैष्णवी, उदारवादी और अहिंसक है, जो न कभी धर्मान्तरण करता है और न ही किसी पर हथियार उठाता है। इसके बावजूद उसी के देश में हिन्दुओं के साथ अत्याचार हो रहे हैं। वर्ष 2014 से लेकर 2019 की अवधि में 183 हिन्दू मॉबलिचिंग में मारे गए। लेकिन कहीं भी इस पर चर्चा नहीं होती. हमारे दशे को सेक्यूलर कहा जाता है तो माइनोरिटी कमीशन की जरूरत क्या पड़ी. सभी धर्म बराबर है तो फिर किसी एक को विशेष दर्ज देने की क्या जरूरत. श्री कुलश्रेष्ठ ने कहा कि भारत में मात्र दो प्रतिशत सिख हैं, 3 प्रतिशत बौद्ध हैं, जबकि 22 फीसदी मुस्लिम हैं। ऐसे में मुस्लिमों को अल्पसंख्यक कहना ठीक नहीं है।