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बनना तो डाॅक्टर चाहता था, बन गया इंजीनियर
सांसद शंकर लालवानी ने छात्र जीवन से सांसद तक की यात्रा के सुनाए दिलचस्प प्रसंग
इंदौर। कक्षा 9वीं में मेरा विषय बायोलाॅजी था, 11वीं मंे गणित विषय लिया और बाद में मुंबई के काॅलेज से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की। मुंबई से ही छात्र राजनीति में सबसे पहले कक्षा प्रतिनिधि बना और बाद में जनरल सेक्रेटरी। मुंबई की आपाधापी अच्छी नहीं लगी इसलिए इंदौर आना पड़ा। पढ़ाई के साथ मुंबई में करीब 6 माह नौकरी भी की। मैं बनना तो डाॅक्टर चाहता था, लेकिन इंजीनियर बन गया। मेरे रोल माॅडल मेरे पिताजी ही थे।
इंदौर संसदीय क्षेत्र के नए सांसद शंकर लालवानी ने हाल ही एक सार्वजनिक समारोह में अपने छात्र जीवन से सांसद तक के सफरनामे का खुलासा किया। डाॅ. ओम नागपाल शोध संस्थान एवं ओम विचार मंच के संयुक्त तत्वावधान में दुआ सभागृह मंे विहिप के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी.एस. कोकजे की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में रचना जौहरी ने लालवानी से खुले मंच पर बात की और विभिन्न प्रश्नों के जवाब प्राप्त किए।
प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से डाॅ. दिव्या गुप्ता ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताते हुए लालवानी एवं न्यायमूर्ति कोकजे सहित शहर के प्रबुद्धजनों का स्वागत किया।
प्रश्नों के उत्तर में लालवानी ने कहा कि मेरे पिताश्री पाकिस्तान के सिंध प्रांत से माईग्रेट होकर भारत आए थे। पहले ब्यावरा मंे रहे, फिर इंदौर में जेलरोड सोनारवाड़ा के पास रहने लगे। बाद में जयरामपुर कालोनी में आ गए। पिताजी बहुत सख्त थे। मैंने उन्हें हमेशा संघर्ष करते देखा। उन्होंने शून्य से अपना कारोबार शुरू किया और सराफा में काम करने लगे। मेरा जन्म जयरामपुर कालोनी में हुआ। मेरा जन्म शिवरात्रि के दिन हुआ, इसलिए घर वालों ने शंकर नाम रखा।
प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर में हुई जहां मुझे वासुदेव नगर में रहने वाली माला ताई रानाडे और बापटताई ने पढ़ाया। सरकारी स्कूल में भी पढ़ा। कक्षा 9वीं में मेरा विषय बायोलाॅजी था, 11वीं में मैंने गणित विषय लिया और खूब मेहनत की। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए मुंबई चला गया। वहां संघ के प्रचारक गोविंद सारंग और अ.भा. वि.प. के शालीग्राम तोमर से खूब सहयोग मिला। मुंबई में ही छात्र राजनीति में पहले कक्षा प्रतिनिधि बना, बाद में जनरल सेक्रेटरी। मुंबई के कुछ कांग्रेसियों ने मुझे एक रात एक कमरे मंे बंद कर दिया, इस कारण मैं अपना वोट नहीं दे सका। मुंबई की भागदौड़ अच्छी नहीं लगी इसलिए इंदौर लौट आया।
जब मुंबई से इंदौर आया तो मेरे पास 54 हजार रू. थे, जो मैंने काॅलेज की पढ़ाई के दौरान बचाए थे। मेरे प्रिय विषय संस्कृत और राजनीति रहे। बाईस वर्ष पूर्व लोक संस्कृति मंच शुरू किया ताकि अपनी संस्कृति की लाईन बड़ी कर सकूं। इसकी शुरूआत संजा बनाने से हुई। बाद में कार्यक्रमों का स्वरूप बढ़ता गया।
प्रश्नों के उत्तर में लालवानी ने कहा कि मोदीजी पर मुझे पूरा विश्वास था इसीलिए 5 लाख से अधिक वोटों से जीता। सुमित्रा ताई ने इंदौर के लिए बहुत से काम किए हैं, उन पर गर्व है। अब यदि बात इंदौर को अगले पांच वर्षों में समस्याओं से निजात दिलाने की है तो सबसे पहले यातायात समस्या का नाम आता है, इसके बाद पेयजल की समस्या भी है, खान नदी को कलकल बहते देखना और सहायक नदियों की सफाई करना भी जरूरी है।
इस अवसर पर साहित्यकार वीना नागपाल, मनोहर देव, प्रो. मंगल मिश्र, अजीतसिंह नारंग, प्रदीप दीक्षित, शिक्षाविद डाॅ. एस.एल. गर्ग सहित बड़ी संख्या मंे प्रबुद्धजन उपस्थित थे।