- उर्वशी रौतेला 12.25 करोड़ रुपये में रोल्स-रॉयस कलिनन ब्लैक बैज खरीदने वाली पहली आउटसाइडर इंडियन एक्ट्रेस बन गई हैं।
- Urvashi Rautela becomes the first-ever outsider Indian actress to buy Rolls-Royce Cullinan Black Badge worth 12.25 crores!
- 'मेरे हसबैंड की बीवी' सिनेमाघरों में आ चुकी है, लोगों को पसंद आ रहा है ये लव सर्कल
- Mere Husband Ki Biwi Opens Up To Great Word Of Mouth Upon Release, Receives Rave Reviews From Audiences and Critics
- Jannat Zubair to Kriti Sanon: Actresses who are also entrepreneurs
स्मार्ट इम्प्लांट सिस्टम और सही प्लानिंग के जरिए एक सीटिंग में लगाए जा सकते हैं सभी दांतों के इम्प्लांट

तीन दिनी आईएसओआई की 30वीं नेशनल कॉन्फ्रेंस का आगाज, 70 से अधिक नेशनल-इंटरनेशनल स्पीकर्स शामिल
ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर में एक हजार से अधिक इम्प्लांटोलॉजिस्ट कर रहे हैं नई तकनीकों पर चर्चा
इंडोर। इम्प्लांट्स की तकनीक बदल रही है। अब एक ही सीटिंग में कम समय में पूरे दांतों के इम्प्लांट लगाए जा सकते हैं। स्मार्ट इम्प्लांट सिस्टम और सही प्लानिंग के बारे में ट्रेनिंग देने के लिए आईएसओआई की 30वीं नेशनल कॉन्फ्रेंस में इजराइल से आए आईएसओआई के डिप्लोमैट डॉ स्लोमो बीरशन आए। उन्होंने कहा कि मरीज को एक ही सीटिंग में कम से कम समय में पूरे दांत लगा दिए जाने चाहिए ताकि अगले दिन वो मुस्कुरा पाए क्योंकि कोई भी ख़ुशी से दांतों का ट्रीटमेंट नहीं करता है इसलिए मरीजों को कम समय में गुणवत्तापूर्ण इलाज देकर उन्हें क्वालिटी ऑफ लाइफ देना ही एक डेंटिस्ट का लक्ष्य होना चाहिए।
गौरतलब है क़ि डॉ स्लोमो बीरशन के पास डेंटल इम्प्लांट का 25 साल से अधिक का अनुभव है। डॉ स्लोमो की खासियत है कि उनके पास जो भी पेशेंट आते हैं, वे बहुत ही कम समय में उसका डेंटल इम्प्लांट पूरा कर देते हैं। इसके लिए उन्होंने नई तकनीक भी ईजाद की है। कॉन्फ्रेंस में उन्होंने अपने अनुभव और काम करने के तरीके को देश भर से आए एक हजार से अधिक डेंटिस्ट के साथ साझा किया। उन्होंने सभी डॉक्टर्स को डेंटिस्ट्री के क्षेत्र में हर रोज होने वाले तकनिकी नवाचारों और मेडिसिन के बारे में अपडेट रहने की सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि हर तीन महीने में डेंटिस्ट के पास जाने और अपने दांतों की सही देखभाल करने से आप भविष्य में होने वाली परेशानियों से बच सकते हैं।
इंडस्ट्रियल सेशन और पेपर प्रेजेंटेशन
कॉन्फ्रेंस के ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ मनीष वर्मा ने बताया कि शुक्रवार को आईएसओआई में आए सभी डेलीगेट के लिए टर्फ क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन भी किया गया। शनिवार को कांफ्रेंस का औपचारिक उद्घाटन किया जाएगा।
इंडस्ट्री ओरिएंटेड सेशन हुए
कॉन्फ्रेंस के ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ दीपक अग्रवाल ने बताया कि पहले दिन पांच हॉल्स में 18 सेशंस हुए। साथ ही करीब 100 पेपर प्रेजेंटेशन भी हुए, जो पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट्स के द्वारा किए गए। एक सेशन इंडस्ट्री ओरिएंटेड भी था, जिसमें डेंटिस्ट के साथ ही इम्प्लांट बनाने वाली कंपनियों के टेक्निशियंस भी मौजूद थे और उन्होंने सभी डॉक्टर्स को टेक्निकल ट्रेनिंग दी। डॉ गगन जैसवाल ने बताया क्रिकेट में छह टीमों ने भाग लिया था। इस टूर्नामेंट का उद्घाटन पूर्व क्रिकेटर संजय जगदाले और अंतर्राष्ट्रीय पूर्व अंपायर नरेंद्र मेनन ने किया। ट्रेड इंचार्ज डॉ राजीव श्रीवास्तव ने बताया शाम को सभी डेलीगेट्स के लिए सराफा चौपाटी वेन्यू पे तैयार की है जहां उनके लिए इन्दोरी फ़ूड को एक्सप्लोर करने के लिए खास इंतजाम किए गए थे।
पहली चॉइस है इम्प्लांट
डॉ सुधींद्र एस कुलकर्णी इम्प्लांट हमेशा पहली चॉइस होता है। आजकल हम ब्रिज का विकल्प देते ही नहीं है क्योंकि किसी को भी अच्छा दांत नहीं काटना होता है। वही सीनियर्स को भी कॉलिटी ऑफ लाइफ चाहिए होती है। डेन्चर को बार-बार लगाना और निकलना परेशानी भरा होता है। इसकी सफाई का भी ज्यादा ध्यान रखना होता है, ऐसी स्थिति में डेंटल इम्प्लांट ही बेस्ट होते हैं। डॉ कुलकर्णी कहते हैं कि आज कल स्माइल करेक्शन पर लोग बहुत ध्यान देने लगे हैं। दांतों की पोजीशन ठीक नहीं हो तो स्माइल सुंदर नहीं लगती है इसलिए ब्रेसेस के जरिए दांतों की पोजीशन ठीक करके स्माइल को अट्रेक्टिव बनाया जाता है। यदि कुछ ही दांत टेड़े-मेढे हैं तो उन्हें आसान प्रक्रिया के जरिए ठीक करके स्माइल को सुंदर बनाया जाता है।
पेशेंट स्पेसिफिक इम्प्लांट का समय
डॉ जतिन कालरा ने बताया कि 1960 से इम्प्लांट लगाने की तकनीक शुरू हुई थी। तब से अब तक इसके सरफेस, फिटिंग और हड्डी न होने पर इम्प्लांट लगाने की नई तकनीकों के साथ ही कई बदलाव आए हैं। आज के समय में हम पेशेंट स्पेसिफिक इम्प्लांट की बात करते हैं, जिसमें मरीज के फेस को स्कैन करके परफेक्ट नाप के साथ इम्प्लांट तैयार किए जाते हैं। इससे इम्प्लांट का सक्सेस रेट कई गुना बढ़ गया है। अब हम मात्र तीन घंटों में मरीज के पूरे दांत फिट कर सकते हैं। 20 वर्ष की उम्र के बाद के इम्प्लांट लगाए जा सकते हैं। टियर-2 सिटीज में भी आजकल मेट्रो सिटीज की तरह सारी उन्नत तकनीकें और ट्रेंड डॉक्टर्स उपलब्ध है। यहां के मरीजों में भी इम्प्लांट को जागरूकता है।
किफायती हो रहे हैं इम्प्लांट्स
डॉ सुजीत बोपार्दीकर ने बताया कि कई सिचुएशन में मरीज की हड्डी मौजूद नहीं होती है तब हमें यह विचार करना पड़ता है कि इम्प्लांट कैसे किया जाए। तब दो तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है-पहला क्लीनिकल और दूसरा मटेरियल। क्लीनिकल तरीके में खर्च अधिक होता है और मरीज को ज्यादा तकलीफ का सामना करना पड़ता है इसलिए हम दूसरी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। आज के समय में इम्प्लांट के लिए विभिन्न मटेरियल का इस्तेमाल होता है, जिससे इलाज का खर्च भी कम हो जाता है और मरीज को ज्यादा दर्द नहीं होता।