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मेरे पास मेरा क्या है, यही जानना चातुर्मास: मुक्तिप्रभ सागर
इन्दौर, 20 जुलाई. इस संसार मे जिसे हम अपना या मेरा समझते है दरअसल वह अपना होता नहीं है. जिससे आप सम्बन्ध बनाते है वह आपका होता ही नही है। चातुर्मास यही जानने के लिए होता है कि मेरे पास मेरा क्या है.
यह प्रेरक विचार खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी के शिष्य मुनिराज श्री मुक्तिप्रभ सागरजी महाराज ने आज साउथ तुकोगंज स्थित कंचनबाग उपाश्रय में धर्मालुजनो को संबोधित करते हुए व्यक्त किए. उन्होंने आगे अपने प्रवचन में कहा कि सबसे पहले आपको यह निश्चित करना होगा कि मेरे पास मेरा क्या है तब ही उसे आपको बचाने के प्रयास करना चाहिए.
इसके पश्चात धर्मसभा को मनीष प्रभ सागरजी, आचार्य जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी महाराज ने भी धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आत्मा का भविष्य सुधारने के लिए वर्तमान को सुधारना जरूरी है. अगर वर्तमान सुधर गया तो आत्मा का भविष्य निश्चित ही सुधर जाएगा।
चातुर्मास के संबंध में आपने कहा कि आत्मा को शुद्ध और बुद्ध बनाने का साधन ही चातुर्मास है. इससे पूर्व धर्मसभा में दिव्यप्रभा श्रीजी की शिष्या विश्वज्योति श्रीजी ने कहा कि मर्यादित जीवन ही सही जीवन होता है.
शोभायात्रा के साथ मंगल प्रवेश
नीलवर्णा जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता एवं सचिव संजय लुनिया ने जानकारी देते हुए बताया कि खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी के सान्निध्य में उनके शिष्य पूज्य मुनिराज मुक्तिप्रभ सागर एवं मनीषप्रभ सागरजी का पंजाब अरोड़वंशीय धर्मशाला से शोभायात्रा के साथ मंगल प्रवेश हुआ.
मंगल प्रवेश में आचार्य जिनमणिप्रभ सूरीश्वर महाराज के शिष्य मुनिराजश्री मुक्तिप्रभ सागर एवं मनीषप्रभ सागर की श्वेताम्बर जैन समाज के सभी वरिष्ठजन महिला मंडल एवं युवा संगठन दोनों ही शिष्यों की अगवानी की.
पंजाब अरोड़वंशीय धर्मशाला से नवकारसी के पश्चात मंगल जुलूस निकाला गय. दोनों शिष्यों की यह मंगल प्रवेश यात्रा में उनके साथ साधु-साध्वी मंडल भी शामिल थेे. यात्रा साऊथ तुकोगंज पंजाब अरोड़वंशीय धर्मशाला से प्रारंभ होकर विभिन्न मार्गों से होते हुए कंचनबाग उपाश्रय पहुंची। जहां इस शोभायात्रा का समापन हुआ.