देवउठनी ग्यारस पर 59 साल बाद शनि-गुरु का संयोग: वैदिक

पांच माह बाद जागेंगे श्रीहरि, शुरू होंगे मंगल कार्य

इंदौर. अधिक मास के चलते देवउठनी ग्यारस पर पांच माह बाद श्री हरि जागेंगे. 59 वर्षों बाद शनि-गुरु संयोग भी बना है. लोग जीवन जीने की कला सीखेंगे, आत्मनिर्भर होंगे. विवाहादि मङ्गल कार्य शुरू होंगे. प्रदोष वेला में तुलसी विवाह होगा.

उक्त बात भारद्वाज ज्योतिष व आध्यात्मिक शोध संस्थान के शोध निदेशक आचार्य पण्डित रामचंद्र शर्मा वैदिक ने कही. उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवउठनी, विष्णु प्रबोधिनी व देवोत्थान एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है. इस वर्ष आश्विन अधिक मास के चलते देवशयन काल चार नही पांच माह का अर्थात 148 दिनों का रहा।

इस वर्ष श्री हरि एक माह बाद जाग रहे है. भगवान नारायण के जागते ही विवाहादि मङ्गल कार्यों का सिलसिला प्रारम्भ हो जाएगा. आचार्य वैदिक ने बताया कि देवउठनी ग्यारस पर इस वर्ष कतिपय विशेष ज्योतिषीय संयोग निर्मित हो रहे है. उत्तराभाद्रपद व रेवती नक्षत्र का संयोग, सिद्धि योग, ब्रहस्पति प्रधान मीन राशि का चन्द्रमा इस पर्व की शोभा बढ़ा रहे है.

गोधूलि वेला व प्रदोषकाल में बुध प्रधान नक्षत्र, अहर्निश सिद्धि योग के साथ अमृत योग तुलसी विवाह को भी सुख,समृद्धि कारक बना रहे है. आज गोघुलि वेला व प्रदोष वेला में तुलसी विवाह होगा. सुख, शांति व समृद्धि प्रदान करेगा.

तुलसी वैष्णव सम्प्रदाय की परम आराध्या व प्रकृति स्वरूपा भी मानी जाती है. ठाकुरजी के भोग में जब तक तुलसीदल नहीं डल जाता वह अधूरा माना जाता है. देवउठनी ग्यारस को सायंकाल प्रदोष वेला में भगवान शलग्रामजी/श्री नारायण के श्री विग्रह के साथ धार्मिक मान्यता व परम्परा अनुसार विधिवत तुलसी विवाह किया जाता है.

आचार्य वैदिक ने बताया कि देवशयनी एकादशी को भगवन्नाम संकीर्तन का विशेष महत्व है. नमो भगवते वासुदेवाय इस महामंत्र का रात्रि में जागरण कर जप करने से चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है. गोधूलिवेला में दीपदान का भी विशेष महत्व है.

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