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बेटे के 70 प्रतिशत लिवर ने बचाई पिता की जान
कोरोनाकाल के बीच चोइथराम अस्पताल में सफलतापूर्वक की गई लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी
विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाओं और विशेषज्ञों की सेवाओं के साथ शुरू किया विशेष लिवर विभाग
इंदौर। सेंट्रल इंडिया के मेडिकल हब के रूप में पहचान कायम कर चुके इंदौर शहर में चोइथराम हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर ने कोरोनाकाल में सफलतापूर्वक लाइव लिवर ट्रांसप्लांट की एक जटिल सर्जरी कर लिवर से जुडी बीमारियों के इलाज में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ दिया। 12 दिसम्बर को की गई इस जटिल सर्जरी में एक 51 वर्षीय मरीज को उनके बेटे का 70 प्रतिशत लिवर ट्रांसप्लांट कर नई ज़िंदगी दी गई। इस सर्जरी को सफतापूर्वक पूरा करने वाली टीम को लीड कर रहे डॉ अजय जैन ने बताया कि सर्जरी के बाद लिवर डोनर को 20 दिसम्बर को डिस्चार्ज कर दिया गया है और मरीज को आज डिस्चार्ज किया गया। इस सर्जरी को करने वाली डॉक्टर की टीम में 80 प्रतिशत विशेषज्ञ इंदौर के ही थे, जिससे यह बात सिद्ध होती है कि अब लिवर से संबंधित किसी भी जटिल से जटिल समस्या का समाधान हमारे अपने ही शहर में संभव है।
कैंसर मान कर शहर में किया रेफेर
51 वर्षीय शिवपुरी निवासी बैंककर्मी सतीश सिंह (परिवर्तित नाम) को पिछले डेढ़ वर्ष से गैस और पैरों में सूजन की समस्या थी, जिसके लिए वे शुरुआत में आयुर्वेदिक इलाज ले रहे थे। समस्या का निदान नहीं होने पर उन्हें कुछ जांचों के लिए लोकल डॉक्टर के पास भेजा गया, जिन्होंने प्लेटलेट्स की कमी बताते हुए नए सिरे से इलाज शुरू किया। इससे भी फायदा ना मिलने पर कैंसर की आशंका जताते हुए जब उन्हें शहर रेफेर किया गया तो कैंसर विशेषज्ञों ने उनकी जाँच कर बताया कि उन्हें लिवर से संबंधित परेशानी है। इसकी दवाइयों से भी जब कोई खास असर दिखाई नही दिया तो लॉकडाउन के समय सतीश जी ने डॉ अजय जैन से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सेकंड ओपिनियन ली।
डॉ जैन ने कुछ टेस्ट करवाने के बाद सतीश जी को लिवर ट्रांसप्लांट करने की सलाह दी परंतु समय की कमी होने के कारण उन्होंने कैडेवर का इंतज़ार करने के बजाए परिवार के किसी सदस्य को लिवर डोनेट करने के लिए कहा। उनके बेटे का ब्लड ग्रुप मैच होने के बाद उन्हें डोनर के तौर पर तैयार करने के लिए कुछ टेस्ट कराए गए, जिनके आधार पर पहले सर्जरी को अगस्त में तय किया गया परंतु ठीक सर्जरी के पहले डोनर की टेस्ट रिपोर्ट्स में कुछ दिक्कत नज़र आने पर सर्जरी को तीन महीने के लिए टाल दिया गया और टीम ने पहले बेटे को पूरी तरह से सर्जरी के लिए फिट किया। सारी स्थितियों को देखते हुए अंततः 12 दिसम्बर को सफतापूर्वक ये सर्जरी की गई।
कोरोना के कारण बढ़ी जटिलता
डॉ अजय जैन ने कहा कि किसी भी ऑर्गन ट्रांसप्लांट सर्जरी के पहले मरीज को इम्युनिटी कम करने की दवाइयां दी जाती है ताकि रिजेक्शन के खतरे को कम किया जा सकें। कोरोना के समय हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती ही यही थी कि सर्जरी के पहले दी जाने वाली इन दवाओं के कारण मरीज को दूसरा खतरा ना हो जाएँ। इससे बचने के लिए मरीज और उनके परिवार के सभी सदस्यों को विशेष सावधानी रखने की हिदायत दी गई थी। सर्जरी के पहले मरीज और डोनर के साथ ही पूरी टीम का कई बार कोरोना टेस्ट किया गया।
आईसीयू और ऑपरेशन थिएटर को भी तीन-चार बार स्टेरलाइज़्ड किया गया। यह चोइथराम अस्पताल में किया गया 11 वा सफल लिवर प्रत्यारोपण था। इससे पहले किए गए 10 ट्रांसप्लांट कैडेवर के माध्यम से किए गए थे। इस सर्जरी को करने वाली टीम में डॉ अजय जैन के साथ ही डॉ अजिताभ श्रीवास्तव, डॉ विवेक विज, डॉ पियूष श्रीवास्तव, डॉ विशाल चौरसिया, डॉ सुदेश शारडा, डॉ नितिन शर्मा और डॉ नीरज गुप्ता शामिल थे।
विशेष लिवर विभाग का गठन किया गया
डॉ जैन आगे कहते हैं कि लिवर से जुडी बीमारियों को लोग अक्सर ज्यादा तवज्जों नहीं देते, जिसका परिणाम यह होता है कि बीमारी बढ़कर घातक रूप ले लेती है। इन दिनों लोगों में बढ़ते मोटापे, डाइबिटीज़, अधिक दवाइयों और शराब के सेवन के कारण लिवर पर दुष्प्रभाव पड़ने लगा है और पहले से कही अधिक संख्या में लिवर से जुडी बीमारियों के मरीज सामने आ रहे हैं।
इस बात को ध्यान में रखते हुए चोइथराम हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में एक विशेष लिवर विभाग की स्थापना की गई है, जिसमें मध्यभारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञ अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यानि अब मरीज को किसी भी जटिल से जटिल सर्जरी या इलाज के लिए बार – बार मेट्रो शहरों में भागदौड़ करने की जरूरत बिलकुल भी नहीं है। इससे लोगों के पैसे और समय दोनों की बचत होने के साथ ही उन्हें अपने घर के पास ही विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएँ मिल पाएगी।
हमारा डर विश्वास में बदल गया
कोरोना के समय अपने पिता की इस सफल सर्जरी के बारे में सतीश जी की बेटी ने कहा कि किसी भी बड़े ऑपरेशन में तीन समस्याएं तो होती ही है। पहली सर्जरी के खर्च की, पर पापा की नौकरी बैंक में होने के कारण हमें उसकी ज्यादा चिंता नहीं हुई। दूसरी डोनर खोजने की, पर उस मामले में भी हम खुशकिस्मत थे कि भाई का ब्लड ग्रुप पापा से मैच हो गया और हमें घर में ही डोनर मिल गया। कोरोना के कारण तीसरी और सबसे बड़ी समस्या थी हॉस्पिटल पर विश्वास को लेकर।
ऐसे समय जब लोग घर से निकलने में ही डर रहे हैं, हमें अस्पताल जाकर पापा की सर्जरी करवानी थी पर यह डर भी दूर हो गया जब हमने देखा कि यहाँ कोरोना से सुरक्षा के सभी उपाय तो किए ही जा रहे हैं साथ ही मरीज और डोनर के स्वास्थ्य का विशेष रूप से ध्यान रखा जा रहा है। भाई कि रिपोर्ट्स में थोड़ी-सी परेशानी नजर आने पर ही सर्जरी की पूरी तैयारी होने के बावजूद भी अस्पताल की ओर से सर्जरी को तीन महीने टालने की सलाह दी गई। आज पापा और भाई दोनों पूरी तरह ठीक है, हमें इस बात की बहुत ख़ुशी है।