विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष – पुर्ण स्वास्थ्य के घटक

एस के आर पी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज इंदौर में फिजियोलॉजी (शरीर क्रिया विज्ञान) विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष तथा साइंटिफिक एडवाइजरी बोर्ड सी सी आर एच आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सदस्य डॉ ए के द्विवेदी के अनुसार मनुष्य का शरीर सृष्टि की अत्यंत जटिल संरचना है। इस संरचना को आज तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। जैसे-जैसे शरीर विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान प्रगति कर रहा है वैसे – वैसे नित नए तथ्य प्रकाश में आ रहे हैं। मनुष्य का स्वास्थ्य किन – किन कारकों पर निर्भर करता है- यह बहुत रहस्यमय विषय है। कुछ लोग बहुत अच्छी दिनचर्या रखते हैं तथा खान-पान के नियमों का दृढ़ता पूर्वक पालन करते हैं फिर भी वे प्रायः बीमार रहते हैं।

कुछ लोग दिनचर्या और नियमों के प्रति एकदम बेपरवाह रहते हुए भी स्वस्थ और शारीरिक रूप सक्षम रहते हैं। कुछ लोग युवावस्था में ही गंभीर बीमारियों का शिकार होकर काल कवलित जाते हैं और कुछ लोग बेपरवाही से भी लंबा जीवन बिताते हैं। कुछ लोग जन्म से क्या गर्भावस्था से ही बीमार रहते हैं।इससे यह स्पष्ट होता है कि मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला कोई एक कारक अथवा घटक नहीं। मनुष्य की अनुवांशिक पृष्ठभूमि,परवरिश, वातावरण, खानपान, दिनचर्या, धार्मिक और सामाजिक क्रियाकलाप भी मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।

यद्यपि जीवन और मृत्यु के विषय में ईश्वर इच्छा सर्वोपरि है परंतु फिर भी शरीर को स्वस्थ रखना हमारे कर्तव्यों में शामिल है और हमें उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन के लिए प्रयत्न करना हीं चाहिए।

प्रायः हम शरीर के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करते हैं और असमय ही बीमार पड़ जाते हैं। पहले लोग धन कमाने के लिए अपने शरीर और स्वास्थ्य की चिंता नहीं करते और उसे नष्ट करते हैं, बाद में उसी कमाए गए धन से स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।धन कमाने के लिए हम अपने स्वास्थ्य को नष्ट ही क्यों करें। धन से औषधियां खरीदी जा सकती हैं, स्वास्थ्य नहीं खरीदा जा सकता। इसलिए हमें इस बात का प्रयत्न करना चाहिए हम अस्वस्थ ही ना हों।

इस परिप्रेक्ष्य में हम तन और मन के रिश्ते की भी बात करेंगे। जैसा मन होता है वैसा ही शरीर भी बन जाता है।यदि हमारा तन कष्ट में है तो उसका प्रभाव हमारे मन पर भी होता है। यदि मन दुःखी है तो शरीर भी प्रभावित होता है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन निवास करता है और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए मन को भी स्वस्थ रखना जरूरी है। इसलिए हमें दोनों ही दिशाओं से एक साथ प्रयत्न करना पड़ेगा- अपने मन को स्वस्थ रखें तथा तन को भी। तन और मन दोनों को स्वस्थ रखने के लिए हमें निम्नलिखित कार्य अनिवार्य रूप से करने होंगे –

1.उचित खानपान-
हमें सात्विक, स्वस्थ्य वर्धक, संतुलित और पौष्टिक भोजन करना चाहिए। यदाकदा परिस्थिति वश हमारा खान-पान हमारी मर्जी का नहीं रह पाता। लेकिन हमारा भोजन करने का तरीके सदा ही हमारे अनुसार रह सकता है। हमें कभी भी उद्वेलित और अशांत मन से भोजन नहीं करना चाहिए। भारत की प्राचीन परंपरा में ईश्वर को भोग लगाने के बाद भोजन ग्रहण किया जाता था। ईश्वर को भोग लगाना वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम मन को शांत और प्रसन्न दोनों कर लेते हैं। हमें शांत चित्त से धीरे-धीरे भोजन करना चाहिए। भोजन करने में उसमें जल्दी बाजी घातक होती है। इसका प्रभाव तुरंत नहीं दिखाई देता लेकिन धीरे-धीरे शरीर की क्षमताएं कम होने लगती हैं।

2. उचित व्यायाम –
हर व्यक्ति को अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार कुछ न कुछ न व्यायाम अवश्य करना चाहिए। तैरना, दोड़ना, टहलना, साइकिल चलाना, घुड़सवारी करना, योगाभ्यास तथा अन्य प्रकार के व्यायाम इसमें शामिल हैं। बिना शरीर को थकाये ठीक से नींद नहीं आती। परन्तु अति सर्वत्र वर्जित है। अतः व्यायाम भी हमें एक मर्यादा में ही करना चाहिए। व्यायाम के द्वारा शरीर को उसकी सहन सीमा से अधिक नहीं तोड़ना चाहिए। अतिशय व्यायाम लाभ के स्थान पर हानिकारक होता है।

3.उचित श्वसन –
हमारी जिंदगी बीत जाती है और हम ठीक प्रकार से सांस लेना नहीं सीख पाते। हमारी सांस को लंबी, गहरी और धीमी होना चाहिए। अधिक व्यायाम करने अथवा घबराहट की स्थिति में हमारी सांसे तेज चलने लगती हैं। सांसे उथली हो जाती हैं जैसे गले से ही सांस ली जा रही हो या फेफड़े के सबसे ऊपरी हिस्से से। हमें सप्रयास लंबी और गहरी सांस धीरे – धीरे लेनी चाहिए और सांसो को धीरे-धीरे छोड़ना चाहिए। सांसों के नियंत्रण से हम अपने मन को भी नियंत्रित और शांत रख सकते हैं।

4.उचित विश्राम –
व्यायाम के साथ शरीर को उचित विश्राम भी आवश्यक होती है। उचित विश्राम के अभाव में शरीर टूट जाता है और अपनी क्षमताओं को खो देता है। शांतिपूर्वक आंखें बंद करके लेटना, शवासन अथवा ध्यान करना विश्राम के विविध प्रकार हैं । अपनी आवश्यकता और समय के अनुसार आप अपने लिए विश्राम का तरीका चुन सकते हैं। कार्य और विश्राम के समन्वय से ही शरीर की दक्षता और क्रियाशीलता बनी रहती है।

5.सकारात्मक सोच-

पांचवी और अति महत्वपूर्ण बात है – सकारात्मक सोच। व्यक्ति जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है। हमारी सोच न केवल हमें प्रभावित करती है अपितु वह पूरे वातावरण को प्रभावित करती है। हम अपने विचारों और भावनाओं का बिना कुछ कहे भी प्रसारण करते रहते हैं।किसी समूह में एक दुःखी व्यक्ति सारे समूह को दुःख में ले जाता है, उसी प्रकार किसी भी समूह में एक प्रसन्न चित्त व्यक्ति सारे समूह को प्रसन्न कर देता है। परिस्थितियां कितनी भी कठोर और जटिल क्यों न हों, हमें सदा सकारात्मक विचारों में बने रहने की चेष्टा करनी चाहिए।
यदि हम अपने स्वास्थ्य के प्रति गंभीर हैं तो हमें न केवल उपरोक्त बिंदुओं पर मनन करना होगा बल्कि उन्हें हमें अपने व्यवहार में भी उतारना पड़ेगा।

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