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“गजेंद्र मोक्ष और गृहस्थ जीवन”
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
कार्तिक मास भगवान नारायण को समर्पित है। कार्तिक मास में नारायण स्तुति एवं दीपदान का विशेष महत्व है। विष्णु सहस्त्रानम में उल्लेखित है कि जिसके स्मरण मात्र से मनुष्य संसार के जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है, यह वाक्य गजेंद्र मोक्ष कथा में सर्वतः सिद्ध होता है। श्रीमदभागवत कथा के आठवें स्कंद में गजेंद्र मोक्ष की कथा वर्णित है। जिसमें नारायण गज की हृदय विदारक स्थिति देखकर उसकी करुण पुकार सुनकर उसकी रक्षा हेतु त्वरित प्रत्यक्ष हो जाते है और गजेंद्र को सहदेह वैकुंठ ले जाते है। साथ ही ग्राह का भी उद्धार करते है। मेरे इस लेख में मैं गजेंद्र मोक्ष की कथा को गृहस्थ जीवन की कथा से जोड़ने का प्रयास कर रही हूँ।
त्रिकुट पर्वत में गजेंद्र नाम का विशाल हाथी सकुटुंब निवास करता था। उसकी अनेकों पत्नियाँ और बच्चे थे। गजेंद्र इतना शक्तिशाली था कि उसकी गंध से सिंह को भी भय लगने लगता था। उसके संरक्षण में सभी निर्दोष प्राणी अपने आप को सुरक्षित अनुभव करते थे। एक समय की बात है ग्रीष्म काल का समय था, वह अपनी पत्नी और बच्चों सहित विचरण को निकला। प्यास लगी और वह अपनी प्यास बुझाने के लिए सरोवर गया। जल पिया और अपने परिवार को भी जल पीने को दिया। चुकी हाथी स्नान प्रेमी होता है अतः गजेंद्र ने स्नान करना और जलक्रीड़ा करना शुरू किया। इस जलक्रीड़ा में सरोवर का जल आंदोलित होने लगा। एक ग्राह उस सरोवर के भीतर रहता था। जल के आंदोलित होने के कारण वह बाहर आया और उसने गजेंद्र का पैर अपने मुख में दबोच लिया। गजेंद्र ने सोचा मेरे पास असीम शक्ति है, भला कोई जलचर मेरा क्या बिगाड़ सकता है, परंतु वह अपना पैर छुड़ाने में असमर्थ रहा। इस विषम परिस्थिति में उसने अपने परिवार से सहयोग माँगा। सभी ने सहयोग किया पर वे उसे बाहर निकालने में असमर्थ रहें और अंत में वे उसे छोडकर चले गए।
गजेंद्र और ग्राह में निरंतर युद्ध चलता रहा। युद्ध की अवधि अत्यंत ज्यादा थी। शने:-शने: गजेंद्र की शक्ति न्यून होने लगी और जल में रहने के कारण जलचर की शक्ति बढ़ने लगी। अपने समस्त बलों के अभिमान की सच्चाई का ज्ञान गजेंद्र को हुआ और उसे संसार से वैराग्य उत्पन्न हो गया और इस स्थिति में गजेंद्र को गोविंद की याद आई। पशु होकर भी उसे ईश्वर की याद कैसे आई यह प्रश्न विचारणीय है, क्योंकि वह पूर्व जन्म में वह एक राजा था और ईश्वर स्तुति में लीन रहता था। ऋषि से श्रापित होने के कारण उसे गज का शरीर मिला। वह जो स्तुति पूर्व जन्म में करता था, वही स्तुति उसने अंत समय में पीड़ित स्वर में की। उसकी स्तुति के शब्द नारायण के कानों में पड़े और वे अपने भक्त की करुण पुकार सुनकर अविलंब मन की गति से चलने वाले गरुड़ पर विराजमान हो गजेंद्र के समक्ष आ गए। जब गजेंद्र ने शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी नारायण को देखा तो वह अपनी पीड़ा को भूल गया। उसने सोचा मैं प्रभु को क्या अर्पित करूँ क्योंकि उसे पता था की वे कमलाकांत है, उनकी पत्नी भी कमला है, उनकी नाभि से भी कमल ही प्रकट हुआ है, उन्हें उपमा भी कमल ही प्रदान की जाती है करकमल, कमलनयन, चरणकमल। अतः उसने सरोवर से कमल का एक पुष्प नारायण को अर्पित किया। कमल से पूर्व वह अपना निर्मल मन नारायण को समर्पित कर चुका था।
जब प्रभु गजेंद्र की पुकार पर आए तो वे इतनी शीघ्रता से आए थे कि उनका पीताम्बर आकाश में उड़ रहा था। उन्हें लगा मेरे भक्त की रक्षा में विलंब न हो जाए तो वे गरुड़ पर से उतर गए, सुदर्शन चक्र को आदेश दिया और ग्राह का मस्तक काट दिया। नारायण ने गजेंद्र को पकड़कर बाहर निकाल लिया और भक्तवत्सल नारायण ने गजेंद्र से विलंब से आने के लिए क्षमा भी माँगी।
गजेंद्र मोक्ष गृहस्थ जीवन को निम्न शिक्षाएँ देती है:-
ईश्वर की प्रतिकूल कृपा को सहर्ष स्वीकार करें: गजराज पूर्व जन्म में राजा था, श्राप के कारण हाथी की योनि में आया। इस प्रतिकूल परिस्थिति के कारण ही उसे नारायण अंत में सहदेह वैकुंठ ले गए, नहीं तो वह अनेकों वर्ष तक तपस्या करता पर सहदेह प्रभु के साथ वैकुंठ की ओर प्रस्थान नहीं कर पाता।
शक्ति का अभिमान न करें: कभी भी अपने परिवार, अपनी शक्ति एवं अपने साम्राज्य का अभिमान न करें। अत्यधिक बलशाली होने के एवं इतना बड़ा कुटुंब होने के बाद भी उसकी रक्षा हरि के अलावा कोई नहीं कर पाया। अंत में तो उसके स्वयं की शक्ति भी पूर्णतः क्षीण हो चुकी थी।
भगवान की भक्ति में संशय न करें: भक्ति करते समय हमारे मन में संशय की स्थिति प्रकट होती है कि क्या ईश्वर हमारी बात सुनते होंगे, पर गजेंद्र मोक्ष कथा ने तो यह बात सिद्ध कर दी कि नारायण तो पशु की पुकार भी सुन लेते है। सरोवर से उसकी आवाज नारायण को वैकुंठ में सुनाई दी तो फिर प्रभु हमारी बात क्यों नहीं सुनेंगे।
भक्ति का परिणाम सदैव सुखद ही होता है: भगवान की भक्ति से मानव का उद्धार निश्चित है। यह बात गीता में भी भगवान ने की है कि मेरे भक्त का कभी पतन नहीं होता। गजेंद्र जो पूर्व में राजा था और प्रभु भक्ति में लग गया तो अगली योनि में निश्चित उसका उद्धार हुआ। अतः ईश्वर की भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती।
भगवान के भक्तों की भक्ति भी कृपा प्रदान करती है: यह अनूठी शिक्षा भी हमें गजेंद्र मोक्ष कथा से मिलती है कि जो व्यक्ति भगवान के भक्तो के चरण पकड़ लेता है भगवान उसका उद्धार पहले करते है, क्योंकि ग्राह का उद्धार तो गजेंद्र से भी पूर्व हुआ।
ईश्वर को आपकी निश्चल करुण पुकार चाहिए: कहते है कि यह युद्ध कई वर्षों तक चला पर भगवान अपने भक्त की रक्षा करने अंत में क्यों आए क्योंकि गजेंद्र को पहले स्वयं पर अभिमान था फिर अपने कुटुंब पर। सारी स्थितियों से अंत में उसे वैराग्य हो गया और तब उसने अपनी करुण पुकार से ईश्वर का स्मरण किया। अतः ईश्वर अपने भक्त का निर्मल मन एवं करुण पुकार ही चाहते है।
विपत्ति रूपी काल कभी भी प्रत्यक्ष हो सकता है: जलक्रीड़ा एवं स्नान में आनंद लेने वाले गजेंद्र को कब काल रूपी ग्राह पकड़ लेता है एवं भीतर ले जाता है यह उसे पता ही नहीं चलता, अर्थात हमारा जीवन भी अनिश्चित है। कब काल हमारे सामने प्रत्यक्ष हो जाए कुछ ज्ञात नहीं। अतः समय व्यर्थ न करें। मनुष्य योनि ही ईश्वर प्राप्ति का साधन है, दुनिया के विश्लेषण एवं व्यर्थ चर्चाओं में समय न व्यर्थ करें।
विपत्ति में कोई सहायक नहीं होता: सारी दुनिया सिर्फ युद्ध या लड़ाई का तमाशा ही देखती है। पीड़ा में गजेंद्र का परिवार भी उसे छोडकर चला गया था। सारे देवता भी इस युद्ध को देखते रहे पर कोई गजेंद्र को बचाने नहीं आया। अंत में केवल भक्तवत्सल नारायण ने अपनी भक्तवत्सलता दिखाई।
यहाँ पर भगवान ने हमें एक बात और सिखाई है कि यदि हम हरि की शरणागत हो जाए तो हमें निश्चित ही मुक्ति मिलेगी। हम सभी संसार के माया रूपी चक्र में उलझे हुए है। समय की धुरी तो अविराम गति से घूम रही है। सांसरिक मायाजाल की उलझन में इच्छाएँ समाप्त नहीं हो रही है। जीवन प्रतिक्षण क्षय हो रहा है, पर हममे होड़ लगी है आगे निकलने की। जीवन में आनंद सर्वथा विलुप्त सा हो गया है। कलयुग तो केवल नाम आधारित है इसलिए अपनी नित्य क्रियाओं के बीच भी ईश्वर का स्मरण सदैव करते रहना चाहिए। गजेंद्र मोक्ष स्तुति प्रभु के प्रति अविश्वास के समस्त संशयों को दूर करती है और ईश्वरीय विश्वास के प्रति दृढ़ता प्रदान करती है।