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कुपोषण और स्तनपान जैसे मुद्दों पर साथ मिलकर काम करने की जरूरत
डाइट विशेषज्ञों की नेशनल कॉन्फ्रेंस का समापन
इंदौर.’हमारे देश में कुपोषण और स्तनपान दो ऐसे विषय हैं जिनके बारे में अभी और भी काम करना बाकी है. हमने शासकीय स्तर पर इन दोनों ही क्षेत्रों में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए काफी काम किया है लेकिन अभी भी हर एक व्यक्ति तक जानकारी का पहुंचना आवश्यक है.
इसके लिए विभिन्न संस्थानों को साथ मिलकर सही नेटवर्किंग और तकनीक के साथ काम करना और अलग से हर व्यक्ति तक सन्देश का पहुंचना जरूरी है. रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड जैसे सार्वजनिक स्थानों पर सन्देश का प्रचार-प्रसार और भी बड़े पैमाने पर किया जाना चाहिए।’
नीति आयोग के निदेशक (स्वास्थ्य) आईएफएस, डॉ. एस. राजेश ने आज यहाँ ‘ इंडियन डाइटेटिक एसोसिएशन की 51 वीं वार्षिक राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के समापन दिवस पर उपस्थित श्रोताओं के सवालों का जवाब देते हुए यह बात कही.
उन्होंने इस बात से भी सहमति जताई कि कॉर्पोरेट सेक्टर में बढ़ते काम के घंटे और खान-पान पर पर्याप्त ध्यान न दे पाने के कारण कर्मचारियों में असमय एनीमिया जैसी सेहत संबंधी समस्याएं पनपने लगती हैं. इससे काम पर भी असर पड़ता है. ऐसे में डाइटीशियन और न्यूट्रीशियनिस्ट की भूमिका यहाँ काफी महत्व रखती है.
डॉ. लता शशि, चीफ न्यूट्रीशियनिस्ट एन्ड हेड डिपार्टमेंट ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रिशन एन्ड डायटेटिक्स, फर्नांडीज़ हॉस्पिटल, हैदराबाद ने गर्भवस्था के पूर्व, दौरान और बाद की स्थितियों में डाइट के साथ ही हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के दौरान सही डाइट के बारे में बात की. उन्होंने बताया कि अक्सर लोगों में यह भ्रम होता है कि गर्भवस्था के दो लोगों का भोजन करना चाहिए, जबकि ये गलत है.
जन्म के समय शिशु स्वस्थ हो और उसका वजन सही हो इसके लिए जरूरी है कि गर्भवस्था के पहले से आपकी डाइट संतुलित और पोषित रहे. प्रेग्नेंसी के पहले तीन महीने आपको सामान्य और संतुलित भोजन करना चाहिए। फॉलिक एसिड से भरपूर खाद्य, दूध, दही, पनीर, हरी पत्तेदार सब्जियां, अंडा, थोड़ी मात्रा में ड्रायफ्रूट, आदि खाएं और अनहेल्दी भोजन से बचें।
घर का बना ताजा खाना सबसे अच्छा है. उतना ही खाएं जितनी आपकी नॉर्मल डाइट है. चौथे महीने से आप खुराक को बढ़ा सकती हैं. अगर आपका वजन गर्भावस्था के पहले से बहुत ज्यादा है तो खासकर आप हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की सीमा में आ सकती हैं. इससे जेस्टेशनल डाइबिटीज समेत अन्य कई कॉम्प्लिकेशन खड़े हो सकते हैं. इसलिए अपनी डाइट को संतुलित रखें।
बच्चे के जन्म के बाद शरीर को हुई क्षति की पूर्ती के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां और लो फैट दूध या दूध से बने पदार्थ जरूर लें. अंडे को पूरा खाएं, पीले भाग यानी योक के बिना नहीं क्योंकि योक में कई पोषक तत्व होते हैं जो इस समय जरूरी होते हैं. तेल में मूंगफली या राईस ब्रान का प्रयोग करें।
आईएआईएम हेल्थ केयर सेंटर, बेंगलुरु से आये, डॉ. प्रसन्न शंकर ने कैंसर जैसी बीमारियों पर आयुर्वेद के प्रभाव तथा इस क्षेत्र में और रिसर्च की संभावनाओं पर जोर दिया। उन्होंने खासतौर पर बुढ़ापे में जरूरी डाइट और इस संदर्भ में आयुर्वेद की भूमिका को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद में जरातंत्र हज़ारों वर्ष पुराना विभाग है जिसे अब जेरियाट्रिक के तौर पर प्रसिद्धि मिल रही है.
आयुर्वेद में जरातंत्र के अंतर्गत कई महत्वपूर्ण औषधियां और उपाय हैं जो उम्र संबंधी समस्यायों से राहत दिला सकते हैं. शरीर एक गाड़ी की तरह है और पुराना होने पर इसे भी ऑइलिंग और सर्विसिंग की जरूरत होती है. अगर हम 40-50 वर्ष की उम्र से ही आने वाले दिनों के हिसाब से प्लानिंग करें तो बुढ़ापे में होने वाली जोड़ों के दर्द या पार्किंसंस जैसी तकलीफों की आशंका काफी कम हो जाएगी।
तेल मालिश पूरे शरीर को पोषण देती है. इसका उपयोग करें। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद का प्रभाव कई बीमारियों पर बहुत अच्छा होता है लेकिन पर्याप्त रिसर्च और जानकारी के अभाव में यह लोगों तक पहुँच नहीं पाती। उदाहरण के लिए कैंसर के इलाज में रेडियो और कीमो थैरेपी के बाद के साइड इफेक्ट्स आयुर्वेदिक औषधियों से कम हो सकते हैं.
जरूरी यह है कि आयुर्वेद और आधुनिक विधियों दोनों को एक साथ रखकर रिसर्च किये जाने चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि इफेक्ट देने वाली हर चीज का साइड इफेक्ट भी होता है और आयुर्वेद में भी ऐसा हो सकता है लेकिन इनका असर कम या ज्यादा हो सकता है. अगर गलत तरीके से आयुर्वेदिक औषधि ली जाए तो उससे भी नुकसान पहुँच सकता है.
कॉन्फ्रेंस की ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी, डाइटीशियन सुश्री प्रीति शुक्ला ने बताया कि कॉन्फ्रेंस के दौरान विभिन्न कैंसर पेशेंट्स तथा सर्जरी से गुजर चुके लोगों ने विशेषज्ञों से परामर्श भी लिया और सही डाइट की वजह से मिलने वाले फायदों को भी साझा किया। सुश्री प्रीती ने आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी का आभार व्यक्त किया और कहा कि इस तरह के मंच आने वाले दिनों में आमजन तक जानकारी के प्रसार के साथ-साथ उन्हें स्वस्थ जीवनशैली से जोड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।