जगर मगर वेगा अमावस नी काड़ी रात रे, दीवारी अई लई खुशिया नी सौगात रे…

शहर के बाजाऱों में जहाँ दिवारी पूर्व की रौनक दिखने लगी है , दुकाने सजने लगी है । ऐसे में ग्रामीण परिवेश का उत्साह भी चरम पर है ।

कहीं लीपा पोती हो रही है , तो कहीं चौपालों पर बुजुर्गों को रूई की बातियां बनाते पुराने दिनों को याद करते , बतियाते देखा जा सकता है ।

बढ़ती मंहगाई को लेकर और बिगड़ते परिवेश से उपजी माथे पर चिंता की लकीरे भी साफ देखी जा सकती है ।

माह के अंतिम रविवार को हिन्दी साहित्य समिति में बिछाई गई मालवी जाज़म में इस बार दिपावली पर्व को लेकर उत्साहित ग्रामीण परिवेश को लोकगीतों के माध्यम से व्यक्त किया गया जिसमें पीरी लाने से लेकर लीपा पोती मांडे मांडने , घर – आंगन , वंदन वार सजाने से लेकर लक्ष्मी पूजन और पशुओं को मेंहदी लगाने से लेकर गाय बेल पूजा तक की रस्मों की तैयारी के वर्णन ने सबका मन मोह लिया, समूचे परिवेश को उमंग और उत्साह से भर दिया ।
मुकेश इन्दौरी – जगर मगर वेगा अमावस नी काड़ी रात रे / दीवारी लई अई खुशिया नी सौगात रे / करो लीपा पोती, मान्डना माण्डो रे / बाणा पे वंदणवार सजाओ रे / लाओ दीवा, तेल , रूई ने बाती बणाओ / जगर मगर वेगा अमावस नी काड़ी रात रे / गणेश लक्ष्मी का पाठा लाओ / धाणी मावो रंग बिरंगी बर्फी संाठा लाओ / धण तेरस के दन धण वरसेगा / रूप चौदस के दन रंग रूप निखरेगा / नवा नवा छितरा पेरी ने सगला झूमेगा / संाझ अमावस के घर घर पूजा वेगा / लड़ पटाखा बम ती गाम गोईरो गूंजेगा / मंदर मंदर सिरो परसाद बंटेगा /जगर मगर वेगा अमावस नी काड़ी रात रे / दीवारी लई अई खुशिया नी सौगात रे ।
कुसुम मंडलोई ने लोकगीत सुनाया दाद बटोरी – दिवारी को दन अईग्यो / के हीड़ गई ले रे हीड्या रे / घणा रूपाला देखया दीवा संजोया है / काड़ी जो रात धोरी होय रे / काया माटी की दिवलो रे / श्रद्धा भाव की बाट रे / प्रेम प्यार को तेल पड़े तो होय उजाली रात रे उजलो ठाठ रे ।

वरिष्ठ मालवी कवयित्री मालती जोशी ने रचना – दीया नी कतार छे / रोशनी को त्यौहार छे / याद ना की फूलझड़ी छे / तो प्यार को अनार छे / प्यार सी प्यार को दीयो रोज लगाया करो / हम तुमख तुम हमख बुलाया करो / दीवाली तो मिलण मिलावण को त्यौहार छे / बिन बुलाये भी तुम कभी मिलण का आया करो / अमावस की काड़ी रात हो तो काई हुयो / पूणम की खुशी को दीवाली को उपहार छे – सुनाकर दाद बटोरी ।

विनीता चौहान ने मार्मिक रचना – म्हने छोरी घणी लाड़ प्यार ती पाली है / आज ससुराल में वणीकी पेली दीवारी है / व्हणे याद करणे आंगण में रंगोली डारी है सुनाई । वरिष्ठ मालवी कवि वेद हिमांशु ने – धर्म के नाम पर आडम्बर और लोक दिखावे पर प्रहार करते हुए धरम करम शीर्षक से मालवी लघुकथा प्रस्तुत की जिसमें मानवीय मूल्यों और नैतिक दायित्व की पक्षधरता को बेहद सराहा गया ।

हरमोहन नेमा , नंदकिशोर चौहान , नयन राठी , डाँ शशि निगम , सुभाष निगम, ओम उपाध्याय आदि ने मालवी में रचना पाठ किया।

 

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