- Over 50gw of solar installations in india are protected by socomec pv disconnect switches, driving sustainable growth
- Draft Karnataka Space Tech policy launched at Bengaluru Tech Summit
- एसर ने अहमदाबाद में अपने पहले मेगा स्टोर एसर प्लाज़ा की शुरूआत की
- Acer Opens Its First Mega Store, Acer Plaza, in Ahmedabad
- Few blockbusters in the last four or five years have been the worst films: Filmmaker R. Balki
गणपति बप्पा के साथ प्रकृति को सहेजने का सराहनीय प्रयास
नदी की मिटटी, प्राकृतिक रंग और प्राकृतिक एडहेसिव से बनी स्पेशल मूर्तियां
इंदौर. तेज रफ़्तार दुनिया का खामियाजा अगर किसी को सबसे ज्यादा उठाना पड़ा है तो वह है, हमारा पर्यावरण और प्रकृति। अपने विकास की अंधाधुंध दौड़ में हम यह भूलते जा रहे हैं कि प्रकृति असल में हमारे ही संरक्षण और फायदे के लिए है.
अच्छी बात यह है कि थोड़ी देर से ही सही यह बात हमें अब समझ में आने लगी है और इसमें बड़ी भूमिका वे लोग निभा रहे हैं जो अपने सद्प्रयास से आमजन को जागरूक करने के काम करते रहते हैं.
शहर की दो महिलाएं अपनी कम्पनी शिमेरा के अंतर्गत ऐसे ही एक प्रयास के तहत पिछले 4-5 सालों से गणपति उत्सव के दौरान विशेष गणपति प्रतिमाएं बनाने और सिखाने का काम कर रही हैं. पूरी तरह प्राकृतिक तत्वों से बनी इन प्रतिमाओं में किसी एक फूल का बीज होता है जो प्रतिमा को विसर्जित करने पर पौधे के रूप में आकार पा सकता है.
इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए शिमेरा कम्पनी की संस्थापक रश्मि गुप्ता तथा सह संस्थापक नम्रता गुप्ता ने बताया-‘हर साल बड़ी तादात में गणेश जी की मूर्तियों का नदियों, तालाबों आदि में विसर्जन होते देखना और फिर उसकी वजह से पानी में मौजूद जीव-जंतुओं, वनस्पति को नुकसान होते देखना साथ ही पानी को प्रदूषित होते देखना बहुत तकलीफ देता था.
इससे भी बड़ी बात थी भगवान की मूर्तियों के अनादर की. बार-बार यह विचार आता था कि कैसे इस तमाम नुकसान को कम से कम किया जाए. इसी सोच से जन्म हुआ इकोफ्रेंडली गणेश मूर्तियां बनाने का. जो न केवल प्रदूषण की रोकथाम करें बल्कि प्रकृति को पौधे के रूप में सहजने का भी काम करें। अपनी कम्पनी ‘शिमेरा’ के अंतर्गत हमने आज से 4-5 साल पहले इस तरह की मूर्तियों का निर्माण शुरू किया। ध
ीरे-धीरे लोगों को यह विचार समझ में आने लगा और आज देश के कई हिस्सों में न केवल इस प्रयास को सरहना मिल रही है बल्कि लोग बड़ी संख्या में हमसे जुड़ भी रहे हैं. मुंबई जैसे व्यस्त और घनी आबादी वाले शहर में भी लोग बहुत उत्साह से इस अभियान में जुड़ रहे हैं. हमने इस अभियान को ‘ग्रीन गणेशा’ नाम दिया है.
चूँकि इंदौर देश के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में सामने आया है और यहाँ लोग पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूक हैं, इसलिए हम चाहते हैं कि हमारा यह प्रयास यहाँ भी हर एक व्यक्ति तक पहुंचे और उनको हमारे साथ जोड़े। हम हर साल वर्कशॉप का आयोजन कर लोगों को इन मूर्तियों को बनाने का प्रशिक्षण तो देते ही हैं, हमारे पास बनी हुई मूर्तियां भी हैं जिन्हें लोग खरीद सकते हैं. इन मूर्तियों को हम तीन-चार महीने पहले ही बना लेते हैं.
ये मूर्तियां नदी किनारे की काली मिटटी, प्राकृतिक रंगों से बनी होती हैं. इनमें एडहेसिव के तौर पर भी भिंडी के लेस आदि का प्रयोग किया जाता है. इनकी साइज 11 इंच से डेढ़-दो फ़ीट तक हो सकती है. एक मूर्ति की कीमत 500-600 रूपये के करीब होती है.अमेजन की साइट पर भी हम लिस्टेड हैं और वहां से भी आप मूर्ति का ऑर्डर कर सकते हैं.
हर मूर्ति में एक फूल के पौधे के बीज होते हैं. इन मूर्तियों का विसर्जन आप घर के बगीचे, कॉलोनी के गार्डन जैसे किसी भी स्थान पर आसानी से कर सकते हैं. विसर्जन के बाद मूर्ति में मौजूद बीज मिटटी के साथ मिलकर पौधे के रूप में बड़ा होता है. इन मूर्तियों को आप सालभर तक सुरक्षित रख सकते हैं.’