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वैश्विक महामारी ने कंज्यूमर ड्यूरेबल ब्रांड्स को अपनी व्यावसायिक रणनीति पर दोबारा सोचने का मौका दिया
नील्सनआईक्यू बेसेस स्टडी से पता चला कि भारत में स्वचालन, व्यक्तिपरक उत्पादों और सब्सक्रिप्शन सेवाओं से संचालित व्यवसायों की भारी माँग है
नील्सनआईक्यू की इकाई, बेसेस (BASES) ने अपने ताजा अध्ययन के निष्कर्षों को जारी किया है जिसमें यह बताया गया है कि वैश्विक महामारी के बाद भारत और अन्य देशों में टिकाऊ वस्तुओं एवं इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में नए व्यावसायि मॉडल्स के प्रति उपभोक्ताओं का नजरिया कितना व्यापक है।
वैश्विक महामारी के बाद टिकाऊ वस्तुओं (ड्यूरेबल गुड्स) के विनिर्माता किस प्रकार उपभोक्ताओं को अपने साथ जोड़े रख सकते हैं और उनका अनुभव बेहतर बना सकते हैं, इसे समझने के उद्देश्य से नील्सनआईक्यू बेसेस को उपभोक्ता टिकाऊ वस्तु (कंज्यूमर ड्यूरेबल) ब्रांडों के लिए अलग-अलग व्यावसयिक मॉडल्स में उत्पाद सेवा प्रणालियों (पीएसएस) के सबसे अधिक भविष्य रक्षित होने का पता चला है। यूएस, जर्मनी, ब्राज़ील और भारत में संचालित इस विश्वव्यापी अध्ययन से यह उजागर होता है कि उत्पाद के सम्पूर्ण जीवनचक्र में नए व्यावसायिक मॉडलों को अपनाकर ग्राहक को सम्बद्ध रखने से ब्रांडों को फायदा होगा।
नील्सनआईक्यू बेसेस के साउथ एशिया लीड, विद्या सेन ने कहा कि, “विक्रय केंद्र से अलग कंपनी और इसके ग्राहक के बीच सम्बन्ध को विस्तारित करने से ब्रांडों के लिए ग्राहकों के साथ बातचीत करने के नए अवसर पैदा होते हैं। इससे इन ब्रांडों के लिए ग्राहक जनसांख्यिकी को समझने, कार्यप्रदर्शन और प्रयोग से सम्बंधित महत्वपूर्ण फीडबैक संग्रह करने, और ग्राहकों की ज़रूरतों पर बेहतर प्रतिक्रिया करके उनके साथ सम्बन्ध मजबूत करने का उद्देश्य पूरा होता है।”
अपने ग्राहकों के लिए व्यक्तिपरक सेवाएं प्रदान करने के लिए ब्रैंडन को यूजर की ज़रूरतों को पूरा करने वाले विकल्पों पर अवश्य विचार करना चाहिए। यह अध्ययन उत्पाद सेवा प्रणालियों (PSS) के दो रूपान्तरों पर बात करता है।
· उत्पाद-अभिमुख
उत्पाद का स्वामित्व हस्तांतरित किया जाता है, किन्तु उपभोक्ताओं को अतिरिक्त सेवाएँ प्रदान की जाती हैं,
· प्रयोग-अभिमुख
उत्पाद का स्वामित्व यथावत रहता है, किन्तु उपभोक्ताओं को प्रयोग उपलब्ध कराया जाता है।
भारत में कोविड-19 की महामारी ने इस तथ्य को पुनर्स्थापित किया है कि उपभोक्ता वस्तुओं की कंपनियों को आगामी वर्षों में वृद्धि तेज करने और लाभ बढ़ाने के लिए वितरकों, खुदरा विक्रेताओं और अन्त्य-उपभोक्ताओं के साथ जुड़ने के तौर-तरीके विकसित करने की ज़रूरत है। अध्ययन में पता चला है कि नई डिजिटल क्षमताओं में निवेश करने से लेकर व्यावसायिक मॉडलों को अपडेट करने और सीएक्स को एक महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धी विभेदक बनाने से ब्रैंड्स को उपभोक्ताओं को साथ रखने और उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने में मदद मिल सकती है।
विद्या ने आगे कहा कि, “भारत में सेवाओं में वृद्धि करने, कस्टमाइजेशन, स्वचालन, या लीजिंग के विकल्प विनिर्माताओं को जारी आमदनी के ज्यादा स्रोत प्रस्तुत करने के अवसर प्राप्त होते हैं। व्यावसायिक मॉडल के आधार पर विनिर्माता उत्पाद की पूरे जीवनचक्र में छोटी-छोटी अतिरिक्त आमदनी जोड़ सकते हैं, या निवेश का एक हिस्सा प्रयोग अवधि के लिए स्थानांतरित कर सकते हैं, जैसा कि लीजिंग मॉडलों के मामले में होता है।”
उत्पाद स्वचालन (प्रोडक्ट ऑटोमेशन) का विश्वव्यापी आकर्षण है
उत्पाद स्वचालन मॉडल ने न केवल भारत में, बल्कि यूएसए, जर्मनी और ब्राज़ील में भी पहला स्थान प्राप्त किया है। भारतीय उपभोक्ता, जिनके लिए नवीनतम टेक्नोलॉजी का होना हमेशा महत्वपूर्ण होता है, यह मानते हैं कि कंज्यूमर ड्यूरेबल्स ब्रांडों के लिए उत्पाद स्वचालन ही सही विकल्प है क्योंकि इससे उन्हें वैयक्तिकरण करने में आसानी होगी और कार्यकुशल परिणाम प्राप्त होंगे।
यूएसए, जर्मनी और ब्राज़ील में उपभोक्ताओं के लिए मूल्य निर्धारण महत्वपूर्ण था, वहीं स्वचालित उत्पाद के मामले में भारतीय उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद की गुणवत्ता, सहायता और बिक्री पश्चात सेवा महत्वपूर्ण घटक के रूप में सामने आए।
वैयक्तीकृत सौन्दर्य प्रसाधन संबंधी उत्पाद में पूरे विश्व के उपभोक्ताओं की रुचि है
वैयक्तीकरण के क्षेत्र में भारत में व्यक्तिपरक सौन्दर्य केन्द्रित उपकरण सबसे अधिक आकर्षण पैदा करते हैं, जबकि यूएस और जर्मनी में ओरल केयर और कुकिंग का आकर्षण है। वैसे पर्सनल केयर उपकरण जो सूचना संग्रह करते हैं और पर्सनल केयर चर्चा के लिए सुधार संबंधी सुझाव देते हैं, या वैसे टूथब्रश जो दाँतों का विश्लेषण करके मुँह के स्वास्थ्य (ओरल हेल्थ) की ज़रूरतों के लिए उत्पादों का सुझाव देते हैं, या यहाँ तक कि हेयर ड्रायर जो बालों का विश्लेषण करके उपचार/स्टाइल सम्बन्धी उत्पाद का सुझाव देते हैं वैश्विक स्तर पर उपभोक्ताओं को आकर्षित करते हैं। इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि मान्यता के विपरीत, इस प्रकार के उत्पादों को खरीदते समय उपभोक्ता सेलिब्रिटीज या इन्फ्लुएंसर पर भरोसा नहीं करते हैं। शोध बताता है कि समान मानसिकता वाले उपभोक्ताओं और प्रोफेशनल के समुदाय समान रूप से उपभोक्ताओं को आकर्षित करते हैं।
चक्रीय अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाना
जैसा कि उपभोक्ता अधिक पारखी हो गए हैं और कंपनियों से ज्यादा उत्तरदायी होने की अपेक्षा करने लगे हैं, वे उन कंपनियों का रुख कर रहे हैं जो चक्रीय पद्धतियों में संलग्न हैं। उपभोक्ताओं के लिए इसका अर्थ टिकाऊ उत्पाद खरीदने से है, जिनका पुनर्चक्रण किया जा सके या जो पुनर्चक्रित सामग्रियों से बने हैं। इसके पीछे उनका उद्देश्य इस तरह के उत्पादों को प्रभावकारी अनुरक्षण और मरम्मत के द्वारा लम्बे समय तक इस्तेमाल करना, या उत्तरदायी ढंग से उनका निपटान किया जा सके ताकि नगण्य से लेकर शून्य अपशिष्ट उत्पन्न हो। कंपनियों के लिए इसमें वैसे उत्पादों और व्यावसाय िक मॉडल का निर्माण करना शामिल है जिनसे अपशिष्ट नहीं निकले, कच्चे मालों का प्रयोग कम हो, और उत्पाद एवं पैकेजिंग के रिटर्न/रिकवरी की गुंजाइश आदि हो।
भारत में, उपभोक्ताओं को चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी टिकाऊ वस्तुओं, इलेक्ट्रॉनिक्स और किचेन के छोटे उपकरण के विनिर्माता बेहतर लगते हैं। लेकिन, कीमत उनके लिए बड़ी चिंता है क्योंकि उन्हें संवहनीय उत्पादों पर बहुत ज्यादा रकम खर्च करने में परेशानी होती है।
आवश्यकतानुसार प्रत्येक पे पर यूज़ को वरीयता
हालाँकि प्रत्येक पे पर यूज़ मॉडल टेक्नोलॉजी सेक्टर में सफलतापूर्वक जाँचा-परखा रहा है, नील्सनआईक्यू बेसेस के अनुसंधान से पता चलता है कि उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं (कंज्यूमर ड्यूरेबल्स) सेक्टर में भी ब्रांडों द्वारा इस मॉडल को स्वीकार किये जाने की संभावना है। अधिक से अधिक उपभोक्ता भुगतान के लचीले विकल्प और नवाचारी के साथ-साथ किफायती उत्पादों की माँग कर रहे हैं, इसलिए भारत में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के ब्रांडों के सामने उन उत्पादों को पेश करने का अवसर है जो ग्राहक की माँग पूरी करते हों और साथ ही उनके भुगतान के लिए विशिष्ट मॉडल उपलब्ध हो।