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ऐलोपैथी के साथ होम्योपैथी और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियां मिलकर मात दें सिकल सेल की बीमारी को
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इंदौर। मध्य प्रदेश के झाबुआ और राजगढ़ आदि आदिवासी इलाकों में सिकलसेल की समस्या बहुत तेजी से पैर पसार रही है। इससे पूरी तरह निजात पाने के लिए ऐलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद सभी प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों को मिलकर साझा प्रयास करने होंगे। ये बात प्रदेश के राज्यपाल श्री मंगू भाई पटेल ने आयुष मंत्रालय की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य तथा जाने-माने चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. ए.के. द्विवेदी से राजभवन में हुई मुलाकात के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि सिकलसेल की रोकथाम की शुरुआत गर्भवती महिलाओं के स्तर से हो और अगर कोई पेशेंट मिलता है तो उसके समूचे परिवार और सर्कल में सिकलसेल की जांच कर अधिक से अधिक लोगों को सिकलसेल से मुक्त कराने की कोशिश की जाये। इसके लिए आवश्यकता पड़ने पर पूरे प्रदेश की जनसंख्या की भी सिकलसेल एनीमिया की जांच की जानी चाहिए। इसके लिए बाकायदा अभियान चलाए जाने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि जब वो गुजरात में विधायक तब तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर उन्होंने सिकलसेल की समस्या से निजात पाने के कई ठोस उपाय किए थे।
डॉ. द्विवेदी ने बताया कि सिकलसेल एक वंशानुगत बीमारी है जो बच्चे को माता-पिता से मिलती है। दरअसल खून में मौजूद हीमोग्लोबिन शरीर की सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है मगर सिकल सेल, हीमोग्लोबिन को बहुत बुरी तरह प्रभावित करता है। इस बीमारी में हीमोग्लोबिन के असामान्य अणु, (जिन्हें हीमोग्लोबिन एस कहते हैं) लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) का रूप बिगाड़ देते हैं।
जिससे वह सिकल या हँसिए की तरह अर्धचंद्राकार हो जाती हैं। सामान्यतः स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं का शेप गोलाकार होता है और वो छोटी-छोटी रक्त धमनियों से भी आसानी से गुजर जाती हैं। जिससे शरीर के हर हिस्से तक ऑक्सीजन आसानी से पहुंच जाती है। मगर सिकल सेल बीमारी के दौरान जब लाल रक्त कोशिकाओं का आकार अर्धचंद्राकार हो जाता है तो वे छोटी-छोटी रक्त धमनियों से होकर नहीं गुजर पाती हैं और गुजरने की प्रक्रिया के दौरान टूट जाती हैं।
कई बार तो छोटी रक्त धमनियों से गुजरने के दौरान यह सिकल सेल वहीं फंस जाती है और रक्त संचार में रुकावट बन जाती है। ऐसे में मरीज को उस स्थान पर तेज दर्द महसूस होता है और इंफेक्शन, स्ट्रोक या एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम होने का खतरा पैदा हो जाता है। इसके अलावा सिकल सेल बीमारी से पीड़ित मरीज को हड्डियों और जोड़ों के क्षतिग्रस्त होने, किडनी डैमेज होने और दृष्टि संबंधी समस्याएं होने जैसी कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है। सामान्यतः लाल रक्त कोशिकाएं जहां 90 से 120 दिन तक जीवित रहती हैं वही सिकलसेल सिर्फ 10 से 20 दिन तक जीवित रह पाती हैं । जिस कारण शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी होने लगती है और व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है। जिससे उसकी आयु क्षीण होने की आशंका बढ़ जाती है।