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अब पिनहोल सर्जरी जरिए भी संभव होगा वॉल्व रिप्लेसमेंट
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अपोलो अस्पताल में 69 वर्षीय महिला को इस तकनीक से मिला नया जीवन
इंदौर। पहले हार्ट का वॉल्व ख़राब होने पर ओपन हार्ट सर्जरी के अलावा मरीज का इलाज करने का और कोई रास्ता नहीं था। ऐसे में यदि किसी कारण से मरीज की ओपन हार्ट सर्जरी करना संभव नहीं हो तो ऐसे में मरीज को होने वाले कष्ट का अंदाजा भी लगाना मुश्किल होता था।
पर समय और तकनीक में परिवर्तन के साथ अब एक पिनहोल जितनी छोटी जगह से भी सर्जरी कर हार्ट का वॉल्व रिप्लेस किया जा सकता है। TAVR & TAVI जैसी नई तकनीक से ऐसे लाखों दिल के मरीजों को लाभ मिलेगा, जिनकी ओपन हार्ट सर्जरी करना संभव नहीं है।
सेंट्रल इंडिया और मध्यप्रदेश में पहली बार इस तरह की पद्धति के जरिए एक मरीज को नया जीवन मिला अपोलो हॉस्पिटल में।
रिप्लेस किया गया वॉल्व फिर सिकुड़ने लगा
69 वर्षीय अनीता (परिवर्तित नाम) पिछले साल ही एक वॉल्व के ख़राब होने के कारण जटिल ओपन हार्ट सर्जरी से गुजर चुकी थी। पर यही उनकी परेशानियों का अंत नहीं हुआ था। उनकी ज़िंदगी ने फिर एक दर्दनाक मोड़ तब लिया जब इस साल मई में अचानक उन्हें सीने में तेज़ दर्द, साँस लेने में तकलीफ होने के साथ ही ब्लैक-आउट्स और बेहोशी बेहोशी होने लगी।
अपनी इस परेशानी को लेकर जब वे अपोलो हॉस्पिटल के इंटरवेंशन कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ रोशन राव के पास पहुंची तो उन्हें पता लगा कि उनके उसी वॉल्व में दोबारा परेशानी आ रही है और वॉल्व का आकर सिकुड़ता जा रहा है परन्तु अन्य जटिलताओं और कमजोर शरीर के कारण एक बार फिर ओपन हार्ट सर्जरी करवाना उनके लिए संभव नहीं था।
नई तकनीक ने बचाई जान
डॉ राव कहते है कि ऐसा बहुत कम केसेस में होता है कि ओपन हार्ट सर्जरी कर लगाए गए नए वॉल्व में दोबारा सिकुड़न की समस्या होने लगे। आमतौर पर ऐसा तभी होता है जब शरीर का कोई और अंग जैसे किडनी अदि ठीक से काम नहीं कर रहा हो, तब उसका नकारात्मक प्रभाव नए वॉल्व पर देखा जाता है।
अनीता जी के केस में यही हुआ था। इस बारे में सीनियर कंसलटेंट डॉ सरिता राव कहती है कि इस तरह के केसेस में दोबारा ऑपरेशन करना खतरनाक हो सकता है इसलिए ज्यादातर डॉक्टर इसकी सलाह नहीं देते पर ऐसे ही मुश्किल परिस्थितियों में चिकित्सा जगत में हो रहा तकनीकी विकास मदद करता है।
इस नई तकनीक में नेचुरल टिश्यू से वॉल्व बनाए जाते है और इन वोल्व्स को मेटल सर्जिकल वॉल्व की तरह ज्यादा मात्रा में ब्लड थिनर की आवश्यकता नहीं होती, जिससे दोबारा परेशानी की आशंका भी नहीं के बराबर हो जाती है।
TAVR तकनीक ओपन हार्ट सर्जरी की तरह जटिल नहीं होती और इसमें रिस्क भी कम होता है। इस तकनीक में पैर की आर्टरी ‘ग्रोइन’ में पिन होल के साइज से एक कैथेटर के माध्यम से वाल्व को शरीर में डाला जाता है। वाल्व को सही स्थान पर फिट करने के बाद कैथेटर को शरीर से निकाल लिया जाता है और नया वाल्व तुरंत ही काम करना शुरू कर देती है।
डॉ राव कहते हैं कि वैसे तो यह केस बेहद जटिल था पर हम अच्छे रिजल्ट की कामना कर रहे थे। अंततः सबकुछ अच्छा हुआ। वाल्व ठीक तरह से अपनी जगह पर लग कर काम करने लगी और मरीज को सर्जरी के बाद भी किसी तरह की परेशानी नहीं हुई।
अनीता जी को सर्जरी पूरी होते ही होश आ गया था और जब उन्हें कैथलैब के बाहर लाया गया तो वहां उनके परिजनों ने जिस तरह ख़ुशी-ख़ुशी उनका स्वागत किया, वह देखकर हमने बेहद संतोष हुआ।
भारत में करीब 15 लाख लोग पीड़ित है ख़राब वाल्व से
अपोलो हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर चेन्नई के TAVR प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ साई सतीश ने बताया कि देश में करीब 15 लाख लोगों के वॉल्व में खराबी है।TAVR तकनीक के जरिए वॉल्व बदलना यूरोप और यूएसए में अब आम बात हो गई है परन्तु भारत में यह तकनीक अब प्रचलन में आई है।
गौरतलब है कि डॉ साई सतीश साउथ एशिया और भारत में TAVR तकनीक के पायनियर के तौर पर जाने जाते हैं और देश-विदेश में होने वाली कार्डिओलॉजी कॉन्फ्रेंसेस में प्रमुख वक्त के तौर पर शामिल होते हैं।
इस मौके पर अपोलो हॉस्पिटल्स के डायरेक्टर डॉ अशोक बाजपेई ने कहा कि सिर्फ अपोलो अस्पताल ही नहीं बल्कि पुरे प्रदेश के लिए गर्व की बात है कि इस तरह की आधुनिक सर्जरी भी अब हमारे यहाँ संभव होने लगी है।
मैं डॉ रोशन राव, डॉ सरिता राव, डॉ साई सतीश, डॉ विकास गुप्ता एवं डॉ क्षितिज दुबे को बधाई देता हूँ, जिन्होंने इस सर्जरी को निपुणता से करके हमें यह गौरवान्वित करने वाले पल दिए।